CoronaVirus Side Effect: बुनकरों की जिंदगी नहीं आ पा रही पटरी पर, डेढ़ हजार से ज्यादा बैठे बेरोजगार
CoronaVirus Side Effect बजट का इंतजार करते-करते ताजनगरी में गांधीजी का चरखा थम गया है। ऐसे में सूत की कताई नहीं हो पा रही। खादी से बने कपड़ों का प्रोडक्शन बंद हो गया है। इसके चलते 1700 से अधिक बुनकर बेरोजगार बैठे हैं।
आगरा, जागरण संवाददाता। कोरोना काल में आम आदमी की जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए अधिकांश गतिविधियों से प्रतिबंध हटा दिए गए हैं। सरकारी और गैर सरकारी स्तर से कामकाज शुरू हो गए हैं। मगर, बुनकरों की जिंदगी अभी भी पटरी पर नहीं आ रही। गांधी आश्रम की तरफ से इन्हें सूत कताई का काम नहीं मिल पा रहा। ऐसे में इनके सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।
बजट का इंतजार करते-करते ताजनगरी में गांधीजी का चरखा थम गया है। ऐसे में सूत की कताई नहीं हो पा रही। खादी से बने कपड़ों का प्रोडक्शन बंद हो गया है। इसके चलते 1700 से अधिक बुनकर बेरोजगार बैठे हैं। कोरोना काल में स्थिति और ज्यादा बिगड़ गई। श्रीगांधी आश्रम पिछले कई सालों से आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। सरकार बजट तो स्वीकृत कर रही हैं लेकिन धनराशि जारी नहीं की जा रही। इसके चलते प्रबंधन समिति खादी के विभिन्न प्रोडक्ट तैयार कराने के लिए कच्चे माल के तौर पर रूई नहीं खरीद पा रहे। न ही बुनकरों को भुगतान के लिए बजट है। इसके चलते कताई का काम पूरी तरह से रुका हुआ है। समिति ने खादी ग्रामोद्योग से दो करोड़ रुपये की डिमांड भेजी है।
ये तैयार होते हैं आगरा में
आगरा में कालीन, दरी, फर्शी दरी, गमछा, तौलिया, चादर, पर्दे के थान, रजाई के कवर, धोती, बैडशीट आदि तैयार किए जाते हैं। कत्तिन (बुनकर) रूई को कातकर प्यूनी (रूई की लड़ी) और टेप (रूई का) तैयार करती हैं। इसके बाद चरखे पर इसके धागे तैयार किए जाते हैं। दरी और फर्श के लिए मोटे धागे तथा चार, गमछा आदि के लिए पतले धागे तैयार किए जाते हैं।
बजट के अभाव में हम रूई नहीं खरीद पा रहे। बुनकरों के भुगतान के लिए भी रकम नहीं है। इसके चलते सूत की कताई का काम रुका हुआ है।
- शम्भू नाथ चौबे, मंत्री, श्रीगांधी आश्रम
फैक्ट
120 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलती है मजदूरी
05 किलो तक एक बुनकर हर रोज कात लेता है सूत
03 करोड़ रुपये की जरूरत है काम शुरू कराने के लिए
1981 में आगरा में बना श्रीगांधी आश्रम का जोन