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Teachers Day 2020: 'सेवा' की ईंट से राष्ट्र निर्माण कर रहीं अंजू

अलीगढ़ की शिक्षिका अंजू सक्सेना ऐसी गुरु हैं जिन्होंने आर्थिक तंगी के बीच पढ़ाई से दूर बच्चों का हाथ थामा और बैंक में नौकरी करने लायक बना दिया।

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 03:22 PM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2020 03:22 PM (IST)
Teachers Day 2020: 'सेवा' की ईंट से राष्ट्र निर्माण कर रहीं अंजू
Teachers Day 2020: 'सेवा' की ईंट से राष्ट्र निर्माण कर रहीं अंजू

अलीगढ़ [गौरव दुबे]: शिक्षक राष्ट्र का निर्माता होता है, लेकिन निस्वार्थ भाव में सेवारूपी ईंट से राष्ट्र निर्माण की नींव रखने वाले गोविंद स्वरूप गुरुजन चंद ही होते हैं। 'गुरु-गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय' इस विस्मय से निश्चित ही वो विद्यार्थी गुजरे होंगे, जिनको उनके गुरुजनों ने सिर पर हाथ रखकर फर्श से अर्श तक पहुंचाने का काम किया हो। अलीगढ़ में ऐसी ही गुरु हैं अंजू सक्सेना, जिन्होंने आर्थिक तंगी के बीच पढ़ाई से दूर बच्चों का हाथ थामा और बैंक में नौकरी करने लायक बना दिया। इस फेहरिस्त में गिरधर, आकाश वर्मा, शिप्रा सक्सेना जैसे नाम शामिल हैं। जयगंज निवासी व आइआइएमटी कॉलेज में पढ़ा रहीं 59 वर्षीय अंजू अब भी अपने घर पर जरूरतमंद 50 बच्चों को मुफ्त पढ़ा रही हैं।

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1984 से शुरू हुआ सिलसिला

अंजू बताती हैं कि 1982 मेें उन्होंने गणित से बीएससी की और 1984 से पढ़ाना शुरू किया। खुद की कमाई से राशि जुटाकर जॉब के लिए आवेदन करती थीं। बीएड किया। उसके बाद खुद के कमाए रुपयों से 1986 में एमएड व 1993 में पीएचडी की। 1991 तक संस्कृत कन्या इंटर कॉलेज घंटरचौक ब्रह्मïनपुरी में भी पढ़ाया। 1991 से कोङ्क्षचग पढ़ाई जो 2004 तक की। 2004 से आइआइएमटी में तैनात हुईं और तब से जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने पर रुपये लेने बंद कर दिए।

 

सोचा नहीं था कि बैंक में अफसर बनूंगी

सासनीगेट चौराहा निवासी शिप्रा सक्सेना बताती हैं कि पिता प्राइवेट जॉब करते थे। आठवीं के बाद पढ़ाई रुक गई। तब अंजू मैम ने नौवीं कक्षा से मुफ्त पढ़ाया। हरसंभव मदद की। 10वीं से लेकर आगे तक हर तैयारी कराई। कभी सोचा नहीं था कि बैंक में अफसर बन पाऊंगी। अंजू मैम के प्रयासों से आज मुजफ्फरनगर में प्रथमा यूपी ग्रामीण बैंक में ऑफीसर हूं। कई विषम परिस्थितियों में उन्होंने बेटी की तरह सहारा दिया। 

 

केनरा बैंक पहुंच गए आकाश वर्मा

अंजू बताती हैं कि खिरनीगेट निवासी आकाश के पिता बचपन में ही गुजर गए थे। मां गृहणी थीं, वो अपने चाचा के साथ रहता था। आर्थिक तंगी से पढ़ाई मुश्किल थी। उसको मुफ्त में पढ़ाया व जरूरी मदद भी की। ठाना था कि जब तक बच्चा पढऩा चाहेगा, उसको पढ़ाएंगी। बैंक की तैयारी भी कराई। अब वो केनरा बैंक में जॉब कर रहा है।

ग्रामीण बैंक में लगे गिरधर

बाबरी मंडी निवासी गिरधर के पिता का भी देहांत हो गया था। आठवीं तक पढ़ाई के बाद इधर-उधर घूमता रहता था। मेरे संपर्क में आया तो नौवीं कक्षा से पढ़ाना शुरू किया। उसकी मां साड़ी में फाल लगाने का काम करती थीं। फीस देने को कहा तो उनसे यही फीस मांगी कि बेटा पढ़कर कुछ बन जाना, बस यही मेरी फीस होगी। वो बच्चा भी लगन से पढ़ा। आज ग्रामीण बैंक में नौकरी कर रहा है।

 

फीस की राशि कर देती हैं दान

अंजू बताती हैं कि सभी लोग मुफ्त में बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहते। सक्षम अभिभावक कहते हैं कि फीस तो हम देंगे, बस आप बच्चे को पढ़ा दें। उनसे फीस लेनी पड़ती है। इस फीस की राशि की एक-एक पाई को वो दान कर देती हैं। 


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