Holi Special: ब्रज की इस प्राचीन परंपरा को बिसरी युवा ताजनगरी
ब्रज की प्राचीन लोकविधा है फाग गायन फाल्गुन में गाई जाती है। शहरों से सिमटकर गांवों तक रह गई है प्राचीन विधा।
आगरा, जागरण संवाददाता। होरी खेलन को आ जइयो राधे वृषभान दुलारी, अब के आ जइयो फागुन में, होली खेलि आंगन में, सब सखियन लिवा लइयो, होरी से कर दूं कारी...। फाग गायन के बगैर होली अधूरी है और वर्षों से फाग गाया जा रहा है। ब्रज की यह प्राचीन लोक विधा अब ताजनगरी में मुकाम पाने को तरस रही है। युवा तो फाग गायन के बारे में जानते भी नहीं हैं। इसकी पीड़ा कलाकारों को कसक रही है।
फाग गायन ब्रज की पुरानी विधा है। फाल्गुन में गाए जाने की वजह से इसे फाग कहा जाता है। कभी फाल्गुन लगते ही फाग गायन शुरू हो जाता था। दूर-दूर से श्रोता फाग सुनने आया करते थे, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है। यह देहात तक सिमट गई है। शमसाबाद के ऊंचा गांव, बाह के होलीपुरा, खंदौली के मई आदि जगहों पर तो अब भी फाग मेले लगते हैं, लेकिन शहरों में वो बात नहीं रही। वरिष्ठ संस्कृति कर्मी राज बहादुर राज बताते हैं कि ब्रज में फाग गायन रसिया की टेक पर होता है। पहले होली पर 15-15 दिन तक फाग गायन होता था। इसमें होली गीतों के साथ दूसरे गीत भी होते थे। कुछ गीत अभी भी मुझे याद हैं। गंगा तेरी लोहरी बहन जमुना बहे किले के नीचे... जल पीवे दावेदार हमारे लोटा में विष नाय... जैसे गीतों में ब्रजभाषा की मिठास घुली हुई है।
फाग गायक महावीर सिंह चाहर बताते हैं कि फाग गायन ब्रज की प्राचीन विधा है। फाग गीत वृंदावन आज मरी होरी रे, वृंदावन... सुनाते हुए वो बताते हैं कि इसमें हुरियारे-हुरियारिनें जवाबी शैली में फाग गाते हैं। पहले होली मेलों में फाग गायन होता था। आज के युवा तो फाग गायन जानते भी नहीं हैं। इस पर हमें ध्यान देना होगा। महावीर सिंह आकाशवाणी आगरा, लखनऊ दूरदर्शन पर फाग की प्रस्तुतियां दे चुके हैं।
सवाल-जवाब शैली में होता है गायन
फाग में हुरियारे और हुरियारिनें दो तरफ खड़े हो जाते हैं और फाग गाते हैं। इसे सवाल-जवाब शैली में गाया जाता है। एक-दूसरे को जवाब दिया जाता है।
भारतीय वाद्य यंत्रों का होता है इस्तेमाल
फाग गायन परंपरागत भारतीय वाद्य यंत्रों पर होता है। इनमें हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा, नक्कारा आदि साज प्रमुख हैं।