Iran के बाद AMU ने विकसित की जबड़ा जोडऩे की तकनीक, 40 मरीजों पर प्रयोग सफल Aligarh News
एएमयू के डेंटल कॉलेज में ईरान की तर्ज पर जबड़ा जोडऩे की नई तकनीक विकसित की गई है। मरीजों का इलाज अब नई तकनीक से ही हो रहा है।
संतोष शर्मा, अलीगढ़ : अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के डेंटल कॉलेज में ईरान की तर्ज पर जबड़ा जोडऩे की नई तकनीक विकसित की गई है। मरीजों का इलाज अब नई तकनीक से ही हो रहा है। इसमें मरीज के जबड़े के नीचे के हिस्से में प्लेट लगाई जाती है, जो दबाव झेलने में सक्षम होती है। विशेष प्रकार की मशीन व सॉफ्टवेयर से जबड़े की मजबूती को परखा भी गया है। एएमयू इस तकनीक को पेंट कराने की तैयारी में है।
यह है तकनीकि
डेंटल कॉलेज के ओरल एंड मैग्जीलोफेशियल सर्जरी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गुलाम सरवर हाशिमी ने यह तकनीक विकसित की है। डेंटल कॉलेज में अभी तक फ्रांस के वैज्ञानिक मैक्सिने सैंपीस की तकनीक से इलाज होता था। इसमें जबड़ा टूटने पर प्लेट बाहर की तरफ से लगाई जाती थी, जिसे सैंपीस प्रिंसिपल भी कहा जाता था। इस तकनीक में भी जबड़ा जोडऩे में दो प्लेटों का इस्तेमाल होता है। यह तकनीक विश्वविख्यात है और अधिकतर इसी का इस्तेमाल होता है। 2014 में ईरान के आमिन रेनपेक्स ने जबड़े के नीचे प्लेट डालकर जबड़ा जोडऩे की तकनीक विकसित की।
तीन साल की मेहनत के बाद मिली सफलता
डॉ. हाशिमी ने बताया कि ईरानी तकनीक से जबड़ा जोडऩे की तकनीक पर तीन साल पहले काम शुरू किया गया था। इस तकनीक में मरीज के जबड़े को जोडऩे के लिए नीचे के हिस्से में प्लेट लगाई गईं। मरीज के खाना खाने के दौरान जबड़ा दबाव सह लेगा या नहीं, इसकी जांच के लिए ग्नेथोमीटर का इस्तेमाल किया गया। ग्नेथोमीटर को यूनिवर्सिटी के इंजीनियङ्क्षरग कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियङ्क्षरग डिपार्टमेंट के डॉ. आबिद खान से तैयार कराया गया था। ग्नेथोमीटर की जांच में जबड़े का दबाव सही पाया गया। पूरी प्रक्रिया की पुष्टि के लिए यूनिवर्सिटी के ही डिवीजन ऑफ आर्गेनोमिक्स के डॉ. फहद अनवर की मदद ली गई। डॉ. अनवर ने स्टडी जांच के लिए फाइनाइट एलीमेंट एनालिसिस मॉडल डेवलप किया। इससे पता चला कि इस तकनीक में जबड़े में पैदा हो रहा दबाव फ्रांस की तकनीक से किसी भी तरह कम नहीं है।
पहली बार तकनीक इस्तेमाल हुई
डॉ गुलाम सरवर हाशिमी का कहना है कि इस विधि से 40 से अधिक मरीजों का इलाज हुआ है। किसी ने कोई शिकायत नहीं की है। भारत में पहली बार यह तकनीक इस्तेमाल हुई है, जिसे पेटेंट कराया जाएगा।