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मस्जिद के साये में सस्ते कपड़ों का बेहतर बाजार Aligarh news

शहर में जिस साप्ताहिक हाट बाजार की नींव मुगल शासन में रखी गई थी वह अब सस्ते कपड़ों की बेहतर मंडी बन चुका है। ऊपरकोट की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के साये में लगने वाले इस बाजार की चर्चा दूर-दूर तक है। यहां हर वर्ग के लोग कपड़े खरीदने आते हैं।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Mon, 11 Jan 2021 06:07 AM (IST)Updated: Mon, 11 Jan 2021 06:30 AM (IST)
मस्जिद के साये में सस्ते कपड़ों का बेहतर बाजार Aligarh news
ऊपरकोट की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के साये में लगने वाले इस बाजार की चर्चा दूर-दूर तक है।

अलीगढ़, जेएनएन : शहर में जिस साप्ताहिक हाट बाजार की नींव मुगल शासन में रखी गई थी, वह अब सस्ते कपड़ों की बेहतर मंडी बन चुका है। ऊपरकोट की ऐतिहासिक जामा मस्जिद के साये में लगने वाले इस बाजार की चर्चा दूर-दूर तक है। यहां हर वर्ग के लोग कपड़े खरीदने आते हैं। वैरायटियां ही इतनी हैं कि ग्राहकों के कदम यहां ठिठक जाते हैं। खासकर महिलाओं के कपड़ों की फड़ लगती हैं। साड़ी, सूट, लंहगा की मैचिंग का जो कपड़ा शहर में कहीं नहीं मिलता, वो यहां उपलब्ध होता है। थान के कपड़ों की पूरी रेंज यहां उपलब्ध रहती है। कीमत भी मुनासिब। दुपट्टों के लिए तो हॉस्टलाें में रहने वाली छात्राएं यहां खरीदारी करने आती हैं। खास बात ये कि यह बाजार सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल पेश करता है। हर धर्म के लोग यहां न सिर्फ खरीदारी करने आते, बल्कि व्यापार भी करते हैं। कभी कोई आपसी मतभेद नहीं हुआ। हालांकि, अति संवेदनशील इलाका होने के चलते पुलिस की निगरानी यहां 24 घंटे रहती है। 

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मस्जिद के साथ विकसित हुआ बाजार

अलीगढ़ की जामा मस्जिद की पूरे एशिया में अपनी अलग पहचान है। मुगलकाल में मोहम्मद शाह के शासन काल में कोल के गवर्नर साबित खान ने 1724 में मस्जिद का निर्माण शुरू कराया था। वर्ष 1728 में मस्जिद तैयार हुई। 17 गुंबदों की इस मस्जिद में पांच हजार लोग नमाज पढ़ सकते हैं। एशिया की यह पहली मस्जिद है जिसकी गुंबदों में सबसे ज्यादा सोना लगा है। अभिनेता अमिताभ बच्चन ने ‘कौन बनेगा करोड़पति’ क्विज शो में यह सवाल किया था, जिसका जवाब कोई नहीं दे पाया था। फिर अमिताभ बच्चन ने खुद अलीगढ़ की जामा मस्जिद में सोना लगा होने का जवाब दिया था। मस्जिद निर्माण के कुछ समय बाद ही यहां हाट बाजार लगने लगा। काफी संख्या में लोग यहां नमाज पढ़ने आते थे और हाट बाजार से ही खरीदारी करते। हर सामान यहां उपलब्ध था। अंग्रेजी हुकुमत में भी इस बाजार ने अपना वजूद बनाए रखा, जो अब तक कायम है। अंतर सिर्फ इतना है कि अब यहां कपड़ों की फड़ ही दिखाई देती हैं। 

200 से अधिक फड़

जामा मस्जिद के आसपास 200 से अधिक फड़ लगती हैं, जहां सिर्फ कपड़े ही मिलते हैं। इनमें 20-30 फड़ बच्चों के कपड़ों की हैं, बाकी महिलाओं की। आर्टिफिशियल ज्वेलरी और सौंदर्य प्रसाधन की फड़ कुछ साल पहले ही लगना शुरू हुई हैं। मस्जिद के बाएं तरफ के द्वार के ठीक सामने कोतवाली है। यहीं मुख्य बाजार लगता है। ऊपरकोट पर इस बाजार से होकर घास की मंडी की ओर रास्ता निकलता है। चंदन शहीद मार्ग भी यहीं है। दिल्ली, मुंबई, गुजरात से कपड़े लाकर यहां बेचे जाते हैं। क्षेत्रीय पार्षद मुशर्रफ हुसैन बताते हैं कि इस बाजार में पहले जूतों की फड़ भी लगती थी। यहीं से वह जूते पहनते थे। अब जूतों की फड़ नहीं लगती। वे बताते हैं कि कोतवाली के आसपास लगने वाली 39 फड़ पुलिस ने हटवा दीं। जबकि ये फड़ सालों से लग रही थीं। इन लोगों की रोजी-रोटी छीन ली गई। 

इनका कहना है

दशकों से यहां बाजार लग रहा है। अंग्रेजों के समय में यह साप्ताहिक बाजार था, अब प्रतिदिन बाजार सजता है। प्रतिदिन यहां ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है।

मोहम्मद सुहैल

शहर का शायद ही ऐसा कोई बाजार हो, जहां प्रतिदिन ग्राहकों की इतनी भीड़ लगती है। ग्राहकों की भीड़ के चलते दोपहिया वाहन निकालना मुश्किल पड़ जाता है। अधिकांश महिलाएं ही खरीदारी करने आती हैं।  

कैश भाई पान वाले


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