अलीगढ़ [सुमित शर्मा]। वह संघर्ष से न थकी है न रुकी। लंबे समय
हालातों
से मुकाबला करने वाली एसिड अटैक की शिकार जीतू शर्मा की जिंदगी
शीरोज
हैंगआउट
कैफे से
जुड़कर
अब लौटने लगी है।
हालातों
से संघर्ष करने के लिए प्रेरित करने वाली इस युवती ने जरूरतमंदों की मदद करने को जीवन का मकसद बना लिया है। लॉकडाउन में कई परिवारों की मदद की। गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा भी दे रही हैं। वह कहती भी है कि मैं दर्द को समझती हूं। इसीलिए लोगों के दर्द को बांटने का प्रयास करती हूं। किसी के काम आती हूं तो अच्छा लगता है।
शायद आप पहचान ही गए होंगे। यह वहीं जीतू शर्मा हैं जो छपास फिल्म में नजर आई थीं।
बरौला
जाफराबाद में रहती हैं। लॉकडाउन से पहले अलीगढ़ आईं। तभी से मोहल्ले के 10-15 गरीब बच्चों को घर पर मुफ्त पढ़ा रही हैं। जुलाई में बिजली का बिल जमा करने गई थीं। वहां एक महिला परेशान दिखीं। पता चला कि पांच बेटियां हैं। पति की आंखें नहीं है। जीतू उनके घर गईं। आर्थिक मदद करने के साथ बेटियों की पढ़ाई का
बीड़ा
उठाया। स्वर्ण जयंती नगर के ऐसे दो परिवार को राशन दिया, जिनके यहां चूल्हे बंद होने की नौबत आ गई थी। वे बताती हैं कि आगरा की एक युवती गले में दिक्कत की वजह से
ऑपरेशान
कराना चाहती थी। सोशल मीडिया पर पोस्ट देखकर संपर्क किया। अधिक से अधिक मदद की जा रही है। जितना हो सकता है, मदद करती हूं। दूसरों की खुशी से मेरी खुशी बढ़ती है।
हिम्मत से जीती जंग
2014 में एक
अधेड़
ने एसिड अटैक किया था। तब 16 वर्ष की थीं। इसके चलते तीन साल जिंदगी से संघर्ष किया। वह बताती हैं कि जिन
हालातों
का मैंने सामना किया है, शायद कोई महसूस भी ना करना चाहे। राह चलते लोग कमेंट करते थे। चेहरा देखकर हट जाते थे। पर,
हालातों
को हराने वाली हिम्मत जीतू के काम आई।
ऐसे हटा नकाब
2017 में
शीरोज
कैफे के बारे में पता चला तो आगरा पहुंच गईं। वहां अपने जैसी युवतियां देखी। किसी का आंखें नहीं थी तो किसी की स्किन खराब थी। वो चेहरा नहीं छिपा रही थीं। उस दिन जीतू ने भी चेहरे से नकाब हटा दिया।
शीरोज
कैफे नहीं, हमारी पहचान
जीतू कहती हैं कि
शीरोज
कैफे रेस्टोरेंट नहीं है। हमारी पहचान है।
शीरोज
एहसास कराता है कि हम फाइटर हैं। हीरो हैं। हमारा चेहरा खराब हो सकता है, मगर हौसला कम नहीं होगा। कैफे आगरा व लखनऊ में है। 30 युवतियां काम करती हैं। जीतू कैश मैनेजर हैं।