एएमयू ने पैदा किए दिग्गज सैनानी, राजा ने अफगानिस्तान में बनाई थी सरकार Aligarh News
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी(एएमयू) के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छात्रों से स्वतंत्रता सैनानियों पर शोध करने की सीख दी थी। इसके लिए 100 छात्रों को जुड़ने का आव्हान किय। इंतजामिया ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है।
अलीगढ़, संतोष शर्मा। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी(एएमयू) के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छात्रों से स्वतंत्रता सैनानियों पर शोध करने की सीख दी थी। इसके लिए 100 छात्रों को जुड़ने का आव्हान किय। इंतजामिया ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। यूनिवर्सिटी की बात करें तो यहां से दिग्गज स्वतंत्रता सैनानी निकले हैं। मुरसान नरेश राजा महेंद्र पताप सिंह ने तो अफगानिस्तान में भारत के लिए अस्थाई सरकार तक बनाई।
सीमांत गांधी ने महात्मा गांधी के साथ काम किया
खान अब्दुल गफ़्फार खान (सीमांत गांधी) ने महात्मा गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। एएमयू से निकले स्वतंत्रता सैनानियों की फेयरिस्त बहुत लंबी है। इनमें राजा महेंद्र प्रताप सिंह, सीमांत गांधी के अलावा मौलाना मोहम्मद अली जौहर, हसर, डॉ. जाकिर हुसैन, जफर अली खन, केजी पालीवाल प्रमुख हैं। राजा महेंद्र प्रताप की बात करें तो इन्होंने सर सैयद द्वारा स्थापित मुहम्मडन एंग्लो ओरियंटल (एमएओ) कॉलेज में पढ़ाई की। एक दिसंबर 1886 में जन्मे राजा महेंद्र प्रताप को गोद लेने के वाले हाथरस के राजा घनश्याम सिंह ने उन्हें पढ़ने के लिए 1895 में अलीगढ़ में गवर्मेंट हाईस्कूल (नौरंगीलाल इंटर कॉलेज) भेजा था। इसके बाद एमएओ कॉलेज में दाखिला दिला दिया। सर सैयद अहमद खां घनश्याम सिंह के अच्छे मित्र थे, सर सैयद के आग्रह पर ही महेंद्र प्रताप को एमएओ कॉलेज पढ़ने भेजा गया। 12वीं के बाद 1907 में कॉलेज छोड़ दिया। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान देश को आजादी दिलवाने के पक्के इरादे से वह विदेश चले गए। जर्मनी से राजा अफगानिस्तान गये। अफगान के बादशाह से मुलाकात कर एक दिसंबर 1915 में काबुल से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की। जिसके राष्ट्रपति स्वयं तथा प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्ला खां को बनाया। अफगानिस्तान ने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया तभी वे रूस गये और लेनिन से मिले। लेनिन ने कोई सहायता नहीं की। 1920 से 1946 विदेशों में भ्रमण करते रहे। विश्व मैत्री संघ की स्थापना की। 1946 में भारत लौटे। 1947 में देश आजाद हो गया। उनके संघर्ष को देश कभी भुला नहीं पाएगा।
हसरत मोहानी ने दिया था इंकलाब जिंदाबाद का नारा
आजादी के दीवानों को इंकलाब जिंदाबाद का नारा एमएओ कॉलेज में पढ़े हसरत मोहानी ने दिया था। मोहानी का नाम सय्यद फ़ज़ल-उल-हसन तख़ल्लुस हसरत था। उनका जन्म उन्नाव के क़स्बा मोहान में 1875 में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर हुई। 1903 में उन्होंने एमएओ से बीए किया। डॉ. राहत अबरार ने बताया कि मोहानी ने गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन से खासे प्रभावित थे। स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए शहर के रसलगंज में खादी भंडार खोला। 1919 के खिलाफत आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। 1921 में "इन्कलाब ज़िदांबाद" का नारा लिखा। सरदार भगतसिंह ने इसी नारे को बुलंद किया। हसरत मौहानी कृष्ण के भक्त थे। जन्मष्टमी पर वह मथुरा जरूर जाते थे। संविधान पीठ के सदस्य थे, लेकिन इसकी मीटिंग में जाने के लिए कभी भत्ता नहीं लिया।
‘गुलाम देश में मरना नहीं चाहता’
मौलाना मोहम्मद अली जौहर का एएमयू से गहरा नाता रहा है। एमएओ कॉलेज के विस्तार में उन्होंने अहम योगदान दिया। 1878 में रामपुर में जन्में मौलाना ने दारुल उलूम एएमयू से जुड़े। 1898 में, लिंकन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड से भी शिक्षा ग्रहण की। एएमयू इतिहास के जानकार डॉ. राहत अबरार के अनुसार वह 1920 में जामिया मिलिया इस्लामिया के सह-संस्थापकों में से एक थे। मोहम्मद अली जौहर ने ने कहा था कि मैं गुलाम देश में मरना नहीं चाहता। 52 साल की उम्र में उनकी यरूशलम फिलिस्तीन में मृत्यु हुई। यरूशलम में उनकी कब्र भी बनी हुई है।
पीएम मोदी के भाषण से मैं काफी प्रभावित हुआ हूं। एएमयू में जन्में स्वतंत्रता सैनानियों काम करना शुरू कर दिया है। यूनिवर्सिटी ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह, सीमांत गांधी , मौलाना असरत मोहानी जैसे स्वतंत्रता सैनानी दिए। जिन्होंने देश को आजाद कराने में भूमिका निभाई।
- डॉ. राहत अबरार, जनसंपर्क कार्यालय एएमयू