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Centenary year: सौ साल का हुआ एएमयू, सर सैयद की सोच को हर कोई कर रहा सलाम Aligarh news

सर सैयद अहमद खां ने 1875 में जिस मदरसे की नींव रखकर ऑक्सफोर्ड व कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी का सपना बनारस में 1873 में देखा था आज वो साकार हो गया है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के रूप में आज यह इदारा 100 साल का हो गया है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2020 06:13 AM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2020 07:08 AM (IST)
Centenary year: सौ साल का हुआ एएमयू, सर सैयद की सोच को हर कोई कर रहा सलाम Aligarh news
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के रूप में आज यह इदारा 100 साल का हो गया है।

संतोष शर्मा, अलीगढ़ : सर सैयद अहमद खां ने 1875 में जिस मदरसे की नींव रखकर ऑक्सफोर्ड व कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी का सपना बनारस में 1873 में देखा था, आज वो साकार हो गया है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के रूप में आज यह इदारा 100 साल का हो गया है। एक दिसंबर 1920 को अधिसूचना जारी हुई थी। इसके बाद विश्वविद्यालय अस्तित्व में आया था। इस ऐतिहासिक दिन को लेकर अलीग बिरादरी की खुशियां सातवें आसमान हैं। पूरे कैंपस को दुल्हन की तरह सजाया गया है। बच्चे कैंपस में जाकर स्वजन के साथ फोटो खींच रहे हैं। अलीगढ़ के लोगों के लिए भी यह फक्र की बात है, क्योंकि ताले के बाद एएमयू ने तालीम के रूप में अलीगढ़ की देश-दुनिया में नई पहचान दी है। एएमयू में पढऩे वाले छात्र आज सौ से अधिक देशों में ज्ञान की लौ फैला रहे हैं। आज हर कोई सर सैयद की सोच को सलाम कर रहा है।

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सात छात्रों से शुरू हुआ सफर

सैयद अहमद खां ने 24 मई 1875 में सात छात्रों से मदरसा तुल उलूम के रूप में यूनिवर्सिटी की नींव रखी थी। 8 जनवरी 1877 को 74 एकड़ फौजी छावनी में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज स्थापित किया। एमएओ कॉलेज को एएमयू में अपग्रेड करने के लिए तब के शिक्षा सदस्य सर मोहम्मद शफी ने 27 अगस्त 1920 को इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में बिल पेश किया। काउंसिल ने इसे 9 सितंबर को दोपहर 12:03 बजे पारित किया। गवर्नर जनरल की सहमति भी मिली। एक दिसंबर को अधिसूचना जारी की गई और विश्वविद्यालय अस्तित्व में आया। उसी दिन राजा महमूदाबाद पहले कुलपति नियुक्त किए गए। विश्वविद्यालय का विधिवत उद्घाटन 17 दिसंबर 1920 को ऐतिहासिक स्ट्रेची हॉल में हुआ।

बेहतर पर्यावरण होने पर खोला था मदरसा

एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद खान का जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली के दरियागंज में हुआ था। अरबी, फारसी, उर्दू में दीनी तालीम के बाद वे न्यायिक सेवा में चले गए। दिल्ली, आगरा व बनारस में नौकरी करने के साथ 1864 में मुंसिफ के रूप में अलीगढ़ में भी तैनात रहे। सर सैयद ने नौकरी तो बहुत जगह की, लेकिन अलीगढ़ की आब-ओ-हवा ऐसी भायी कि उन्होंने यहां शिक्षण संस्थान खोलने का निर्णय लिया। बनारस में 1873 उन्होंने सबसे पहले शिक्षण संस्थान खालने का निर्णय लिया। इसके लिए पर्यावरण बेहतर होने पर उन्होंनेये अलीगढ़ को चुना। मदरसा की स्थापना करने से पहले सर सैयद ने 1869-70 तक में लंदन में ऑक्सफोर्ड-कैंब्रिज का दौरा किया।

दोस्त ने दिया साथ

सर सैयद ने 1875 में सात छात्रों से मदरसा की नीव रखी। एएमयू के जनसंपर्क कार्यालय के डॉ. राहत अबरार के अनुसार सर सैयद के दोस्त समीम उल्लाह के बेटा हमीद उल्ला पहले छात्र बने । हमीद उल्ला बाद में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी पढ़ने गए। विदेश जाने वाले वो पहले छात्र थे। आठ जनवरी 1877 को 74 एकड़ फौजी छावनी की जमीन (जहां एएमयू का एसएस हॉल है) पर मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की नींव रखी गई। समारोह में उस समय के वायसराय लार्ड लिटिन व बनारस के नरेश शंभू नारायण सिंह भी शामिल हुए। 1920 में इसी कॉलेज को विश्वविद्यालय का दर्जा मिला।

इनका कहना है

सर सैयद ने शिक्षा के लिए जो किया उसे हमेशा याद रखा जएगा। हम खुद को संस्था की सेवा के लिए फिर से समर्पित करने और विश्वविद्यालय को उत्कृष्टता की नई ऊंचाइयों पर ले जाने का संकल्प लेना चाहिए।

- प्रो. तारिक मंसूर, कुलपति एएमयू

 

1857 की क्रांति ने झकझेरा

1857 की क्रांति ने सर सैयद अहमद खां को झकझोर दिया था। इस गदर में उनके मामू व मामूजाद भाई अंग्रेजों के हाथों मारे गए। मां अजीजुल निशां को आठ दिन घोड़ों के अस्तबल में छिपना पड़ा। घोड़े का दाना खाकर गुजारा किया। ये मुगल सल्तनत का आखिरी दौर भी था। सर सैयद ने तभी ईस्ट इंडिया कंपनी को ज्वॉइन किया। अंग्रेजों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने के लिए आधुनिक शिक्षा को हथियार बनाया। आधुनिक एएमयू की स्थापना के लिए सर सैयद ने दान को हथियार बनाया। तब के राजा महाराजाओं से लेकर हर किसी से दान मांगा। अलीगढ़ की नुमाइश में चंदा जुटाने के लिए खुद घुंघरू पहनकर नाचे थे, जिसने भी दान दिया, उसका रिकॉर्ड भी रखा। वह 25 रुपये के दान पर पत्थर में नाम, 250 देने पर छात्रावास या क्लास का नाम और 500 रुपये के दान पर सेंट्रल हॉल में नाम दर्ज होता था।

एएमयू में मनाया जा रहा जश्न, कुलपति ने दी बधाई

एएमयू के सौ साल पूरे होने के अवसर पर सोमवार को जश्न मनाया गया। कुलपति प्रो. तारिक मंसूर ने छात्रों व शिक्षकों को बधाई दी। कहा एक दिसंबर 1920 को एमएओ कॉलेज आधिकारिक राजपत्र के माध्यम से एएमयू में बदल दिया गया था। इसके बाद से एएमयू ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। कई छात्रों व शिक्षकों ने पद्म भूषण, राष्ट्रपति पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, सरस्वती सम्मान और साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त किए हैं। कहा कि यह केवल जश्न मनाने का अवसर मात्र नहीं है, बल्कि एमएओ कॉलेज को एएमयू में अपग्रेड करने के लिए कड़ी मेहनत करने वाले महान शिक्षविदों और नेताओं के प्रति हमारी कृतज्ञता व्यक्त करने का भी दिन है। इस दिन हम सभी को उन विभूतियों का स्मरण करना चाहिए, जिन्होंने इस विश्वविद्यालय के चहुमुखी विकास और इसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का संस्थान बनाने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालांकि कोविड-19 के चलते कई कार्यक्रमों को रोकना पड़ा। प्रो. मंसूर ने कहा कि हम खुद को संस्था की सेवा के लिए फिर से समर्पित करने और विश्वविद्यालय को उत्कृष्टता की नई ऊंचाइयों पर ले जाने का संकल्प लेना चाहिए। एएमयू के ऐतिहासिक और प्रशासनिक भवनों और इमारतों जैसे प्रशासनिक ब्लॉक, बाब-ए-सैयद, यूनिवर्सिटी स्टाफ क्लब, कला संकाय, मौलाना आजाद लाइब्रेरी, विक्टोरिया गेट, सेंटेनरी गेट, यूनिवर्सिटी मस्जिद, सर सैयद हाउस, स्ट्रेची हॉल आदि को रचनात्मक और विभिन्न डिजाइन कि लाइटों से सजाया गया है।

कैप्सूल रखने की तैयारी

एएमयू के सौ साल पूरे होने पर प्रशासन टाइम कैप्सूल रखने जा रहा है। इसके लिए विक्टोरिया गेट के सामने की जमीन तय की गई है। स्टील का बड़ा कैप्सूल भी तैयार कर लिया गया है। जिसमें यूनिविर्सटी के सौ साल के इतिहास को प्रिटेड व डिजिटल फॉर्म में रखा जाएगा। सौ साल पहले सर सैयद ने भी स्ट्रेची हॉल के पास जमीन में कैप्सूलनुमा बाक्स को दफन किया था।


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