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अलीगढ़ के धरणीधर तीर्थ स्थल बिना ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा अधूरी

चारों धामों में ब्रजधाम का महत्व अलग है। इसकी चौरासी कोस परिक्रमा अलीगढ़ के धरणीधर तीर्थस्थल के बिना अधूरी है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 28 May 2018 12:55 PM (IST)Updated: Mon, 28 May 2018 12:55 PM (IST)
अलीगढ़ के धरणीधर तीर्थ स्थल बिना ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा अधूरी
अलीगढ़ के धरणीधर तीर्थ स्थल बिना ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा अधूरी

योगेश कौशिक, अलीगढ़ : मुक्ति कहे गोपाल से, मेरी मुक्ति बताय, ब्रज रज उड़ी मस्तक लगे, मुक्ति मुक्त हो जाय।

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इन पंक्तियों में ब्रज का सार समाहित है। जिसे समझने और देखने विदेशों से भी लोग ब्रज आते हैं। ब्रज रज ले जाते हैं। इस रज में श्रीकृष्ण की गंध महसूस होती है। यमुना से जुड़ी बाल और कंस टीला पर संहार की लीला के दर्शन होते हैं। गोवर्धन, बरसाना, नंदगांव सहित पूरे ब्रज में स्नेह और प्यार के न जाने कितने किस्से लोगों के जेहन में हैं, जिन्हें सुन श्रीकृष्ण की आस्था में डूब जाते हैं। यही ब्रजधाम है, जिसकी परिक्रमा को सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। पुराणों में भी ब्रज धाम को चारों धामों से निराला बताया गया है। अधिकमास के शुरू होने के साथ ही ब्रज धाम यानी 84 कोस की परिक्रमा शुरू हो गई है, जिसके प्रति आस्था का कोई अंत नहीं। यह परिक्रमा अलीगढ़ जिले में इगलास तहसील क्षेत्र के कस्बा बेसवा स्थित ऋषि विश्वामित्र की तपोस्थली धरणीधर सरोवर के बिना अधूरी ही मानी जाती है। जो लोग चलने में असमर्थ होते हैं, उन्हें धरणीधर की परिक्रमा से ही 84 कोस का पुण्य मिल जाता है।

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पुरुषोत्तम मास में लगभग दस लाख श्रद्धालु धरणीधर की परिक्रमा करते हैं। इसकी शुरूआत कहां से शुरू की जाए, ऐसा कुछ तय नहीं है। जहा से ब्रज रज माथे पर लगा लें, वहीं से परिक्रमा प्रारंभ कर सकते हैं और उसी स्थान पर वापस आने पर पूर्ण मानी जाती है।

अनेक श्रद्धालु धरणीधर सरोवर में स्नान व जलआचमन करके परिक्रमा शुरू करते हैं। यहा का अलग महत्व है। सतयुग में ऋषि विश्वामित्र ने बेसवा में जन कल्याण के लिए यज्ञ किया था। तब ताड़का सहित अन्य राक्षस व्यवधान डालते थे। इसके चलते विश्वामित्र अयोध्या से श्रीराम व लक्ष्मण को अपने साथ यहा लाए, जिन्होंने ताड़का नामक राक्षसी का वध किया था। इसके बाद यज्ञ सफल हुआ। बाद में यज्ञ कुंड ही धरणीधर सरोवर हो गया। सरोवर पृथ्वी का नाभी केंद्र है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने यहा गाय चराईं। यहा से जुड़ी गोचारण लीला का वर्णन पुराणों में भी है। श्रीकृष्ण व श्रीराम के चरण पड़ने के चलते यह स्थल ब्रज में खास हो गया। परिक्रमा में इसे विशेष महत्व मिला है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धरणीधर के आस-पास लगभग दर्जनभर प्राचीन धर्मशालाएं हैं। यहा बड़ी संख्या में श्रद्धालु दंडौती परिक्रमा लगाते हैं। एक माह तक मेले का आयोजन होता है। अलीगढ़ के दस गाव परिक्रमा में पड़ते हैं, जिनमें कूबरा, गोरई, श्रृंगारगढ़ी, कालिंजरी, बेसवा, नयाबास, कालाआम, साथिनी, पिथैर, मान चूहरा शामिल हैं। यह रास्ता लगभग 20 किमी का है।

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इसलिए है अधिक महत्व

ज्योतिष के अनुसार चंद्रगणना विधि से ही काल गणना की जाती है। चंद्रमा की 16 कलाओं को आधार मानकर दो पक्ष कृष्ण और शुक्ल का एक माह माना जाता है। कृष्ण पक्ष के पहले दिन से पूर्णिमा की अवधि तक साढ़े 29 दिन होते हैं। इस तरह एक साल में 354 दिन होते हैं और पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा 365 दिन छह घटे में करती है। इस कारण चंद्र गणना के हिसाब से 11 दिन तीन घड़ी और 48 पल का अंतर हर साल पड़ जाता है। फिर यही अंतर तीन साल में बढ़ते बढ़ते लगभग एक साल का हो जाता है। इसे ही दूर करने के लिए तीन वर्ष में एक बार अधिकमास की परंपरा रखी गई। अधिकमास के दोनों ही पक्षों में संक्रांति नहीं होती। इस बार ज्येष्ठ अधिकमास 16 मई से 13 जून, 2018 तक रहेगा। सालभर के उत्सव होंगे एक माह में

इस माह ब्रज के मंदिरों में में उन सारे उत्सवों की पुनरावृत्ति होती है जो पूरे साल आयोजित किए गए हैं। होली का पर्व यहा बड़े स्तर पर होता है। भगवान नृसिंह का प्राकट्य अधिक मास में हुआ था। यही कारण है कि इस महीने हर मंदिर, मठ में नृसिंह जयंती मनाई जाती है। इसके अलावा जिस गिरिराज पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण ने खुद पूजा, उसकी इस मास में परिक्रमा करने से विशेष फल मिलता है।

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ये हैं पड़ाव स्थल

ब्रजभूमि की ये पौराणिक यात्रा हजारों साल पहले शुरू हुई। यह 40 दिन में पूरी होती है। परिक्रमा के 35 पड़ाव हैं। मथुरा से चलकर यात्रा सबसे पहले भक्त ध्रुव की तपोस्थली ध्रुव घाट, मधुवन, तालवन, कुमुदवन, शातनु कुंड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुंड, गोवर्धन, काम्यक वन, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुंड, काम्यवन, बरसाना, नंदगाव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ़, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भाडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुंड, कबीर कुंड, भोयी कुंड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्माड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, लोहवन से होकर वृंदावन जाती है। चौरासी कोस यात्रा मार्ग मथुरा के अलावा अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फरीदाबाद की सीमा तक में पड़ता है। इसका अस्सी फीसदी हिस्सा मथुरा में है।

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खास बातें

-धरणीधर तीर्थ स्थल भारत का एक मात्र तीर्थस्थल जहा श्रीकृष्ण व श्रीराम के चरण पड़े

-252 किलो मीटर की है चौरासी कोस की परिक्रमा, 40 दिन में होती है पूरी

-35 पड़ाव स्थल हैं, मथुरा, आगरा, अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव व फरीदाबाद के 94 गांव पड़ते हैं

-80 फीसद हिस्सा परिक्रमा का मथुरा में है, 10 गाव अलीगढ़ जिले के पड़ते हैं।

-16 मई को शुरू हुआ है ज्येष्ठ अधिकमास, 13 जून तक रहेगा।

-16 चंद्रमा की कलाओं को आधार मानकर दो पक्ष कृष्ण और शुक्ल का एक माह माना जाता है

-15 वीं शताब्दी में माधव संप्रदाय के आचार्य माधवेंद्रपुरी की यात्रा का भी वर्णन मिलता है।

-16 वीं शताब्दी में महाप्रभु वल्लभाचार्य, गोस्वामी विट्ठलनाथ, चेतन्य महाप्रभु, रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, नारायण भट्ट, निम्बार्क संप्रदाय के चतुरानागा आदि ने भी दी यह परिक्रमा।


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