AMU Centenary Celebration: सात छात्रों के साथ सर सैयद अहमद खां ने भरी थी सपनों की उड़ान
बुलंद इतिहास दिल्ली में जन्मे सर सैयद ने 1875 में मदरसे के रूप में रखी थी एएमयू की नींव एक दिसंबर 1920 को विश्वविद्यालय बनने की जारी हुई थी अधिसूचना। ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रीज परिसर का दौरा करने के बाद रखी गई थी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की नींव। जागरण
संतोष शर्मा, अलीगढ़। अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय (एएमयू) ऐसी बुलंदी का नाम है, जिसकी तारीफ में शब्द भी कम पड़ जाते हैं। दिल्ली में जन्मे सर सैयद अहमद खां ने इस यूनिवर्सटिी का सपना साल 1875 में मदरसा तुल उलूम में सात छात्रों को साथ लेकर देखा था। अब ये मदरसा ऐसा विशाल वृक्ष बन गया है जिसकी शाखाएं यहां शिक्षा लेने वाले महापुरुषों से लदी हैं। एएमयू में 30 हजार से अधिक छात्र-छात्रएं हैं। 13 संकाय,111 विभाग और 350 से अधिक डिग्री-सर्टिफिकेट कोर्स चल रहे हैं। मल्लापुरम (केरल), किशनगंज (बिहार) और मुर्शीदाबाद में स्टडी सेंटर चल रहे हैं।
देश की पहली सेंट्रल यूनिवर्सटिी..कभी इस इदारे (परिसर) में लड़कियां परदे के पीछे पढ़तीं थी, अब घोड़े दौड़ाती हैं। यह है अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय। जिसने हजारों शख्सियत पैदा की हैं। देश के तीसरे राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन व उप राष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी यहीं की देन हैं। यहां से 19 राज्यपाल, 17 मुख्यमंत्री और 12 देशों के राष्ट्राध्यक्ष निकल चुके हैं। सर सैयद के इस चमन ने इस साल एक दिसंबर को सौ साल का सफर पूरा किया है। इस मौके पर मंगलवार को आयोजित समारोह में एएमयू बिरादरी ही नहीं, दुनियाभर के मुस्लिम देशों की भी नजर है।
एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद खां दूरदर्शीता के धनी थे। ब्रिटिश हुकूमत में मुसलमानों की हालत देखकर उन्होंने अनुमान लगा लिया था किइस कौम को जब तक अशिक्षा के अंधकार से नहीं निकाला जाएगा, यह समृद्ध नहीं हो सकती। अंग्रेजों से मुकाबला भी ताकत से नहीं, कलम से करना होगा। बनारस में नौकरी करने के दौरान सर सैयद ने साल 1873 में ऑक्सफोर्ड व कैंब्रिज जैसा विश्व विद्यालय बनाने का सपना देखा था। 24 मई 1875 में सात छात्रों से मदरसा तुल उलूम के रूप खोला।
आठ जनवरी 1877 को फौजी छावनी में 74 एकड़ जमीन पर मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज स्थापित किया। 43 साल बाद यह कॉलेज विश्वविद्यालय के रूप में आया। एमएओ कॉलेज को एएमयू में अपग्रेड करने के लिए तब के शिक्षा सदस्य सर मुहम्मद शफी ने 27 अगस्त 1920 को इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में बिल पेश किया। काउंसिल ने इसे नौ सितंबर को पारित किया। गवर्नर जनरल की सहमति भी मिली। एक दिसंबर 1920 को अधिसूचना जारी की गई और एएमयू अस्तित्व में आया। उसी दिन राजा महमूदाबाद पहले कुलपति नियुक्त किए गए। विश्वविद्यालय का विधिवत उद्घाटन 17 दिसंबर 1920 को ऐतिहासिक स्ट्रेची हॉल में हुआ।
सर सैयद अहमद खां का जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली के दरियागंज में हुआ था। अरबी, फारसी, उर्दू में दीनी तालीम के बाद वे न्यायिक सेवा में चले गए। दिल्ली, आगरा व बनारस में नौकरी करने के साथ 1864 में मुंसिफ के रूप में अलीगढ़ में भी तैनात रहे। अलीगढ़ की आब-ओ-हवा ऐसी भायी कि उन्होंने यहां शिक्षण संस्थान खोलने का निर्णय लिया। मदरसा की स्थापना करने से पहले सर सैयद ने 1869-70 तक लंदन में ऑक्सफोर्ड-कैंब्रिज का दौरा किया। सर सैयद चाहते थे कि एक ऐसी यूनिवर्सटिी कायम हो जो ऑक्सफोर्ड-कैंब्रिज जैसी हो।
लाइब्रेरी में फारसी में लिखी गीता है : एएमयू की मौलाना आजाद लाइब्रेरी एशिया की दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरियों में शुमार है। इसकी नींव 1955 में प्रधानमंत्री रहे पं. जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी। एएमयू में 13.50 लाख से अधिक किताबें हैं। इनमें से 6.50 लाख इसी लाइब्रेरी में हैं। मुस्लिमों के चौथे खलीफा अजरत अली के हाथों हिरन की खाल की ङिाल्ली पर लिखी गई कुरान मजीद है। साल 1829 में अकबर के दरबारी फैजी के हाथों फारसी में अनुवादित गीता भी यहां सुरक्षित है। कुर्ते की बाहों पर पूरी कुरान शरीफ लिखी होती थी। ये कुर्ता भी लाइब्रेरी में सुरक्षित है।
जहांगीर के पेंटर मंसूर नक्काश की अद्भुत पेंटिंग के बारे में शायद ही लोग जानते हों। वे पेंटिंग में माहिर थे। साल 1621 में उनकी बनाई टूलिप (गुलेलाला) के पुष्प की पेंटिंग भी लाइब्रेरी में है।संग्रहालय भी देवी देवताओं की 27 प्रतिमाएं : एएमयू का संग्रहालय भी अपने आप में खूब है। बहुत सी ऐतिहासिक वस्तुएं सुरक्षित हैं। इनमें सर सैयद अहमद खां की संरक्षित की गई देवी-देवताओं की 27 प्रतिमाएं भी हैं। एएमयू की स्थापना से पहले ही सर सैयद ने इन प्रतिमाओं को जुटाना शुरू कर दिया था। अलीगढ़ के डिप्टी कलेक्टर और साइंटिफिक सोसायटी के संस्थापक सदस्य रहे राजा जयकिशन ने ये प्रतिमाएं भेंट की थीं। इनमें महावीर जैन का करीब एक टन वजनी स्तूप है।
दाग भी लगे : सिमी और वानी की वजह से भटकाव भी दिखा : एएमयू के सौ इस साल के सफर में कुछ ऐसे दाग भी लगे जिनसे यूनिवर्सटिी की बदनामी भी हुई। आतंकवादी संगठनों में शामिल स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की नींव 1977 में एएमयू में ही रखी गई थी। वर्ष 1975 में देश में आपातकाल लागू होने के दौरान तमाम छात्र संगठनों पर पाबंदी लगा दी गई थी। आपातकाल हटने के बाद छात्रों को लामबंद करने के इरादे से ही सिमी की 25 अप्रैल 1977 को मुहम्मद अहमदउल्ला सिद्दीकी ने अलीगढ़ में स्थापना की। केंद्र सरकार ने सिमी को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने पर 2001 में प्रतिबंधित कर दिया था। कार्यालय को भी सील कर दिया गया। जो आज भी बंद है। एएमयू के शोध छात्र से आतंकी बने मन्नान वानी को ढेर करने की खबर आते ही कुछ कश्मीरी छात्रों ने न सिर्फ उसे भाई बताया, बल्कि कैंपस में आतंकी के जनाजे की नमाज तक पढ़ने की कोशिश की। प्रॉक्टोरियल टीम ने रोका तो मारपीट की। कवरेज कर रहे एक मीडिया कर्मी को पीटा और मोबाइल फोन भी छीन लिए थे। उस समय एएमयू प्रशासन ने तीन कश्मीरी छात्रों को निलंबित कर दिया था।
दो भारत रत्न, पद्मविभूषण व पद्मभूष्ण भी : सर सैयद के चमन में खान अब्दुल गफ्फार खान (1963)व डॉ. जाकिर हुसैन (1983)के रूप में दो भारत रत्न पैदा किए। डॉ. जाकिर हुसैन(1954), हाफिज मोहम्मद इब्राहिम(1967), प्रो. आवेद सिद्दीकी(1976), प्रो. राजा राव(2007) व प्रो. एआर किदवाई (2010) पद्मविभूषण पैदा किए। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला(1964), प्रो. सैयद जुहूर कासिम(1982), प्रो. रईस अहमद(1985), प्रो. आले अहमद(1992), नसीरुद्दीन शाह(2003), कुर्रातुल एन हैदर(2005), जावेद अख्तर(2007) व डॉ. अशोक सेठ (2014)के रूप में पद्मभूषण दिए। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता कुर्रतुलऐन हैदर (1989), अली सरदार जाफरी (1997) व प्रो. शहरयार (2008) के अलावा 53 से पद्मश्री हुए। सुप्रीम कोर्ट के चार जजों के अलावा कई जज दिए हैं।
फिल्मी सितारे भी : एमएयू ने शिक्षा ही नहीं मनोरंजन के क्षेत्र में हस्तियां पैदा की हैं। नसीरुद्दीन शाह, जावेद अख्तर, बेगम पारा, शेख मुख्तार, टुनटुन, इस्मत चुगतई, अनुभव सिन्हा, तबस्सुम समेत तमाम कलाकार पैदा किए।
खेल के महारथी : खेल में पिछले कुछ सालों में भले ही कोई चमकता सितारा न निकला हो लेकिन अतीत में खूब सितारे निकले हैं। सर सैयद के इस चमन से हॉकी में ओलंपियन जफर इकबाल, आफताब अहमद, क्रिकेट में महेंद्रर अमरनाथ, अफसर हुसैन से जैसे खिलाड़ी पैदा किए।
पूर्व छात्र व अमेरिकी कारोबारी के फ्रैंक एफ इस्लाम ने बताया कि यह पुलों का निर्माण करेगा, बाधाओं को तोड़ देगा। यह कार्यक्रम इतिहास बनाएगा। सभी की निगाहें इस समारोह पर हैं। अज्ञान की दीवार को गिरा देगा और आशा की किरण लाएगा। हम भारत के बेहतर भविष्य को आकार देने में मदद कर सकते हैं।
पूर्व छात्र व चेयरमैन फोर्टिस एस्कॉर्ट के डॉ. अशोक सेठ ने बताया कि सौ साल पूरे होने पर गर्व महसूस हो रहा है। एएमयू में पढ़े लोग दुनिया भर में फैले हुए हैं। पूर्व छात्रों की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने इदारे के लिए कुछ करें। ताकि यूनिवर्सिटी और तरक्की करे। हम भी मंगलवार को पीएम के कार्यक्रम में शामिल होंगे। -