एलर्जी से फूल रही सांस...टूट रही आसः कहीं आपका खानपान खराब तो नहीं
बदलती जीवनशैली खानपान व रहन-सहन कई तरह की एलर्जी का कारण बन रहा है। तमाम मरीज मौसम बदलते ही एलर्जी की वजह से हांफना शुरू कर देते हैं।
अलीगढ़ (जेएनएन)। बदलती जीवनशैली, खानपान व रहन-सहन कई तरह की एलर्जी का कारण बन रहा है। तमाम मरीज मौसम बदलते ही एलर्जी की वजह से हांफना शुरू कर देते हैं। ज्यादातर मरीज एलर्जी का इलाज कराने की बजाय होने वाली समस्या का इलाज कराते हैं। इससे बीमारी बढ़ती जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार सही समय पर ध्यान दिया जाए तो एलर्जी का स्थायी इलाज संभव है। आइए...वल्र्ड एलर्जी डे पर इससे जुड़ी बातों को जानें।
यह है कारण
रामघाट रोड स्थित एलर्जी एंड अस्था रिसर्च क्लीनिक की एलर्जी स्पेशलिस्ट डॉ. अनुजा रस्तोगी बताती हैं कि कई लोगों को धूल-धुआं, पराग कण, फंगल, पालतू जानवर, थ्रेसिंग, खुशबू, दूध, अंडा, मांस, मछली, लेटेक्स रबर आदि से परेशानियां शुरू हो जाती है। समय पर जांच व इलाज से तमाम मरीज ठीक हो जाते हैं।
दो तरह की जांच
डॉ. अनुजा ने बताया कि एलर्जी में ब्लड व स्किन टेस्ट होता है। ब्लड से एलर्जी कारक तत्वों का पता लगाया जाता है, इसे इन विट्रो टेस्ट कहते हैं। स्किन टेस्ट में यह देखा जाता है कि किस पदार्थ या एलर्जन तत्व के कारण एलर्जिक प्रतिक्रिया शुरू हुई है। दोनों जांचों का आकलन करने के बाद संबंधित एलर्जी का डिसेंसीटाइजेशन इम्युनोथेरेपी से इलाज होता है। इसमें वैक्सीन के जरिये मरीज को वापस सामान्य लोगों की तरह वातावरण में नुकसानदायक तत्वों की मौजूदगी के बावजूद प्रतिक्रिया न करने व इम्युनिटी बढ़ाने का कार्य किया जाता है। इससे मरीज को लाभ मिल जाता है। मरीज को बार-बार इन्हेलर की जरूरत नहीं पड़ती। एलर्जी में खुद से दवाएं लेने से परेशानी और बढ़ जाती है।