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गोमूत्र और गोबर नाली में बहाया तो होगी कार्रवाई Aligarh news

नदी के किनारे भी गोशालाएं नहीं होंगी। इससे शहर की तमाम गोशालाएं जद में आएंगी। मनमानी तरीके से नालियों और नालों में गोबर और गोमूत्र को भी नहीं फेंक सकेंगे।

By Parul RawatEdited By: Published: Fri, 17 Jul 2020 04:53 PM (IST)Updated: Fri, 17 Jul 2020 04:53 PM (IST)
गोमूत्र और गोबर नाली में बहाया तो होगी कार्रवाई Aligarh news
गोमूत्र और गोबर नाली में बहाया तो होगी कार्रवाई Aligarh news

अलीगढ़, [जेएनएन]। शहर के गली-मुहल्लों में चल रही तमाम गोशालाएं और गोपालकों को अब नये नियम के तहत काम करना पड़ेगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसके लिए नई गाइड लाइन जारी की है। इसके अंतर्गत शहर में चल रही गोशालाएं बाहर होंगी। नदी के किनारे भी गोशालाएं नहीं होंगी। इससे शहर की तमाम गोशालाएं जद में आएंगी। मनमानी तरीके से नालियों और नालों में गोबर और गोमूत्र को भी नहीं फेंक सकेंगे।

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जिले में 120 सरकारी गोशालाएं हैं। इसमें करीब 15 हजार गोवंश हैं। प्राइवेट गोशालाएं भी जिले में 50 के करीब होंगी। शहर में भी गोशालाएं चल रही हैं। आबादी क्षेत्र में चलने के कारण इनका गोबर और गोमूत्र नालियों में जाता है, जिससे नाले चोक हो जाते हैं। इससे बारिश के दिनों में काफी दिक्कत होती है, साथ ही गोवंश को टहलने में भी दिक्कत होती है। हालांकि, अधिकांश गोशालाएं ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही हैं, जहां गाय के गोबर और गोमूत्र के निष्पादन की व्यवस्था है। जिले में लोधा क्षेत्र में स्थित गोशाला में गाय के गोबर से जैविक खाद और गोमूत्र से सैनिटाइजर बनाया जा रहा है। शेखाझील स्थित गोशाला में तो धूपबत्ती बनाई जा रही है।

गोशाला संचालक बोलें 

जरारा गोशाला संचालक बोले अभिनव गोस्वामी का कहना है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का निर्णय अच्छा है। इससे शहर में प्रदूषण नहीं होगा। गोशाला संचालक चाहे तो गोवंश के मूत्र और गोबर से तमाम ऐसी सामग्री बनाकर आय भी कर सकते हैं। लोधा गोशाला संचालक गिरवर शर्मा का कहना है कि मेरे यहां गोमूत्र से सैनिटाइजर बनाया जा रहा है। कीटनाशक दवाएं भी बनाई जा रही हैं, जिनका फसलों पर छिड़काव किया जाता है, साथ ही गोबर से जैविक खाद भी बना रहे हैं। सभी गोशालाओं को ऐसा करना चाहिए। शेखाझील गोशाला संचालक संतोष सिंह का कहना है कि शहर से बाहर गोशालाओं का निर्णय सही है, जिससे गोवंश को टहलने और हरे चारे की दिक्कत नहीं होगी। गोबर और गोमूत्र से आज तमाम चीजें बनाई जा रही हैं। उनमें से जीवामृत भी है, जो खेती के प्रयोग में किया जा रहा है। नगला मसानी गोशाला की संयोजिका कृष्णा गुप्ता का कहना है कि गोवंश हमारे लिए सदैव उपयोगी रहे हैं। आज हर तरफ सैनिटाइजर के छिड़काव की बात हो रही है, मगर पहले हम लोग गाय के गोबर से घर को लीप लिया करते थे, इससे बड़ी दवा कोई और नहीं थी। गोमूत्र और गोबर का प्रयोग हमें करना होगा।


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