Move to Jagran APP

खेतों में जाकर अफसरों ने किसानों को सिखाए पराली प्रबंधन के गुर Aligarh news

पराली जलने से रोकने के हर स्तर से प्रयास हो रहे हैं। किसानों को सेटेलाइट से निगरानी और कार्रवाई का भय दिखा चुके अफसर अब पराली प्रबंधन के गुर भी सिखा रहे हैं। खेतों पर पहुंच रहे अफसर किसानों को पराली से खाद बनाने की तकनीक बता रहे हैं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Sun, 10 Oct 2021 06:37 PM (IST)Updated: Sun, 10 Oct 2021 06:37 PM (IST)
खेतों में जाकर अफसरों ने किसानों को सिखाए पराली प्रबंधन के गुर Aligarh news
उप कृषि निदेशक, जिला कृषि अधिकारी ने विभागीय टीम के साथ गांवों का दौरा कर पराली प्रबंधन की जानकारी दी।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता । पराली जलने से रोकने के हर स्तर से प्रयास हो रहे हैं। किसानों को सेटेलाइट से निगरानी और कार्रवाई का भय दिखा चुके अफसर अब पराली प्रबंधन के गुर भी सिखा रहे हैं। खेतों पर पहुंच रहे अफसर किसानों को पराली से खाद बनाने की तकनीक बता रहे हैं। पराली जलने से होने वाले नुकसान भी गिनाए जा रहे हैं। रविवार को कृषि विभाग की टीमों में खेतों में जाकर किसानों को पराली प्रबंधन के बारे में बताया।

loksabha election banner

उप कृषि निदेेशक व जिला कृषि अधिकारी ने किया गांवों का दौरा

उप कृषि निदेशक यशराज सिंह, जिला कृषि अधिकारी डा. रामप्रवेश ने विभागीय टीम के साथ विभिन्न गांवों का दौरा कर पराली प्रबंधन की जानकारी दी। जिला कृषि अधिकारी ने बताया कि जिले में 85,815 हेक्टेयर में धान और 2,24,788 हेक्टेयर में गेहूं की मुख्य फसलें होती हैं। अमूमन किसान कटाई के बाद फसल अवशेष जला देते हैं। इससे प्रदूषण फैलता है। 1000 किलो पराली जलाने से 92 किलो कार्बन मोनोआक्साइड, 1600 किलो कार्बन डाईआक्साइड, 0.4 किलो सल्फर डाईआक्साइड, चार किलो नाइट्रस आक्साइड, तीन किलो कार्बन व 200 किलो राख निकलती है। इसके कारण वायु की गुणवत्ता में कमी आती है, जिससे आंखों में जलन त्वचा रोग, फेफडों की बीमारी, हृदय रोग, एलर्जी इत्यादि बीमारियों मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। फसल अवशेष जलाने से नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, सूक्ष्म पोषक तत्व व कार्बन की क्षति होती है। पोषक तत्वों के नष्ट होने के अतिरिक्त मिट्टी के कुछ गुण जैसे भूमि का तापमान, नमी, उपलब्ध फास्फोरस और जैविक पदार्थ भी अत्यधिक प्रभावित होते है। धान की कटाई व गेहूं की बोआई जल्दी होती है और खेत की तैयारी में कम समय लगता है।

जनपद में पराली प्रबंधन के लिए कंट्रोल रूम स्‍थापित

किसानों को गेहूं की बोआई की जल्दी होती है। खेत की तैयारी में कम समय लगे और शीघ्र ही गेहूं की बोआई हो जाए। किसान अवशेष जलाने के दुष्परिणाम जानते हुए भी पराली जला देते है, जिसकी रोकथाम करना पर्यावरण के लिए अपरिहार्य है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा " प्रमोशन आफ एग्रीकल्चरल मैकेनाइजेशन फार इन-सीटू मैनेजमेंट आफ काप रेजीड्यू योजना" संचालित है। जनपद में पराली प्रबंधन के लिए कंट्रोल रूम (05712742581) स्थापित किया गया है, इसके जरिए किसान पराली प्रबंधन में प्रयोग किए जाने वाले कृषि यंत्र, जैसे सुपर सीडर, जीरो टिल सीड ड्रिल, मल्चर आदि यंत्रों को किराए पर लेने की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.