World Family Day 2020: एक छत के नीचे तीन पीढि़यों के सदस्य, हर दिन है खुशियों का त्योहार
आज भी शहर में कुछ परिवार ऐसे हैं जो अपने बुजुर्गों की इच्छा को शिरोर्धाय मानते हुए संयुक्त परिवार में रहते हैं।
आगरा, प्रभजोत कौर। परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है जो आपसी सहयोग व समन्वय से क्रियान्वित होती है और जिसके समस्त सदस्य आपस में मिलकर अपना जीवन प्रेम, स्नेह एवं भाईचारापूर्वक निर्वाह करते हैं। संस्कार, मर्यादा, सम्मान, समर्पण, आदर, अनुशासन आदि किसी भी सुखी-संपन्न एवं खुशहाल परिवार के गुण होते हैं। कोई भी व्यक्ति परिवार में ही जन्म लेता है, उसी से उसकी पहचान होती है और परिवार से ही अच्छे-बुरे लक्षण सीखता है। परिवार सभी लोगों को जोड़े रखता है और दुःख-सुख में सभी एक-दूसरे का साथ देते हैं। बदलते समय के साथ अब पहले जैसे संयुक्त परिवार नहीं रहे, लेकिन आज भी शहर में कुछ परिवार ऐसे हैं जो अपने बुजुर्गों की इच्छा को शिरोर्धाय मानते हुए संयुक्त परिवार में रहते हैं।
बंद मुट्ठी लाख की होती है
यह विरासत है संस्कारों की, अपने पूर्वजों की प्रति सम्मान की। एक साथ रहने की और एक दूसरे के लिए हर मुश्किल में साथ देने की। इसी सोच के साथ बल्केश्वर का एक परिवार अपने माता-पिता की इच्छा पर एक साथ रह रहा है। बलकेश्वर के लोहिया नगर में रहने वाले 84 साल के जौहरी लाल अग्रवाल का भरा-पूरा परिवार है। उनके छह बेटे और उनके बेटे भी एक साथ एक ही घर में रहते हैं। जौहरी लाल अग्रवाल के बेटे महेश जौहरी ने बताया कि उनके पिता 1966 में बल्केश्वर में आकर बसे थे। महेश जौहरी बलकेश्वर शमशान घाट के अध्यक्ष भी हैं। इस समय घर में लगभग 38 लोग रह रहे हैं। महेश जौहरी और उनके पांच भाइयों के 12 बेटे हैं। इनमें से छह बेटों की शादी हो चुकी है और छह अभी कुंवारे हैं। छह पोते-पोतियां हैं। वे बताते हैं कि हमारे पिताजी की यह इच्छा है कि हम सभी भाई एक साथ रहें। उनका मानना है कि बंद मुट्ठी लाख की होती है। अपने पिता की इच्छा पर ही हम सभी भाई और हमारे बच्चे एक साथ रहते हैं। महेश जौहरी ने बताया कि हर त्योहार को परिवार के साथ मनाने का मजा ही अलग है।एक साथ रहने में ही खुशी है और ताकत भी है।
प्रेम पगी डोर में बंधे खून के रिश्ते, यह घर बहुत हसीन
कहते हैं जिस घर में प्रेम और अनुराग बसता है खुशियां भी वहीं डेरा जमाती हैं। बाह क्षेत्र के गांव जरार के एक परिवार में ऐसी खुशियां आंगन में पसरी हैं। इस घर में दो पीढिय़ां एक साथ रहती हैं। प्रेम पगी डोर से खून के रिश्ते ऐसे बंधे कि खुशहाली भी आंगन से जा न सकी। एक साथ ही रहते हैं और व्यापार भी एक साथ ही करते हैं।
बच्चों में संस्कार और प्रेम की पौध रोपने में 75 वर्ष के बैजनाथ सिंह वर्मा व उनकी पत्नी सुंदर देवी ने अपना पूरा जीवन दिया है। बैजनाथ सिंह के पांच बेटे हैं। बड़े बेटे किताब सिंह वर्मा व उनकी पत्नी रानी देवी के चार बच्चे हैं। बैजनाथ के दूसरे नंबर के बेटे सतीश चंद्र व उनकी पत्नी सरोज देवी के चार बच्चे हैं, तीसरे नंबर के राहुल और उनकी पत्नी गीता देवी के चार बच्चे हैं। चौथे नंबर के अजय कुमार व पत्नी मनोरमा के दो बच्चे हैं। सबसे छोटे सोनू वर्मा व उनकी पत्नी पूनम देवी के दो बच्चे हैं। 28 सदस्यों के इस परिवार का हर सदस्य परिवार के मुखिया बैजनाथ सिंह वर्मा के बगैर पूछे या उनके आदेश के बिना काम नही करता है। एक ही चूल्हे पर खाना बनता है। पांच बहुएं जो दूसरे घरों से आयीं हैं लेकिन प्रेम इतना कि मजाल है कभी आपस में तू-तू मैं-मैं हो।हर छोटा अपने से बड़े का सम्मान करता है।
साथ साथ करते हैं भोजन
हर सुबह छोटे भाई बड़े भाईयों के पैर छूते हैं।सुबह की चाय पूरा परिवार एक साथ बैठकर पीता है।हर बहू की ड्यूटी तय है।कोई किसे से शिकायत नहीं करती।सभी अपना-अपना काम करती हैं। सभी भाई मिलकर कपड़े का काम करते हैं। रात में भी सभी एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।परिवार में माता पिता, बच्चे खाना खा लेते हैं। सभी भाई और बहुएं साथ साथ खाना खाती हैं।
परिवार में प्रेम की पगी डोर
बैजनाथ सिंह वर्मा कहते हैं कि हमने अपने बच्चों में बचपन से जो संस्कार दिये उसी का यह नतीजा है कि पूरा परिवार एक साथ है। सुंदर देवी कहती हैं मुझे अपनी पांचों बहुओं में बेटियों का चेहरा नजर आता है। बहू और बेटी में कोई फर्क नही समझा। पांचों बहुएं जिस तरह से मिल जुल कर परिवार को बांधे हुऐ हैं इससे मेरे जीवन की मेहनत सफल हो गयी।