हा, रावण अभी जिंदा है..
आठ पीढि़यों तक एक ही परिवार कर रहा था रावण की भूमिका अपनी कला को जिंदा रखना चाहते हैं राजू
आगरा, आदर्श नंदन गुप्त। उत्तर भारत की प्रमुख रामलीला में आठ पीढि़यों से एक ही परिवार के लोग रावण की भूमिका करते आ रहे थे। इस पीढ़ी में रावण की अंतिम भूमिका करने वाले राजू का कहना है कि उनके अंदर रावण की कला अभी जिंदा है। समय आने पर फिर से अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करेंगे।
लंकापति का तमतमाता चेहरा, लाल आखें और हाथ में चमचमाती तलवार। जिसे देख कर दर्शकों की रूह काप उठती है। उसी की भूमिका करने वाले धूलियागंज निवासी रावण दल के प्रमुख राजू ने बताया कि आगरा के रामलीला मैदान में होने वाली उत्तर भारत की प्रमुख रामलीला में कई साल पूर्व कमेटी से कुछ अनबन होने के बाद वे यह भूमिका नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनके दल में अभी भी वही भावना है। दशहरा आने पर उनके अखाड़े के लोगों के मन का रावण हिलोरें लेने लगता है। उनका प्रयास है कि वे अपने अखाड़े को और मजबूत करें और इस कला को कभी समाप्त नहीं होने दें। उसे आज भी लोग रावण के नाम से जानते हैं। यही नहीं, जिस गली में वे रहते हैं, उसे रावण वाली गली कहा जाता है। इस प्रकार रावण अभी जिंदा है।
राजू ने बताया कि रावण बनने के लिए बड़ी तैयारी करनी पड़ती है। रावण जैसा दिखाने के लिए अपना शरीर, अपना चेहरा और हाव-भाव वैसे ही बनाए रखने पड़ते हैं। इसके लिए सुबह उठते ही अखाड़े में अभ्यास करना पड़ता है। पटेबाजी का रिहर्सल करना पड़ता है। खानपान पर भी ध्यान रखा जाता है। यही वजह है कि रावण की दुहाई के दिन जब रथ पर सवार होकर निकलते थे तो बच्चे उन्हें देखकर दहशत में आ जाते थे। अपने चेहरे को रौद्र बनाए रखने के लिए उन्हें अच्छा मेकअप भी करना पड़ता था। राजू ने बताया कि तलवारबाजी और लाठी चलाने का प्रशिक्षण उन्हें उस्ताद दलवीर सिंह ने दिया। लोग तरसते हैं इस किरदार के लिए :
आगरा कैंट रेलवे इंस्टीट्यूट के मैदान में होने वाली रामलीला में मनोज सिंह 23 साल से रावण की भूमिका करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि रावण किरदार निभाने में गर्व महसूस करते हैं। बड़े-बड़े कलाकर इस भूमिका के लिए तरसते हैं। क्योंकि रावण से महान कोई विद्वान नहीं हुआ है। कोरोना काल में इस बार रामलीला का मंचन न होने से उन्हें दुख है। वे रेलवे में कार्यालय अधीक्षक के पद पर हैं।