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मलिन बस्तियों में शिक्षा के साथ आत्मरक्षा के टिप्स दे रहीं अलीगढ़ की ममता

जिन मलिन बस्तियों में शिक्षा की लौ दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती थी।आज वहां ककहरा गूंज रहा है। लेखपाल ममता चौधरी अत्री के प्रयासों से उन परिवारों के सपने पूरे हो रहे हैं।

By Edited By: Published: Fri, 08 Mar 2019 05:45 PM (IST)Updated: Thu, 21 Mar 2019 04:13 PM (IST)
मलिन बस्तियों में शिक्षा के साथ आत्मरक्षा के टिप्स दे रहीं अलीगढ़ की ममता
मलिन बस्तियों में शिक्षा के साथ आत्मरक्षा के टिप्स दे रहीं अलीगढ़ की ममता

अलीगढ़ (विवेक शर्मा)। कस्बे की जिन मलिन बस्तियों में शिक्षा की लौ दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती थी। बच्चे भी दिनभर धूल-मिट्टी में लिपटे रहते थे, आज वहां ककहरा गूंज रहा है। लेखपाल ममता चौधरी अत्री के प्रयासों से उन परिवारों के सपने पूरे हो रहे हैं, जिनके बच्चे आर्थिक तंगी के चलते स्कूल नहीं जाते। ढाई साल से लेखपाल ऐसे बच्चों को पढ़ा रही हैैं। बीच में पढ़ाई छोडऩे वाली बच्चियों फिर से स्कूलों से जोडऩे का काम कर रही हैैं। इसके लिए अभिभावकों को प्रेरित कर रही हैैं।

मलिन बस्तियों का हाल देख हुईं भावुक
ममता मूलरूप से टप्पल ब्लॉक के गांव स्यारौल की हैैं। पिता जवाहर सिंह किसान हैं। तीन बहनों में दूसरे नंबर की ममता ने स्नातक किया है। 2016 में राजस्व लेखपाल के रूप में भर्ती हुई। पहली तैनाती गभाना में मिली। यहां की मलिन बस्तियों का हाल देख भावुक हो गईं। मासूम कूड़े के ढेर से पॉलीथिन तलाशते थे। इनका पढ़ाई से लेना-देना नहीं था।

ऐसे जगाई शिक्षा की अलख
बातचीत की तो बच्चों ने पढऩे की इच्छा जताई। झुग्गियों के बीच एक टूटे-फूटे मकान की सफाई कराकर ममता ने शिक्षा की अलख जगाई। सुबह-शाम ममता बच्चों के बीच होती हैैं। शुरू में कुछ लोगों ने विरोध किया, जिसके चलते कम बच्चे आए। बाद में तस्वीर बदलती चली गई। 10 बच्चों से शुरू की गई क्लास में अब 150 से भी ज्यादा है। इन्हें सरकारी व निजी स्कूलों में भी प्रवेश दिलाया गया है। फीस, कॉपी, पेंसिल, स्टेशनरी का खर्चा 'हमारी एक पहल' संस्था के सदस्य मिलकर उठा रहे हैं, जिसमें बड़ा हिस्सा ममता का होता है। संस्था से 25 लोग जुड़े हुए हैं। ममता का मानना है कि जीवन में शिक्षा बहुत जरूरी है, बिना इसके कुछ भी संभव नहीं है।

मार्शल आर्ट से आत्मरक्षा के गुर
ममता मार्शल आर्ट के जरिये बालिकाओं को आत्मरक्षा के गुर भी सिखा रही हैं। इसके लिए डीजीपी ओपी सिंह उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। कई अधिकारी भी इस अभियान से जुड़ चुके हैं।

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छोटी-सी उम्र में बड़ा काम कर रहीं अंकिता
अलीगढ़ (योगेश कौशिक)। चूल्हे-चौके तक सीमित रहने वाली महिलाएं अब बड़े-बड़े काम कर रही हैैं, वो भी छोटी उम्र में। जिला मुख्यालय से 18 किमी दूर इगलास तहसील की ग्राम पंचायत ताहरपुर की प्रधान अंकिता दीक्षित ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। 20 वर्षीय प्रधान ने इतने बड़े स्तर पर विकास कार्य कराए हैैं कि गांव की सूरत ही बदल गई है।

गांव में थीं अनेक समस्याएं
स्नातक पास अंकिता जनवरी 2016 में प्रधान बनीं। जिस समय अंकिता के हाथ मेंं प्रधानी आई थी, तब 300 परिवारों के 2500 की आबादी वाले गांव ताहरपुर में समस्याओं का अंबार था। ज्यादातर सड़कें बदहाल थीं। अधिकांश घरों में शौचालय नहीं थे। शपथ लेने के साथ ही अंकिता ने गांव को आदर्श बनाने का संकल्प लिया। अपने खर्च पर गरीबों को कंबल बंटवाए। गांव वालों को शौचालय के लिए जागरूक किया। 17 लाख रु पये खर्च कर 148 घरों में शौचालय बनवाए। अब सभी घरों में शौचालय हैं। ग्र्राम पंचायत का बजट कम पड़ा तो मंडी समिति से 12.50 लाख रु पये मंजूर कराकर सड़कें बनवाईं।

सांसद व विधायक निधि से कराए काम
 सांसद सतीश गौतम से आग्रह कर उनकी निधि से इंटरलॉकिंग सड़क मंजूर कराई। एक सड़क विधायक निधि से भी मंजूर कराई। 24 लाख में मनरेगा से इंटरलॉकिंग व खडंज़ा लगवाया। अब गांव में कोई भी मार्ग क'चा नहीं है।  18 लाख रु पये में मॉडल गोशाला का निर्माण कराया है। सड़कों पर 3.50 लाख रुपये की सोलर लाइट और पानी की समस्या का निदान कर अंकिता ने विकास की नई लकीर खींच दी है। वे कहती हैैं कि प्रधान बनने के बाद काफी चुनौतियां सामने थीं, लेकिन हर बाधा को सभी के सहयोग से पार कर सफलता पाई है। अब गांव को डिजिटल बनाने का सपना है।


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