गलत इतिहास: 1966 तक जिंदा थे शिवाजी
कुलदीप सिंह, आगरा: दुनिया भर के सैलानियों को आकर्षित करने वाली ताजनगरी में विश्वदाय स्मारक आगरा किला
कुलदीप सिंह, आगरा: दुनिया भर के सैलानियों को आकर्षित करने वाली ताजनगरी में विश्वदाय स्मारक आगरा किला के ठीक सामने ही गलत इतिहास बताया जा रहा है। किले के सामने स्थापित शिवाजी की प्रतिमा पर लगे शिलालेख में उनकी मौत के 286 साल बाद वर्ष 1966 में आगरा किला में कैद रहने की जानकारी अंकित है। जबकि शिवाजी की मौत 1680 में ही हो गई थी और उनके किले में कैद रहने का कोई ऐतिहासिक प्रमाण भी नहीं है। वर्तमान में डॉ. आंबेडकर विवि पर प्रतिमा की देखरेख का जिम्मा है, लेकिन 17 साल में कोई भी इस गंभीर गलती को पकड़ नहीं पाया और ये शिलालेख आज भी गलत इतिहास की जानकारी सैलानियों को दे रहा है। अमर सिंह गेट पर स्थित शिवाजी की प्रतिमा की इतिहास पंिट्टका के मुताबिक छत्रपति शिवाजी को मुगल सम्राट औरंगजेब ने 12 मई, 1966 से 17 अगस्त, 1966 तक किले में नजरबंद रखा। वह चतुराई से किले के गहन सुरक्षा घेरे को लांघ कर भाग निकलने में कामयाब रहे। छत्रपति शिवाजी के किले में कैद रहने को लेकर एएसआइ और इतिहासकारों के मत अलग हैं। इतिहासविद् राजकिशोर शर्मा राजे ने सूचना का अधिकार (आरटीआइ) में जानकारी मांगी। इसके जवाब में एएसआइ की ओर से कहा गया कि आगरा किले में शिवाजी को बंदी बनाकर रखे जाने से जुड़ा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।
शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब तो यह कहती है
इतिहासकार राजकिशोर राजे ने बताया कि ताजगंज की एक गली को जयसिंह पुरा कहा जाता है,वहीं राजा जयसिंह का निवास था। इस हिसाब से शिवाजी वहीं कैद रहे होंगे। ऐतिहासिक पुस्तक शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब के पृष्ठ 214 पर लिखा है कि जयसिंह के पुत्र रामसिंह के निवास स्थान पर शिवाजी को रखा गया था। इसी तरह का उल्लेख स्वर्ण सम्मान विजेता इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार की 1940 में लिखी किताब 'शिवाजी' में भी किया गया है।
फलों की टोकरी में हुए थे फरार
इतिहासकारों के मुताबिक कैद से निकलने के लिए शिवाजी ने रामसिंह से हुंडी पर 66 हजार रुपये लिए और बीमार होने का बहाना बनाया। वह साधु-संतों को टोकरियों में फल भिजवाने लगे। इन्हीं फलों और मिठाइयों की टोकरी में बैठकर 13 अगस्त 1666 को वे अपने पुत्र संभाजी के साथ किले से बाहर निकल गए। उनके पलंग पर उनके सौतेले भाई हीरोजी चादर ओढ़ कर लेटे रहे, जिससे औरंगजेब और सिपाही इस भ्रम में रहे कि शिवाजी वहीं पर हैं। किले से निकलकर शिवाजी और संभाजी करीब नौ किलोमीटर दूर पहुंचे,जहां उनका सेवक मीराजी घोड़ा लेकर उनका इंतजार कर रहा था। वहां वे साधुओं की टोली में साधु बनकर शामिल हो गए और मथुरा पहुंच गए। आंबेडकर विवि करता है मूर्ति का रखरखाव
इस मूर्ति के रखरखाव का जिम्मा डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के पास है। पिछले सालों से इस मूर्ति के सुंदरीकरण का भी काम किया जा चुका है। ताजमहल और किला पहुंचने वाले देसी-विदेशी पर्यटकों की नजर इस मूर्ति पर पड़ती है।
2001 में हुआ था प्रतिमा का अनावरण
फरवरी 2001 में इस प्रतिमा का अनावरण तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने किया था। -जब 1680 में छत्रपति शिवाजी का देहांत हो गया तो 1966 में शिवाजी के किले में कैद रहने के तथ्य पूरी तरह से आधारहीन हैं।
- राजकिशोर राजे, इतिहासविद् -इस मामले का परीक्षण किया जा रहा है। इतिहास और तारीख को लेकर जो खामियां मिलेंगी, उन्हें जल्द दुरुस्त किया जाएगा।
- गिरिजाशंकर शर्मा, पीआरओ, आंबेडकर विवि।