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यहां के किसान तो पहले से कर रहे शून्य लागत प्राकृतिक खेती, आय दोगुनी करने के अद्भुत प्रयोग

अलीगढ़ के किसान संतोष बताते हैं कि वे 2012 में महाराष्ट्र के नवोन्मेषी किसान सुभाष पालेकर के संपर्क में आए थे। पालेकर ने ही शून्य लागत खेती का माडल विकसित किया है। उनसे प्रशिक्षण लेकर 2016 से पूरी तरह तीन एकड़ में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 17 Dec 2021 06:00 AM (IST)Updated: Fri, 17 Dec 2021 09:25 PM (IST)
यहां के किसान तो पहले से कर रहे शून्य लागत प्राकृतिक खेती, आय दोगुनी करने के अद्भुत प्रयोग
यूपी में ब्रज के किसानों द्वारा की जा रही शून्य लागत प्राकृतिक खेती की हर तरफ प्रशंसा मिल रही है।

आगरा [अजय शुक्ला]। किसानों की आय दोगुनी करने के अद्भुत प्रयोग ब्रज की धरा पर साकार हो रहे हैं, वह भी शून्य लागत पर। गुरुवार को गुजरात के आणंद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शून्य लागत आधारित खेती पर एक कांफ्रेंस का उद्घाटन किया। इसके लिए उन्होंने देशभर के किसानों को न्योता भी दिया। लेकिन, पहले से ही शून्य लागत खेती का प्रयोग कर समृद्धि के द्वार पर दस्तक दे रहे किसान कहते हैं कि सरकार कृषक समूहों के गठन और बाजार उपलब्ध कराने के प्रयास करे तो किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य बहुत करीब है।

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अलीगढ़ के किसान संतोष बताते हैं कि वे 2012 में महाराष्ट्र के नवोन्मेषी किसान सुभाष पालेकर के संपर्क में आए थे। पालेकर ने ही शून्य लागत खेती का माडल विकसित किया है। उनसे प्रशिक्षण लेकर 2016 से पूरी तरह तीन एकड़ में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। जिस खेत में खेती कर रहे पहले वहां ऊसर था। जीवामृत, घन जीवामृत और बीजामृत के प्रयोग द्वारा खेती शुरू की तो अब 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से गेहूं का उत्पादन हो रहा है। अन्य लागत तो शून्य है ही, पानी का उपयोग भी बहुत कम हो गया है।

एटा जिले के किसान दूरबीन सिंह कहते हैं कि शून्य लागत खेती में पहले साल उत्पादन कम रहता है। लेकिन, धीरे-धीरे खेत उर्वरा हो जाते हैं। बताते हैं कि प्राकृतिक खेती करते पांच साल हो गए। पहले ढाई क्विंटल होता था। अब साढ़े चार क्विंटल बीघा तक गेहूं का उत्पादन कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती के माध्यम से अब इस क्षेत्र में मूंग, गन्ना और धान की फसल ले रहे हैं। मथुरा के किसान शाश्वत बताते कि कि उन्होंने छह एकड़ में गेहूं और करीब सवा एकड़ में आलू बोया था। गेहूं की लागत में करीब 34 फीसद और आलू की खेती में करीब 22 फीसद लागत में कमी आई है।

जेल और डीएम आवास के फार्म भी प्राकृतिक खेती : दूरबीन सिंह के प्रयोग को देखते हुए अब एटा जेल और डीएम आवास परिसर में स्थित फार्म पर भी इस विधि से खेती का आमंत्रण मिला है। दूरबीन बताते हैं कि दो-तीन रोज में दोनों जगह जीवामृत बनाने और खेत तैयार करने का काम शुरू होगा।

निजी प्रयास से डेढ़ गुनी कीमत : अलीगढ़ के संतोष बताते हैं कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए मार्केट चेन तैयार करनी होगी। इसमें सरकारी सहायता की आवश्यकता है। अभी हम निजी स्तर पर मार्केटिंग कर रहे हैं। लोगों को खेत पर बुलाते हैं, अपना प्रयोग दिखाते हैं। जिन्हें उपहार के तौर पर कुछ उत्पाद दिए वे अब नियमित ग्राहक बन गए। डेढ़ गुनी कीमत वह खुशी-खुशी दे रहे हैं। एटा के दूरबीन अपने यहां उत्पादित सुगंधित चावल 60 रुपये किलो तक देते हैं। 

गोमूत्र की बड़ी मांग : प्राकृतिक खेती का आधार सुभाष पालेकर जी द्वारा विकसित फार्मूला है। इसमें खेत में जीवामृत, घन जीवामृत और बीजामृत का प्रयोग होता है। यह खेत पर ही सहज उपलब्ध वस्तुओं यथा देसी गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़ व इसी तरह के चीजों से तैयार होता है। संतोष बताते हैं कि उन्होंने कुछ कृषकों का समूह भी बनाया है। एक गोशाला में गोमूत्र एकत्र किया जाता है। हालांकि, अपनी खुद की देसी गाय पालना ज्यादा अच्छा है। गोशाला से पांच रुपये प्रति लीटर गोमूत्र किसान ले जाते हैं। गोबर ताजा चाहिए होता है लेकिन गोमूत्र जितना पुराना हो उतना बेहतर रहता है।

इस प्रकार करते हैं तैयार : प्राकृतिक खेती में मुख्‍य रूप से जीवामृत, घन जीवामृत और बीजामृत तैयार कर छिड़काव किया जाता है। इसमें इस्‍तेमाल होने वाली सभी चीजें घर या खेत में मिल जाती हैं। जीवामृत खेत में जीवाणुओं की वृद्धि करता है। घन जीवामृत खाद की पूर्ति करती है और बीजामृत बीजों को संस्‍कारित कर उन्‍हें बोआई लायक बनाता है। अलग-अलग जलवायु में इसकी मात्रा में न्‍यूनाधिक परिवर्तन कर इस प्रकार तैयार करते हैं-

जीवामृत : दो सौ लीटर क्षमता के ड्रम में 180 लीटर पानी मिलाएं, इसमें 10 किलो देसी गाय का ताजा गोबर व पांच से 10 लीटर गोमूत्र डाले, एक से डेढ़ किलो गुड़ व इतना ही बेसन डालें, पीपल या किसी पेड़ के नीचे की एक मुट्ठी मिट्टी मिलाएं। फिर इसे लकड़ी की सहायता से घड़ी की सुइयों की तरह 2 से 3 मिनट चलाएं। फिर इसे बोरी से ढक कर 72 घंटे तक रखें। रोजाना सुबह शाम 2 से 3 मिनट तक चलाएं। इस तरह तैयार जीवामृत के घोल में 21 लीटर में 100 लीटर पानी मिलाकर सिंचाई के पानी के साथ, फव्‍वारा विधि से या छिड़काव करें। तैयार जीवामृत का उपयोग सात दिन के भीतर करें अन्‍यथा जीवाणुओं की संख्‍या घटने लगती है। एक एकड़ में डालें। 21-21 दिनों के अंतराल में इसका तीन बार प्रयोग करें।

घन जीवामृत : देसी गाय का ताजा गोबर लेकर इसे छांव या हल्‍की धूप में सुखा लें। सात से दस दिन बाद इसे 100 किलो गोबर को फैलाकर इसमें पेड़ के नीचे की एक मुट्ठी मिट्टी व एक किलो बेसन छिड़क दें। फिर एक किलो गुड़ को चार से पांच लीटर गोमूत्र में घोलकर छिड़क दें। चार से पांच दिन में घन जीवामृत तैयार हो जाएगा। इसे कूचकर बारीक कर छांव में इकट्ठा कर लें। एक एकड़ में एक क्विंटल एक या दो बार डालें एक फसल के लिए डालें। हर इक्‍कीस दिन में डालें।

बीजामृत : 10 लीटर पानी में देसी गाय का एक किलो गोबर व एक लीटर गोमूत्र लेंगे। इसके बाद 10 ग्राम हींग व 50 ग्राम चूना इसमें मिलाएंगे। अंत में देसी गाय का 250 मिली दूध घोलकर। सफेद कपड़े से ढक कर दो दिन रखना है। सुबह इसे चलाना है। दो दिन बाद इससे बीज संस्‍कारित कर बोआई के लिए कर लिया जाता है।


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