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50 बुजुर्गों की लाठी हैं शिवानी श्रीवास्तव, वृद्धजनों को ऐसे कर रहीं तनाव मुक्त

मां-बाप जिन बच्चों को उंगली पकड़कर चलना सिखाते हैं, वही बच्चे मां-बाप की देखरेख नहीं कर पाते और उन्हें वृद्ध आश्रम में छोड़ देते हैं। ऐसे बुजुर्गों के बुढ़ापे की लाठी हैं शिवानी श्रीवास्तव।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Thu, 11 Oct 2018 06:44 PM (IST)Updated: Thu, 11 Oct 2018 06:45 PM (IST)
50 बुजुर्गों की लाठी हैं शिवानी श्रीवास्तव, वृद्धजनों को ऐसे कर रहीं तनाव मुक्त
50 बुजुर्गों की लाठी हैं शिवानी श्रीवास्तव, वृद्धजनों को ऐसे कर रहीं तनाव मुक्त

हाथरस ( प्रमोद सिंह )। मां-बाप जिन बच्चों को उंगली पकड़कर चलना सिखाते हैं, वही बच्चे मां-बाप की देखरेख नहीं कर पाते और उन्हें वृद्ध आश्रम में छोड़ देते हैं। ऐसे बुजुर्गों के बुढ़ापे की लाठी हैं शिवानी श्रीवास्तव। वे पिछले दो साल से बुजुर्गों की न सिर्फ देखभाल कर रही हैं, बल्कि उन्हें तनावमुक्त जीवन जीने की कला भी सिखाती हैं। उन्हें इस काम से सुकून मिलता है।

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पढ़ाई के बाद लिया सेवा करने का निर्णय

जिला अलीगढ़ के कस्बा छर्रा में रहने वाले उनके परिवार में पिता अशोक कुमार, मां लक्ष्मी देवी के अलावा दो बहनें और दो भाई हैं। परिवार में दूसरे नंबर की बेटी शिवानी श्रीवास्तव समाज सेवा के कार्य में जुटी हुई हैं। श्रीराम मूर्ति डिग्री कॉलेज छर्रा से परास्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद वह अब वयोवृद्धों की सेवा में लग गई हैं।

बचपन से ही थी इच्छा

जब वे स्कूल में पढऩे जाती थीं, तब एक दिन उन्होंने रास्ते मे देखा कि एक वृद्ध दंपती सड़क किनारे कपड़ों की पोटली लिए बैठा दिखा। उन्होंने उनसे पूछा कि कैसे बैठे हो तो उन बुजुर्ग दंपती की आंखें भर आईं। रोते हुए बताया की उनके बहू बेटों ने उन्हें घर से निकाल दिया है। इस घटना ने शिवानी को झकझोर दिया। तभी से उन्होंने तय कर लिया कि बड़े होकर वृद्धजनों की सेवा करेंगी।

सरकारी नौकरी में रुचि नहीं

राजनीति विज्ञान से एमए कर चुकीं शिवानी श्रीवास्तव ने सरकारी नौकरी के लिए कोई रुचि नहीं दिखाई। स्कूल टाइम में वृद्ध दंपती की पीड़ा सुनकर मन में उठे सेवाभाव आज भी जिंदा हैं। इसीलिए अब वह आगरा रोड पर नगला मीतई के पास स्थित वृद्ध आश्रम में वार्डेन की जिम्मेदारी निभा रही हैं। वहीं रहकर वे आश्रम में रहने वाले करीब 50 बुजुर्गों की देखरेख करती हैं। उनके खाने-पीने, दवा आदि सभी चीजों का ध्यान रखती हैं। बुजुर्ग भी उन्हें बेटी जैसा प्यार देते हैं।

मां भी समाजसेवी

शिवानी का कहना है कि एकाकी परिवारों के कारण वयोवृद्धों के प्रति लोगों में संवेदना घटती जा रही है। कहीं लोगों की मजबूरी है तो कहीं जिम्मेदारी का अभाव। इसीलिए आश्रमों में बुजुर्गाें की संख्या बढ़ रही है। उनकी मां भी संभल जिले में एक वृद्धाश्रम में रहकर वृद्धजनों की देखभाल करती हैं। अविवाहित शिवानी कहती हैं कि शादी के बाद यदि ससुराल पक्ष से अनुमति मिली तो वे यह कार्य हमेशा जारी रखेंगी। 


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