बकरीद मुबारक : खुदा के सजदे में झुके हजारों सिर, अल्लाह को प्यारी है कुर्बानी
भाईचारे का संदेश देती है बकरीद।
अलीगढ़ : जिले भर में ईद-उल-अजहा हर्ष और उल्लास के साथ मनाई गई। शहर में शाहजमाल ईदगाह में हजारों मुस्लिम भाइयों ने बकरीद की नमाज अदा कर शहर व देश में अमन चैन और शाति की दुआ मागी। इस दौरान अमन चैन के लिए हाथ उठे और खुदा के सजदे में हजारों सिर झुके। नमाज के बाद सभी ने एक-दूसरे को गले मिलकर बकरीद की मुबारकबाद दी। देहात के लोधा, बरला, गंगीरी, हरदुआगंज, अकराबाद, अतरौली, खैर, पिसावा, विजयगढ़, टप्पल, इगलास, गौंडा आदि जगहों पर नमाज अदा की गई।
बकरीद समाज और लोगों के कामों के लिए कुर्बानी देने का सन्देश देता है। इस दिन कुर्बानी देने की परंपरा है। बुधवार की सुबह सात बजे से पहले ही ईदगाह पहुंचकर पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों ने व्यवस्थाओं का जायजा लिया। इसके साथ ही उन्होंने लोगों को ईद की मुबारकबाद दी। वहीं ईदगाह पर नगर निगम ने सफाई व्यवस्था की चाक चौबंद व्यवस्था की। सुबह साढ़े सात बजे शाहजमाल ईदगाह में शहर मुफ्ती खालिद हमीद ने ईद-उल-अजहा की नमाज अता कराई। हजारों मुस्लिम भाइयों ने हाथ उठा कर देश में अमन चैन और शाति कायम रहने की दुआ की। नमाज के बाद सभी ने एक दूसरे को गले मिलकर ईद-उल-अजहा की बधाई दी। इस दौरान डीएम चंद्रभूषण सिंह, एसएसपी अजय कुमार साहनी व नगर आयुक्त सत्यप्रकाश पटेल समेत अनेक अधिकारी, राजनीतिक व समाजसेवी मौजूद रहे।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
बकरीद पर बुधवार को नमाज के दौरान ड्रोन कैमरे व पुलिस की कड़ी निगरानी रही। इस दौरान शहर से लेकर देहात तक पुलिस ने सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए थे। एसपी सिटी अतुल कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि शहर में बाहरी जिलों के साथ ही देहात का भी पुलिस फोर्स तैनात रहा था। देहात में संबंधित थाना क्षेत्रों में पुलिस बल गश्त पर मुस्तैद था। शहर के संवेदनशील होने के चलते रेंज स्तर से छह कंपनी पीएसी, तीन कंपनी आरएएफ व अतिरिक्त पुलिस बल के रूप में करीब 150 सिपाही गैर जनपदों से आए हुए हैं। देहात क्षेत्र के 16 थाना प्रभारी व इंस्पेक्टर तथा 50 सब इंस्पेक्टरों की ड्यूटी लगाई है। उन्होंने बताया कि सर्विलांस, एसओजी, स्वेट, एंटी टेररिस्ट व एंटी माइंस की टीमों को भी सतर्क किया गया।
शहर को नौ सेक्टर में बांटा था
बदली यातायात व्यवस्था
एसपी ट्रैफिक अजीजुल हक ने बताया कि सुबह आठ बजे से दोपहर तीन बजे तक भारी, हल्के वाहनों के आवागमन पर उक्त व्यवस्था प्रभावी रहेगी।
प्रतिबंधित रहे वाहन
जयगंज पोस्ट आफिस से शाहपाड़ा, मदारगेट तिराहे से फूल चौराहा, मीरूमल चौराहे से फूल चौराहा, बारहद्वारी चौराहा प्रथम व द्वितीय से महावीरगंज, देहलीगेट चौराहे से खटीकान चौराहा, तुर्कमान बाईपास चौराहे से तुर्कमानगेट, देहलीगेट चौराहा से कनवरीगंज, खैर रोड से खटीकान चौराहा।
सभी वाहनों पर रही रोक
शहर में स्कूटर, रिक्शा, साइकिल आदि वाहनों पर शाहपाड़ा से फूल चौराहा, अब्दुल करीम चौराहे से सब्जी मंडी, महावीरगंज तिराहे से घंटाघर से अब्दुल करीम, कनवरीगंज फर्श प्रथम से सब्जी मंडी चौराहे, खटीकान चौराहे से हाथीपुल, चौक तुर्कमान गेट से चंदन शहीद, मुहल्ला पठानान, जयगंज तिराहा से काला महल, नुनेरगेट से बाबरी मंडी, खाईडोरा तिराहा से काला महल चंदन शहीद, सामनापाड़ा से काजीपाड़ा, जयगंज से काजीपाड़ा की ओर आने वाले वाहनों पर सख्ती के साथ रोक रही।
शाहजमाल से ईदगाह तक पैदल मार्च
बकरीद से एक दिन पहले मंगलवार को डीएम चंद्र भूषण सिंह ने एसएसपी अजय कुमारी साहनी व मेयर मो. फुरकान के साथ शहर के हिन्दू एवं मुस्लिम पक्षों के बुजुर्ग के साथ बैठक की। डीएम ने कहा कि हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम मिलकर ईद मनाएं। अफवाहों पर ध्यान न दें। इसके बाद डीएम ने पुलिस-प्रशासनिक अफसरों के साथ शाहजमाल ईदगाह से ऊपरकोट तक पैदल मार्च निकाला।
ईद की बिक्री से चमके बाजार
ईद की बिक्री से अमीर निशा व ऊपर कोट बाजार चमक उठे। देर रात मुस्लिम परिवार ईद के लिए खरीदारी करते हुए देखे गए। अमीर निशा, मेडिकल रोड, ऊपर कोट, शमशाद मार्केट आदि मुस्लिम क्षेत्र के बाजारों में ग्राहकों की भीड़ देखी गई। अमीर निशा में रेडीमेड गारमेंट, साड़ी व लेडीज शूट, वर्तन, परचून की दुकान पर भीड़ थी। महिलाएं श्रंगार का सामान, चूड़ी आदि पंसद कर रही थीं, वहीं पुरुष कुर्ता पायजामा के शोरूम पर खरीदारी कर रहे थे।
ब्यूटी पार्लर पर रही भीड़
महिलाओं ने हाथों पर मेहंदी रचाई, तो ब्यूटी पार्लर पर भी भीड़ थी। रेलवे रोड पर साप्ताहिक बंदी के चलते दुकान व शोरूम के सामने मेहंदी रचाने वाले फड़ों पर जमे हुए थे।
अल्लाह को प्यारी है कुर्बानी
ईद-उल-अजहा यानी बकरीद आज देशभर में मनाई जा रही है। मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरीद आती है। ईद-उल-फितर यानी मीठी ईद के बाद मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार बकरीद होता है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर बकरीद पर बकरे की ही कुर्बानी क्यों दी जाती है, इस दिन कुर्बानी देने का क्या महत्व है? जानिए विस्तार से..
तीन हिस्सों में बाटा जाता है गोश्त
बकरीद के दिन सबसे पहले सुबह नमाज अदा की जाती है। इसके बाद बकरे या फिर अन्य जानवर की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के बकरे के गोश्त को तीन हिस्सों करने की शरीयत में सलाह दी गई है। गोश्त का एक हिस्सा गरीबों में दिया जाता है, दूसरा दोस्त अहबाब के लिए और तीसरा हिस्सा घर के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
कुर्बानी से पीछे की कहानी
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, एक पैगंबर थे हजरत इब्राहिम। माना जाता है कि इन्हीं के जमाने से बकरीद की शुरुआत हुई। वह हमेशा बुराई के खिलाफ लड़े। उनका ज्यादातर जीवन जनसेवा में बीता।
अल्लाह ने दिया चांद सा बेटा
90 साल की उम्र तक उनकी कोई औलाद नहीं हुई तो उन्होने खुदा से इबादत की। अल्लाह ने उन्हें चाद से बेटा इस्माईल दिया। उन्हें सपने में आदेश आया कि खुदा की राह में कुर्बानी दो। पहले उन्होंने ऊंट की कुर्बानी दी। इसके बाद उन्हें फिर सपने आया कि सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दो।
बेटे को कुर्बान करने का आया था सपना
पैगंबर इब्राहीम ने ख्वाब में देखा कि वो अपने बेटे को अल्लाह की राह में क़ुर्बान कर रहे हैं। उन्होंने देखा कि उनके हाथ में छुरी है और वो उसको अपने बेटे की गर्दन पर चला रहे हैं। सुबह इब्राहिम सो के उठे तो उनको सोच-विचार में पड़ा देख उनके बेटे इस्माईल ने पूछा, अब्बाजान आप फिक्त्रमंद नजर आ रहे हैं, क्या बात है? बेटे के बार-बार पूछने पर पैगंबर इब्राहीम ने सपने वाली बात बताई। इस पर बच्चा इस्माईल बोला, तो इसमें इतना सोचने की बात क्या है, मैं आपकी सबसे प्यारी चीज हूं आप मुझे अल्लाह की राह में क़ुर्बानी कर दीजिए।
बेटे के मुंह से बात सुन हैरान रह गए थे इब्राहीम
इब्राहीम ने बच्चे के मुंह से ये बात सुनी तो हैरान रह गए। उनको लगा कि उनका रब कोई इम्तहान ले रहा है। वो अपने रब के इम्तहान में नाकाम नहीं होना चाहते थे। बेटे को क़ुर्बानी के लिए लेकर चल दिए. क़ुर्बानी की जगह पर पहुंचकर जैसे ही बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई तो एक करिश्मा हुआ। बेटा छुरी के नीचे से निकल गया और एक दुम्बा (कुछ परंपराओं में भेड़) वहा मौजूद था जिसकी गर्दन पर छुरी चल चुकी थी। इस तरह पैगंबर इब्राहीम अपनी परीक्षा में सफल हुए। इसके बाद अंतिम पैगंबर मोहम्मद के दौर में क़ुर्बानी को मुसलमानों के लिए जरूरी करार दे दिया गया।
समाज में बढ़ता है आपसी भाईचारा
हर वो मुसलमान जो एक या अधिक जानवर खरीदने की हैसियत रखता है वो जानवर खरीदता है और क़ुर्बान करता है। इसका गोश्त तीन बराबर हिस्सों में बाटा जाता है। एक हिस्सा गरीबों के लिए, एक हिस्सा रिश्तेदारों और मिलने-जुलने वालो के लिए और एक हिस्सा अपने लिए होता है। इससे समाज में आपसी भाईचारा बढ़ता है और एकदूसरे का ख्याल रखने की भावना पैदा होती है। जानवर का चमड़ा बेच कर जो पैसा मिलता है वो किसी गरीब, यतीम या जरूरतमंद को दे दिया जाता है।