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Vinoba Bhave Birth Anniversary: अलीगढ़ में आचार्य विनोबा भावे की 127वीं जयंती मनाई गई

Acharya Vinoba Bhave Birth Anniversary परोपकार सामाजिक सेवा संस्था के तत्वावधान में स्वतंत्रता सेनानी एवं महान संत आचार्य विनोबा भावे की 127वीं जयंती मनाई गई। कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने आचार्य के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।

By Mohammad Aqib KhanEdited By: Published: Sun, 11 Sep 2022 06:03 PM (IST)Updated: Sun, 11 Sep 2022 06:03 PM (IST)
Vinoba Bhave Birth Anniversary: अलीगढ़ में आचार्य विनोबा भावे की 127वीं जयंती मनाई गई
Vinoba Bhave Birth Anniversary: अलीगढ़ में आचार्य विनोबा भावे की 127वीं जयंती मनाई गई : जागरण

अलीगढ़, जागरण टीम: अलीगढ़ के इगलास में परोपकार सामाजिक सेवा संस्था के तत्वावधान में गांव तोछीगढ़ में महान स्वतंत्रता सेनानी एवं सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रसिद्ध गांधीवादी नेता व महान संत आचार्य विनोबा भावे की 127वीं जयंती मनाई गई। कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने आचार्य के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।

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संस्था के अध्यक्ष जतन चौधरी ने ग्रामीण युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य विनोबा भावे को भारत का राष्ट्रीय अध्यापक और महात्मा गांधी का अध्यात्मिक उत्तराधिकारी माना जाता है। विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरि भावे था। वह महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण परिवार से थे। आचार्य विनोबा भावे बचपन से ही गणित के प्रेमी और वैज्ञानिक सूझबूझ वाले छात्र थे। उनकी माता रुक्मिणी बाई विदुषी महिला थीं। गणित की सूझ-बूझ और तर्क-सामर्थ्य, विज्ञान के प्रति गहन अनुराग, परंपरा के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तमाम तरह के पूर्वाग्रहों से अलग हटकर सोचने की कला उन्हें पिता की ओर से प्राप्त हुई। जबकि मां की ओर से मिले धर्म और संस्कृति के प्रति गहन अनुराग, प्राणीमात्र के कल्याण की भावना व जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, सर्वधर्म समभाव, सहअस्तित्व और ससम्मान की कला।

आगे चलकर विनोबा को गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माना गया लेकिन वे गांधी के ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारी’ से बहुत आगे, स्वतंत्र सोच के स्वामी थे। महात्मा गांधी के सानिध्य में आने से पहले ही विनोबा आध्यात्मिक ऊंचाई प्राप्त कर चुके थे। आश्रम में आने के बाद भी वे अध्ययन-चिंतन के लिए नियमित समय निकालते थे।

स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी की वजह से आचार्य को कई बार कारावास भी जाना पड़ा था। देश के भूमिहीन, गरीब, कृषि मजदूरों के भविष्य को देखते हुए आचार्य ने 1951 में पूरे देश में भूदान आन्दोलन आरम्भ किया गया जो कि एक स्वैच्छिक भूमि सुधार आन्दोलन था।

आचार्य और उनके सभी साथियों के अथक परिश्रम से देश के लगभग सभी बड़े जमींदारों से भूमिहीनों को भूमि दिलवाई गयी और आंदोलन को सफल बनाया गया। अहिंसात्मक तरीके से देश में सामाजिक परिवर्तन लाने आचार्य विनोबा भावे ने सर्वोदय समाज की स्थापना की। बीसियों भाषाओं के ज्ञाता विनोबा देवनागरी को विश्व लिपि के रूप में देखना चाहते थे।

अंत में 1937 में विनोबा भावे पवनार आश्रम में चले गये। तब से लेकर जीवन पर्यन्त उनके रचनात्मक कार्यों को प्रारंभ करने का यही केन्द्रीय स्थान रहा। उनके व्यक्तित्व में संत, शिक्षक व साधक तीनों का समन्वय था। आचार्य ने समता, भक्ति, उद्योग व स्वावलम्बन आदि विषयों पर सभी देशवासियों को नियमित संदेश देकर जागरूक करते रहते थे। उन्होंने अपना सारा जीवन एक साधक की तरह बिताया, वे रिषी, गुरु व क्रांतिदूत सभी कुछ थे। अद्भुत व्यक्तित्व के प्रकाश-पुरुष आचार्य का निधन 15 नवंबर 1982 को हुआ था। वर्ष 1983 में इन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सम्मान से विभूषित किया गया।

इस अवसर पर राम प्रकाश सिंह, चित्तर सिंह, धर्मेंद्र सिंह, गौरव चौधरी, पंकज ठैनुआं, यदुवीर सिंह, गोल्डी, निखिल, योगेश, डब्बू शर्मा आदि मुख्यरूप से उपस्थित रहे।


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