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अलीगढ़ में खाकी का नया अवतार, रक्षक, योद्धा के साथ बनी मददगार

21 अक्टूबर 1959 में सीआरपीएफ की तीसरी बटालियन की कंपनी को भारत- तिब्बत सीमा की सुरक्षा के लिए लद्दाख में हॉट स्प्रिंग में तैनात किया गया था। 21 जवानों का दल गश्त कर रहा था तभी चीनी सैनिकों ने गश्ती दल पर घात लगाकर आक्रमण कर दिया था।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 01:37 PM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 01:37 PM (IST)
अलीगढ़ में खाकी का नया अवतार, रक्षक, योद्धा के साथ बनी मददगार
पुलिस स्मृति दिवस पर अलीगढ़ के एसएसपी कार्यालय में भी शहीदों का याद किया गया

सुमित शर्मा, अलीगढ़।  21 अक्टूबर 1959 को देश की रक्षा करते हुए प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को 61वें पुलिस स्मृति दिवस पर बुधवार को याद किया गया। श्रद्धांजलि भी दी गई।

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इसलिए मनता है स्मृति दिवस : 21 अक्टूबर 1959 में सीआरपीएफ की तीसरी बटालियन की कंपनी को भारत- तिब्बत सीमा की सुरक्षा के लिए लद्दाख में हॉट स्प्रिंग में तैनात किया गया था। कंपनी को टुकडिय़ों में बांटकर चौकसी करने को कहा गया। 21 जवानों का यह दल गश्त कर रहा था, तभी चीनी फौज के सैनिकों के बड़े दस्ते ने इस गश्ती दल पर घात लगाकर आक्रमण कर दिया। कम संख्या में होने के बाद इन जांबाजों ने चीनी सेना का जमकर सामना किया। मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ते हुए 10 शूरवीरों ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। तभी से पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है। 

 बदली पुलिस की छवि

यूं तो खाकी वर्दी यानी पुलिस की व्यवस्था कठोर व निर्मम सिद्धांत पर टिकी हुई है। शराफत व नजाकत की उम्मीद तो पुलिस से नहीं कर सकते हैं। लोगों की इस धारणा को कोरोना संक्रमण के दौर ने बदल दिया है। जब पूरा देश संकट से जूझ रहा था तो ऐसे में अपना फर्ज निभाने वालों की अग्रिम पंक्ति में खाकी ही नजर आई। फिर चाहें वो लॉकडाउन को सख्ती से लागू करना रहा हो या फिर दूसरे प्रदेशों से पलायन कर आने वालों को प्रशासन व समाजसेवी संगठनों से कंधे से कंधा मिलाकर उन्हें सुरक्षित घर पहुंचाना रहा हो। इतना ही नहीं अफवाह फैलाने वालों को तलाशना हो हर मोर्चे पर आपको सबसे आगे खाकी वर्दी ही दिखाई पड़ी। कोरोना संक्रमण के डर के चलते जहां घर के ही लोगों ने दूरियां बना लीं। ऐसे में पुलिस ही उनकी मददगार बनी। खाकी की इसी छवि ने लोगों के दिलों में जगह बना ली। इस दौर में न केवल पुलिस की कार्यशैली व व्यवहार बदला नजर आया। पुलिस की छवि हमदर्द के रूप में दिखाई पड़ी।

 सख्ती की जगह मनुहार

खाकी अक्सर लाठी की जुबां से बात करती है। कोरोना संक्रमण के दौर में इस बार वर्दी वाले हाथों में माइक साउंड व आग्रह दिखाई पड़ा। पुलिस कर्मी लोगों को शारीरिक दूरी बनाए रखने, मास्क का प्रयोग करने व घरों के अंदर ही रहने की मनुहार भरी अपील करते भी दिखाई पड़ी। 

दिखा मानवीय चेहरा

 खाकी के अनेक मानवीय चेहरे भी दिखाई पड़े। भूख से बिलख रहे लोगों के बीच खाद्यान्न सामग्री से लेकर तैयार खाने के पैकेट, पानी पहुंचाकर अन्नदाता के रूप में दिखाई पड़ी। बीमारों को अस्पताल पहुंचाने, बीमार बुजुर्ग एवं असहाय लोगों की मदद के लिए खाकी ने जिले की सीमाओं को भी लांघ दिया और कई किलोमीटर का सफर तय कर जरूरतमंदों तक दवा पहुंचाकर जीवन बचाने का भी काम किया। खून की जरूरत पडऩे पर पुलिसकर्मी रक्तदान करने में भी पीछे नहीं रहे। ऐसी खाकी को दिल से सलाम। 


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