शहर में जांच कराने के बाद 450 टीबी रोगी हो गए लापता ALigarh news
केंद्र सरकार क्षय रोग के समूल नाश को लेकर गंभीर है मगर डिफाल्टर मरीज टेंशन दे रहे हैं।
अलीगढ़ [जेएनएन] केंद्र सरकार क्षय रोग के समूल नाश को लेकर गंभीर है, मगर डिफाल्टर मरीज टेंशन दे रहे हैं। वजह, चाहे कुछ भी हो हर साल कुल नोटिफाइड मरीजों के तीन से चार फीसद मरीज जांच कराकर लापता हो जाते हैं। इस साल यह संख्या 350 से ज्यादा है। जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. अनुपम भास्कर का कहना है कि डिफाल्टर मरीज ज्यादातर प्राइवेट अस्पतालों में पहुंच जाते हैं। वृंदावन भी काफी मरीज गैर जनपदों के पहुंचते हैं। हमने सभी ट्रीटमेंट सुपरवाइजर को निर्देशित कर दिया है कि मरीज के घर जाकर फालोअप करें।
घर-घर खोजे जा रहे टीबी रोगी
केंद्र सरकार ने 2025 तक टीबी के खात्मे का लक्ष्य निर्धारित किया है। सरकारी टीबी यूनिट पर आए प्रत्येक संदिग्ध मरीज की बलगम या सीबी नॉट मशीन से जांच कराई जा रही है। गर्भवती व एचआइवी से ग्र्रस्त मरीजों की टीबी जांच अनिवार्य है। एक्टिव केस फाइंडिंग अभियान के तहत घर-घर टीबी रोगी खोजे जा रहे हैं। जनपद में इस साल 14 हजार 631 मरीज चिह्नित किए गए। इनमें 5872 मरीज ऐसे थे, जिन्हें गैर सरकारी संस्था 'जीतÓ ने प्राइवेट अस्पतालों व क्लीनिक पर जाकर चिह्नित कर उपचार पर लिया गया। करीब 450 मरीज ऐसे भी रहे जो जांच कराने तो आए, मगर रिपोर्ट लेकर वापस नहीं आए या कुछ समय इलाज कराकर लापता हो गए। मरीजों का पता नहीं
अफसर मानते हैं कि ये मरीज जनपद या जनपद से बाहर प्राइवेट इलाज करा रहे हैं। केवल संभावना के आधार पर ऐसे मरीजों को भुलाया नहीं जा सकता। वजह, एक टीबी रोगी के खांसने, छींकने या संपर्क में आने से दूसरा व्यक्ति भी चपेट में आ सकता है।
लाखों हो रहे खर्च
सरकार की मंशा अंतिम टीबी रोगी तक पहुंचने की है। लापता मरीजों की संख्या एक्टिव केस फाइडिंग अभियान में खोजे गए मरीजों से ज्यादा है। एक चरण पर 30 लाख रुपये से ज्यादा खर्च हो रहा है।