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अलीगढ़ में पांच माह में गायब हुए 22 बच्चे, मिले सिर्फ 14, आठ का अब भी पता नहीं

जरा सी देर भी कलेजे का टुकड़ा नजर न आए तो मां का क्या हाल होता है यह तो वही समझ सकती है। लाल के गायब होने के बाद पूरा परिवार परेशान हो जाता है।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Wed, 29 May 2019 01:20 AM (IST)Updated: Wed, 29 May 2019 04:16 PM (IST)
अलीगढ़ में पांच माह में गायब हुए 22 बच्चे, मिले सिर्फ 14, आठ का अब भी पता नहीं
अलीगढ़ में पांच माह में गायब हुए 22 बच्चे, मिले सिर्फ 14, आठ का अब भी पता नहीं

रिंकू शर्मा, अलीगढ़ ।  जरा सी देर भी कलेजे का टुकड़ा नजर न आए तो मां का क्या हाल होता है, यह तो वही समझ सकती है। लाल के गायब होने के बाद पूरा परिवार परेशान हो जाता है। यहां तक कि पड़ोसी व रिश्तेदार भी। दो साल में करीब 70 परिवारों को यह दर्द मिला है। इनमें 35 परिवार भाग्यशाली रहे, जिनके 'आंख के तारेÓ सकुशल मिल गए। 35 का सुराग नहीं लगा है। इस साल के पांच महीनों में 22 बच्चे गायब हुए, जिनमें 14 मिल गए हैं। 8 बच्चे अब भी लापता हैैं। गुमशुदगी थानों में दर्ज है। पुलिस का जवाब रटा रटाया है 'तलाश रहे हैं, मिलने पर बता देंगेÓ। आंख के तारे के इंतजार में मां की आंखें पथरा गई हैं। दरवाजे पर आंखें इस उम्मीद से टिकी रहती है कि शायद अब आ जाए।

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क्या आपने मेरा उमेश कहीं देखा है...

दस दिन हो गए गांवों की गलियों में घूमते। हाथ में बेटे की तस्वीर और आंखों में आंसू। सवाल यही कि क्या आपने उमेश को देखा है। वह सात साल का है। यह उसी की तस्वीर है। कस्बा जïट्टारी के गांव जरतौली का यह लाल कहां गया, किसी को पता नहीं। मेहनत मजदूरी करने वाले डोरीलाल तो अपने बेटे उमेश के अपहरण की शंका जाहिर कर रहे हैं। उन पर तीन बेटी व दो बेटे हैं। पांच बच्चों में से तीसरे नंबर का बेटा उमेश सात मई की दोपहर घर से बाहर खेल रहा था। अचानक गायब हो गया। इसकी थाने में तहरीर गई। शक के आधार पर पुलिस ने गांव के ही एक व्यक्ति से पूछताछ की, पर कुछ पता न लग सका। इसके बाद से वह आसपास के गांवों में भी बेटे की तलाश में घूम रहे हैं। कभी पैदल ही निकल पड़ते हैं तो कभी किसी की बाइक लेकर माइक लगा लेते हैं। इसके चलते मजदूरी भी बंद हो गई। उमेश की मां रेनू की नजरें तो दरवाजे पर ही टिकी रहती हैं। उसे लगता है कि बेटा आने वाला है।

छह महीने से है तलाश

सासनीगेट के पला कबीर नगर नई आबादी निवासी सुखदेव को अपने बेटे धर्मेंद्र कुमार (8) की छह माह से तलाश है। वह 27 नवंबर 2018 को घर के बाहर खेलते समय गायब हो गया। मजदूरी करने वाले सुखदेव कई बार थाने जा चुके हैं। पर पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है। मां जमुना देवी तो बेटे के इंतजार में टूट चुकी हैं। दिनभर रोना, कभी-कभी भूखे पेट ही सो जाना उसकी दिनचर्या जैसी हो गई है।

दरवाजे पर रहती हैं आंखें

-गांधीपार्क के दुबे का पड़ाव पीर मट्ठा आंबेडकर वाली गली की रजनी थक चुकी है। पर हिम्मत नहीं हारी। उसे हर पल ऐसा लगता है कि बेटा रोहन (13) आने वाला है। इसके चलते आंखें दरवाजे पर रहती हैं। पिता अशोक कुमार कम बेहाल नहीं। उन्होंने बताया कि रोहन 31 जनवरी को पास की ही दुकान से घर का सामान लेने गया था, फिर उसका पता न चला। आठवीं का यह छात्र आखिर कहां गया? इसका जवाब तो पुलिस भी नहीं तलाश पा रही।

दो साल में न तलाश सकी पुलिस

अतरौली के सूरतगढ़ के जयसिंह की की सुमन को पुलिस से शिकायत है। आरोप यह है कि पुलिस ने उनके बेटे  मनोज (15) को तलाशने के लिए कोई काम ही नहीं किया। यदि पुलिस तलाश करती तो सफलता जरूर मिलती। दो साल कैसे गुजारे, बता नहीं सकते। 20 दिसंबर 2017 को गायब हुआ मनोज कहां है, किस हाल में है यह सवाल न सोने देते और न कोई दूसरा काम करने देते।

ये भी हैं गायब

-सिविल लाइन फिरदौस नगर के मोहम्मद सत्तार का बेटा मोहम्मद इसरार (16) दो जनवरी 2018 से गायब है।

-क्वार्सी के किशनपुर के दुर्गा प्रसाद का बेटा आकाश सैनी (15) आठ फरवरी से गायब है।

-बन्नादेवी के साईं विहार सारसौल के मनमोहन का बेटा दीपांशु (20)13 फरवरी से लापता है।

नसीहत का भी असर नहीं

लापता बच्चों को तलाशने में लापरवाही पर केंद्र व राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट फटकार लगा चुका है। इसके बाद भी सुराग नहीं लग पा रहा।

चाइल्ड लाइन

लापता बच्चों को अपनों तक पहुंचाने का काम उड़ान सोसायटी व चाइल्ड लाइन संस्था जुटी है। ये 2015 से अब तक 400 से अधिक बच्चों को तलाश कर उनके परिजनों को सौंप चुकी है।

ट्रैक द मिसिंग चाइल्ड

देश में हर दिन लापता हो रहे बच्चों को ढूंढऩे के लिए महिला व बाल विकास मंत्रालय ने ट्रैक द मिसिंग चाइल्ड नाम से वेबपोर्टल बनाया है। पुलिस गुमशुदा बच्चों को उनके परिवार से मिलाने के अभियान में सहयोगी की भूमिका निभा रही है। प्रदेशभर में ऑपरेशन स्माइल व ऑपरेशन मुस्कान में भी खोए बच्चों को परिजनों से मिलाया है। दिल्ली की सामाजिक संस्था ने बचपन बचाओ अभियान फेस रिकॉग्निशन सॉफ्टवेयर की खोज की है। जिसकी मदद से बच्चों को तलाशा जा सकता है। इससे दिल्ली में ही 2930 बच्चों को खोजने में मदद मिली है। संस्था ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की वेबसाइट ट्रैक द मिसिंग पोर्टल के डाटा से मिलान कराने का आग्रह किया है, ताकि गायब बच्चों को परिजनों तक पहुंचाया जा सकें।

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