आखिरकार अलीगढ़ में दशानन बनी समस्याओं का कब होगा अंत ?
विजयादशमी पर बुराई के प्रतीक रावण का दहन होगा। मगर, चिंता इस बात की है कि जनता की समस्या रूपी बुराइयों का अंत करने कौन से राम आएंगे?
अलीगढ़ (जेएनएन)। विजयादशमी पर बुराई के प्रतीक रावण का दहन होगा। मगर, चिंता इस बात की है कि जनता की समस्या रूपी बुराइयों का अंत करने कौन से राम आएंगे? बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य आदि ऐसी समस्याएं हैं, जिनके प्रति अधिकारी व जनप्रतिनिधि गंभीर नहीं दिखते हैं। हकीकत में विजयादशमी का संदेश निरथक साबित हो रहा है। आखिर कब मरेगा नई सूरत में जन्मा रावण?
शोहदों की हरकतों से बेबस हैं बेटियां
एंटी रोमियो स्क्वाड गठित कर बेटियों को भयमुक्त वातावरण देने की योजना शोहदों की हरकतों के आगे कारगर नहीं हो पा रही। स्कूल, कॉलेजों के बाहर, सार्वजनिक स्थानों पर मनचले जमघट लगाकर छींटाकशी करते हैं, मगर स्क्वाड कहीं नजर नहीं आता। एसएसपी अजय साहनी ने कॉलेजों पर शिकायत पेटिका लगवाने का दावा किया था, मगर एक भी पेटिका किसी कॉलेज पर नहीं लगी। शोहदों की हरकतें कैमरे में कैद कर कार्रवाई करने का जो फार्मूला पुलिस ने अपनाया था, वह भी असर नहीं दिखा रहा है। न ही अभी तक कोई कार्रवाई हुई है। जबकि गठित की गई टीम को नियमित गश्त करने के निर्देश थे, मगर ऐसा हो नहीं रहा।
खत्म नहीं हुई बदबू
चर्बी उबालने से उठने वाली बदबू से वर्षों से शहर के लोग परेशान हैं। मगर, आजतक इस समस्या से निजात नहीं मिली। शहरवासियों को यह उम्मीद थी कि योगी सरकार में कम से कम दुर्गंध से छुटकारा मिल जाएगा, मगर इस सरकार में भी कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, जिससे शहरवासियों को बदबू से निजात मिल सके। बारिश के बाद शहर में चर्बी उबालने के लिए भट्ठियां धधकना शुरू हो जाती हैं। मकदूम नगर, देहलीगेट, भुजपुरा और तो और जीवनगढ़ में भी अब कारोबार शुरू हो गया है। चर्बी की दुर्गंध के चलते यह स्थिति हो जाती है कि लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जाता है। खिड़की-दरबाजा बंद करने के बाद भी बदबू नहीं रुकती है। फिर, शहर में विरोध शुरू हो जाता है। पुलिस-प्रशासन गले की फांस निकालने के लिए एक-दो स्थानों पर कार्रवाई कर शांत बैठ जाते हैं, उसके बाद फिर वही स्थिति शुरू हो जाती है। बदबू नामक बुराई का अंत आजतक नहीं हुआ।
फिर भी गड्ढे हैं बरकरार
जिले में सड़कों की संख्या 1374 हैं, जिनकी लंबाई 3400 किमी है। इन सड़कों के लिए प्रतिवर्ष 200 से लेकर 300 करोड़ के बीच बजट आता है। इसमें सड़कों के निर्माण, गड्ढों के भरे जाने और मरम्मत का काम होता है। मगर, प्रत्येक वर्ष यह भारी भरकम बजट खर्च होने के बाद भी सड़कों की स्थिति में सुधार नहीं होता है। अभी भी जिले में सड़कें गड्ढायुक्त हैं। सबसे खास बात है कि कई ऐसी सड़कें हैं, जो निर्माण होने के कुछ दिन बात की गड्ढों में तब्दील होने लगती हैं, जबकि नियमानुसार दो साल तक क्षतिग्रस्त होने पर उसके निर्माण की जिम्मेदारी भी ठेकेदार की होती है, मगर कई बार देखा जाता है कि सड़क पर गड्ढे बने रहते हैं और उसे भरा नहीं जाता है। वर्षों बाद भी चमचमाती सड़कों का सपना हकीकत में नहीं बदला।