शहादत की निशानी को वीर नारी की गांव में 'जंग', पहुंची केरोसिन लेकर आत्मदाह करने
एक ग्रामीण की आपत्ति पर तहसीलदार ने स्मारक का काम रुकवाया। प्रशासन ने लिया संज्ञान।
आगरा, जेएनएन। दुश्मनों से वतन की हिफाजत में वो जम्मू-कश्मीर में बर्फीले तूफानों से जूझते रहे। बर्फीले पहाड़ के नीचे दबकर कुर्बान हो गए, मगर दुश्मन को देश की ओर आंख उठाने का मौका नहीं दिया। और, यहां देखिए। इस गौरवमयी शहादत की निशानी के लिए उनकी पत्नी गांव में 'जंग' लड़ रही है। अंत्येष्टि स्थल पर स्मारक के लिए पट्टा आवंटन के लिए अफसरों के चक्कर काट रही है। बुधवार को निर्माण कार्य शुरू कराया, मगर तहसीलदार ने आकर रुकवा दिया। वीर नारी ने भी धमकी दे दी कि अगर उनके पति का स्मारक नहीं बनने दिया गया तो यहीं पर आत्मदाह कर लेगी। प्रशासन ने उन्हें गुरुवार को बातचीत के लिए बुलाया है।
पिछले वर्ष फरवरी में कासौन निवासी नीरेश यादव जम्मू-कश्मीर में तैनाती के दौरान हिमस्खलन में शहीद हो गए थे। उस समय अंतिम संस्कार के लिए प्रशासन द्वारा जीटी रोड के किनारे जमीन दिलाई गई थी। तत्कालीन जिलाधिकारी अमित किशोर ने शहीद के परिवार को इस जमीन का पट्टा देने का भरोसा भी दिलाया था। तभी से यह परिवार इस जगह का पट्टा कराने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों से मिलता रहा, मगर कोई नतीजा नहीं निकला। बुधवार सुबह शहीद के परिजनों ने स्मारक के लिए इस जगह पर काम शुरू कराया। कुछ देर बाद ही गांव के मुकेश यादव ने इस पर आपत्ति जताई। इसके बाद वह तहसीलदार सदर दुर्गेश कुमार यादव को भी बुला लाया। तहसीलदार ने स्मारक निर्माण का काम रुकवा दिया। इस पर शहीद के परिजन तहसीलदार से आक्रोश जताने लगे। इसी बीच, शहीद की पत्नी शशि मिट्टी के तेल से भरी कैन लेकर अंत्येष्टि स्थल पर जा पहुंचीं और धरना देकर बैठ गईं। इनका कहना था कि अगर उनके पति का स्मारक यहां पर नहीं बनने दिया तो यहीं पर आत्मदाह कर लेंगी। काफी देर तक चले हंगामे के बाद तहसीलदार वहां से चले आए। स्मारक का काम रुका हुआ था।
शहीद की पत्नी ने अन्य अधिकारियों को भी जानकारी दी, मगर कोई भी नहीं पहुंचा। बाद में सपा जिलाध्यक्ष अशरफ हुसैन कुछ सपाइयों के साथ मौके पर पहुंच गए और अधिकारियों से बातचीत की। संयुक्त मजिस्ट्रेट महेंद्र सिंह तंवर ने शहीद के परिवार को गुरुवार को जिला मुख्यालय पर बुलाया है।
अधिकारियों की बेरुखी से बिगड़ा मामला
शहीद के अंतिम संस्कार के दौरान भी अंत्येष्टि स्थल की जगह को लेकर विवाद हुआ था। उस समय माहौल देख तत्कालीन अफसरों ने लेखपाल और कानूनगो के हस्ताक्षर से युक्त एक पत्र शहीद की पत्नी को दिलवा दिया था, जिसमें लिखा था कि अंत्येष्टि स्थल वाली भूमि स्मारक के लिए ही रहेगी। इस पत्र पर किसी सक्षम अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं हैं। शहीद की पत्नी शशि यादव का कहना है कि एक वर्ष से वह जगह का पट्टा मांग रही हैं। उन्हें बार-बार कानपुर से एटा तक आना पड़ता है, लेकिन फिर भी अधिकारियों ने सुनवाई नहीं की और मामला लटकाए रखा।