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AMU बवाल में निपट गए अलीगढ़ के एसपी सिटी आशुतोष द्विवेदी

एएमयू छात्र गुटों के विवाद को हल्के में लेकर सवालों में घिरे एसपी सिटी आशुतोष द्विवेदी विवाद में निपट गए हैं।

By Edited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 11:00 AM (IST)Updated: Sat, 16 Feb 2019 02:30 PM (IST)
AMU बवाल में निपट गए अलीगढ़ के एसपी सिटी आशुतोष द्विवेदी
AMU बवाल में निपट गए अलीगढ़ के एसपी सिटी आशुतोष द्विवेदी

अलीगढ़ (जेएनएन)। एएमयू छात्र गुटों के विवाद को हल्के में लेकर सवालों में घिरे एसपी सिटी आशुतोष द्विवेदी को आखिरकार हटा दिया गया। एसपी सिटी से हुई चूक की चर्चा लखनऊ तक हुई थी। स्थानीय विधायकों ने पूरे घटनाक्रम से मुख्यमंत्री को अवगत कराया था। शुक्रवार देर रात लखनऊ से जारी 50 पीपीएस अफसरों के तबादलों की लिस्ट में इनका भी नाम शामिल है। इन्हें प्रयागराज के एसपी प्रोटोकाल बनाया गया है। इनके स्थान पर आगरा के एएसपी अभिषेक कटियार को अलीगढ़ का नया एसपी सिटी नियुक्त किया गया है। वहीं, अचल ताल पर 'चाबी निकालो अभियान' के सूत्रधार रहे सीओ द्वितीय एएसपी नीरज जादौन को भी यहां से हटाकर गाजियाबाद में एसपी देहात बनाया गया है।

एसपी सिटी ने की थी अनसुनी
एएमयू में मंगलवार को छात्र गुटों की हुई झड़प के बाद उपद्रव हुआ था, जिसकी आग अभी तक भड़क रही है। एएमयू छात्र धरने पर बैठे हैं, शुक्रवार रात समझौता वार्ता भी फेल हो गई। छात्रों का आक्रोश कब थमेगा, कहा नहीं जा सकता। इस उपद्रव को रोका जा सकता था, अगर एसपी सिटी से चूक न हुई होती। बरौली के भाजपा विधायक ठा. दलवीर सिंह के नाती एएमयू छात्र नेता अजय सिंह जब अपने साथी मनीष से हुई मारपीट की शिकायत करने मंगलवार को प्रोक्टर ऑफिस गए तो यहां अधिकारियों ने अनसुनी कर दी। तब वे सर्किल चौराहे पर बैठे एसपी सिटी से मिले थे और मुकदमा दर्ज करने की मांग की।

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 न धरने पर बैठता अजय और न होता बड़ा बवाल
एसपी सिटी ने प्रोक्टर ऑफिस के जरिए पुलिस स्तर से कार्रवाई का रास्ता बताकर अजय को वापस भेज दिया।  अगर छात्र नेता को कार्रवाई का आश्वासन, तसल्ली दे दी जाती तो न वह धरने पर बैठता और न ही इतना बड़ा बवाल होता। इसकी जानकारी बरौली विधायक दलवीर सिंह, शहर विधायक संजीव राजा व कोल विधायक अनिल पाराशर ने उसी दिन मुख्यमंत्री को दे दी थी।  माना  जा रहा है कि विधायकों की शिकायत पर एसपी सिटी को हटाया गया है। शासन ने 2015 बैंच के आईपीएस अफसरों को भी नए जिलों में तैनाती दी है।

जागरण ने उठाया था अहम मुद्दा
 मंगलवार को जब बवाल हुआ तो पुलिस की लापरवाही साफ नजर आ रही थी, जिन्‍हें जागरण ने प्रमुखता से उठाया और बताया हालात कैसेट संभल सकते थे। पढ़िए इस पर प्रकाशित हस्‍तक्षेप

  ...मैं खुद को जानकर भी तन्हा



अलीगढ़ (अवधेश माहेश्वरी)। यह तस्वीर देखिए, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की फिजा के सुलगने से कुछ मिनट पहले की है। एक छात्र नेता ने एसपी सिटी आशुतोष द्विवेदी से कुछ कहा, बात पूरी होते ही उनको भांप लेना चाहिए था कि शोले भड़क रहे हैैं। परंतु उनका अंदाज-ए-आरामतलबी है, जिसका अंजाम सबके सामने है। मंगलवार को एएमयू में ऐसा दृश्य था, जो भविष्य के लिए भी अमंगलकारी है। छात्रों के बीच विभाजन की गहरी रेखा खिंच गई, जिसके अक्स से ही डर लगता है।

आखिर कौन सुलगा रहा है शिक्षा के चमन का अमन?

 आखिर शिक्षा के इस चमन के अमन को कौन सुलगा रहा है? यहां घुलते जहर पर विवि प्रशासन से लेकर पुलिस-प्रशासन क्यों तब तक हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे, जब तक कि वहां गोलियों की तड़तड़ाहट नहीं गूंजने लगी। छात्रों पर हमले और इससे भी पहले दो महिला मीडियाकर्मियोंं से धक्का-मुक्की तक बात क्यों पहुंच गई?

पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई का शुतुमुर्गी अंदाज

गड़बड़ी की तस्वीर के पीछे के सच को देखें तो राजनीति की गोटियां हैैं, तो कहीं पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई का शुतुमुर्गी अंदाज भी। केंद्र सरकार की आर्थिक मदद से चल रहे विवि में एससी और पिछड़ों को आरक्षण नहीं। मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन राजनीति की पिच पर विवाद से फायदा होता हैै। कोई फैसला कोर्ट के बाहर से संभव नहीं, बस बयानों से माहौल में गर्मी आती है। मुद्दों से ठंडे लेकिन चुनाव की ओर बढ़ रहे मौसम में यह मुफीद लगती है। मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर के रंग पुराने हैैं, लेकिन हटाने की बात होती है, तो राजनीति की तस्वीर में रंग भरते हैैं। एएमयू की दीवार पर तस्वीर जस की तस ही रहती है।

एएमयू क्यों नहीं करता समानांतर कार्रवाई?
इस सबके बीच एएमयू प्रशासन के दामन पर भी छींटे तो हैैं। आखिर जब दो मामले समवर्ती हों, तो कार्रवाई का पैमाना समानांतर लाइन क्यों नहीं खींचता। तिरंगा यात्रा निकालने पर नोटिस क्यों मिलता है, और देश विरोधी नारों पर चुप्पी क्यों होती है? सच तो यही है कि विवि प्रशासन को गिरेबां में झांकना ही चाहिए। यूं एक अभिभावक को अपने दो बच्चों में भेद क्यों करना चाहिए? उनको समान परवरिश का मौका मुफीद होना ही चाहिए। मामले एएमयू जैसे पेचीदा हों, तो पुलिस-प्रशासन की तो रीति ही कानून की जगह सुविधा के रास्ते पर चलने की होती है।

गर्म तापमान को न भांप सकी खुफिया इकाई
प्रशासन की खुफिया इकाई का तो हाल ही न पूछो। यह भी नहीं बता पाती कि माहौल किस तरह गर्म है। मंगलवार को भी जब राजनीतिक बैठक होने और उसमें एमआइएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी को बुलाए जाने की खबर गर्म थी, तो क्यों यह जानकारी लेने में फेल हो गई। जिन्ना प्रकरण में भी वह गर्म तापमान को नहीं भांप सकी। वैसे पुलिस की ओर से भी क्यों पर्याप्त फोर्स तैनात नहीं किया जा सका। राजनीतिक बैठक पर विवि प्रशासन से तालमेल बैठाने की कोशिश क्यों नहीं की गई? यह भांपने में असफल कैसे हो गए कि एक छात्र की पिटाई की रिपोर्ट दर्ज करने की मांग को लेकर इतनी तीखी प्रतिक्रिया होगी। यह एकसाथ तो संभव नहीं, अंदर ही अंदर तैयारी तो पहले से ही चल रही थी। हां, सबके इस अंदाज पर अलीगढ़ के शायर शहरयार की ये बात मुफीद लगती है-

अक्स-ए-याद-ए-यार को धुंधला किया है,
मैैंने खुद को जानकर भी तन्हा किया है।


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