वर्चस्व की लड़ाई में भाजपा की जमीन हो रही कमजोर Aligarh News
जिले में मेयर को छोड़कर सभी पद इस समय भाजपा के पास हैं। सात विधायक हैं। तीन सांसद जिले से हैं। एटा और हाथरस जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। दो एमएलसी भी हैं। दो राज्यमंत्री भी हैं। जनप्रतिनिधियों का इतना बड़ा कुनवा भाजपा के पास कभी नहीं रहा।
अलीगढ़, जेएनएन। जिले में जिस बुलंदियों पर भाजपा वर्तमान में है, शायद आगे वो बुलंदियां न हों, मगर नेताओं की आपसी गुटबाजी और वर्चस्व की लड़ाई में पार्टी जमीन कमजोर करती जा रही है। यही स्थिति रही तो आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, संगठन अभी इन पर ध्यान नहीं दे रहा है।
पार्टी की गुटबाजी चरम पर
जिले में मेयर को छोड़कर सभी पद इस समय भाजपा के पास हैं। सात विधायक हैं। तीन सांसद जिले से हैं। एटा और हाथरस जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। दो एमएलसी भी हैं। दो राज्यमंत्री भी हैं। जनप्रतिनिधियों का इतना बड़ा कुनवा भाजपा के पास कभी नहीं रहा। यहां तक रामलहर में भी भाजपा जिले के सातों सीटों पर काबिज नहीं हो पाई। मगर, पार्टी में गुटबाजी चरम पर है। जनप्रतिनिधियों में भी अलग-अलग गुट बने हुए हैं। उनमें वर्चस्व की लड़ाई चरम पर है। एक जनप्रतिनिधि यदि किसी सरकारी विभाग आदि का निरीक्षण करने पहुंचते हैं तो दो दिन बाद दूसरे जनप्रतिनिधि पहुंच जाते हैं। वो पहले जनप्रतिनिधि के निरीक्षण में ही तमाम कमियां निकाल देते हैं।
जनप्रतिनिधियों में और तलवारें खिंच गईं
सरकारी अस्पतालों का यदि निरीक्षण करने माननीय पहुंच गए तो दूसरे दिन दूसरे गुट के माननीय पहुंच जाते हैं। इससे अधिकारी भी असमंजस में रहते हैं कि आखिर किसकी मानें। अब जनप्रतिनिधियों की आपसी गुटबाजी में पार्टी के नेता भी कूद पड़े हैं। वह भी अपने मुफीद के अनुसार नेताओं को पकड़े हुए हैं। इससे नेताजी को भी बल मिलता है, इसके चलते गुटबाजी और बढ़ रही है। जिले में गैस प्लांट के निरीक्षण को लेकर तो खूब हुआ। एक जनप्रतिनिधि ने निरीक्षण किया तो दो दिन बाद दूसरे जनप्रतिनिधि पहुंच गए। उन्होंने प्लांट में तमाम कमियां निकाल दी। बिचौलियों को पकड़ लिया। उनके खिलाफ तहरीर तक दिलवा दी। मामला बढ़ने पर प्रशासन ने जांच बिठा दी। इससे जनप्रतिनिधियों में और तलवारें खिंच गईं।
चुनाव में पड़ेगा प्रभाव
जिस प्रकार से जिले में गुटबाजी चल रही है, उसका प्रभाव आगामी विधानसभा चुनाव में भी पड़ेगा। क्योंकि गुटबाजी के चलते नेताओं के बीच जबरस्त खींचतान है। पंचायत चुनाव में यह देखने को भी मिला। भाजपा कई सीटों पर मामूली अंदर से हार गई। उन सीटों पर नेताओं ने जनप्रतिनिधि से मदद मांगी। उनका आरोप था कि मतगणना में गड़बड़ी हुई है। दोबारा मतगणना कराई जाए, मगर गुटबाजी के चलते ऐसा नहीं किया गया। ऐसे हालात में विधानसभा चुनाव में भी भीतरघात हो सकती है।