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एएमयू बवाल : ...मैैं खुद को जानकर भी तन्हा

एसपी सिटी आशुतोष द्विवेदी का अंदाज-ए-आरामतलबी है, जिसका अंजाम सबके सामने है। मंगलवार को एएमयू में ऐसा दृश्य था, जो भविष्य के लिए भी अमंगलकारी है।

By Edited By: Published: Thu, 14 Feb 2019 04:00 PM (IST)Updated: Thu, 14 Feb 2019 04:34 PM (IST)
एएमयू बवाल : ...मैैं खुद को जानकर भी तन्हा
एएमयू बवाल : ...मैैं खुद को जानकर भी तन्हा

अलीगढ़ (अवधेश माहेश्वरी)।  यह तस्वीर देखिए, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की फिजा के सुलगने से कुछ मिनट पहले की है। एक छात्र नेता ने एसपी सिटी आशुतोष द्विवेदी से कुछ कहा, बात पूरी होते ही उनको भांप लेना चाहिए था कि शोले भड़क रहे हैैं। परंतु उनका अंदाज-ए-आरामतलबी है, जिसका अंजाम सबके सामने है। मंगलवार को एएमयू में ऐसा दृश्य था, जो भविष्य के लिए भी अमंगलकारी है। छात्रों के बीच विभाजन की गहरी रेखा खिंच गई, जिसके अक्स से ही डर लगता है।

आखिर कौन सुलगा रहा है शिक्षा के चमन का अमन?
 आखिर शिक्षा के इस चमन के अमन को कौन सुलगा रहा है? यहां घुलते जहर पर विवि प्रशासन से लेकर पुलिस-प्रशासन क्यों तब तक हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे, जब तक कि वहां गोलियों की तड़तड़ाहट नहीं गूंजने लगी। छात्रों पर हमले और इससे भी पहले दो महिला मीडियाकर्मियोंं से धक्का-मुक्की तक बात क्यों पहुंच गई?

पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई का शुतुमुर्गी अंदाज
गड़बड़ी की तस्वीर के पीछे के सच को देखें तो राजनीति की गोटियां हैैं, तो कहीं पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई का शुतुमुर्गी अंदाज भी। केंद्र सरकार की आर्थिक मदद से चल रहे विवि में एससी और पिछड़ों को आरक्षण नहीं। मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन राजनीति की पिच पर विवाद से फायदा होता हैै। कोई फैसला कोर्ट के बाहर से संभव नहीं, बस बयानों से माहौल में गर्मी आती है। मुद्दों से ठंडे लेकिन चुनाव की ओर बढ़ रहे मौसम में यह मुफीद लगती है। मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर के रंग पुराने हैैं, लेकिन हटाने की बात होती है, तो राजनीति की तस्वीर में रंग भरते हैैं। एएमयू की दीवार पर तस्वीर जस की तस ही रहती है।

एएमयू क्यों नहीं करता समानांतर कार्रवाई?
इस सबके बीच एएमयू प्रशासन के दामन पर भी छींटे तो हैैं। आखिर जब दो मामले समवर्ती हों, तो कार्रवाई का पैमाना समानांतर लाइन क्यों नहीं खींचता। तिरंगा यात्रा निकालने पर नोटिस क्यों मिलता है, और देश विरोधी नारों पर चुप्पी क्यों होती है? सच तो यही है कि विवि प्रशासन को गिरेबां में झांकना ही चाहिए। यूं एक अभिभावक को अपने दो बच्चों में भेद क्यों करना चाहिए? उनको समान परवरिश का मौका मुफीद होना ही चाहिए। मामले एएमयू जैसे पेचीदा हों, तो पुलिस-प्रशासन की तो रीति ही कानून की जगह सुविधा के रास्ते पर चलने की होती है।

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गर्म तापमान को न भांप सकी खुफिया इकाई
प्रशासन की खुफिया इकाई का तो हाल ही न पूछो। यह भी नहीं बता पाती कि माहौल किस तरह गर्म है। मंगलवार को भी जब राजनीतिक बैठक होने और उसमें एमआइएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी को बुलाए जाने की खबर गर्म थी, तो क्यों यह जानकारी लेने में फेल हो गई। जिन्ना प्रकरण में भी वह गर्म तापमान को नहीं भांप सकी। वैसे पुलिस की ओर से भी क्यों पर्याप्त फोर्स तैनात नहीं किया जा सका। राजनीतिक बैठक पर विवि प्रशासन से तालमेल बैठाने की कोशिश क्यों नहीं की गई? यह भांपने में असफल कैसे हो गए कि एक छात्र की पिटाई की रिपोर्ट दर्ज करने की मांग को लेकर इतनी तीखी प्रतिक्रिया होगी। यह एकसाथ तो संभव नहीं, अंदर ही अंदर तैयारी तो पहले से ही चल रही थी। हां, सबके इस अंदाज पर अलीगढ़ के शायर शहरयार की ये बात मुफीद लगती है-
अक्स-ए-याद-ए-यार को धुंधला किया है,
मैैंने खुद को जानकर भी तन्हा किया है।


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