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रक्षाबंधन पर कैलाशपति का गंगाजल से अभिषेक, हो चुकी पूरी तैयारी Agra News

सरकारी प्रयासों से कैलाशपति की जटाओं तक गंगाजल पहुंचेगा। 15 लाख की लागत से सात से डाली जाएगी पाइप लाइन।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 05 Aug 2019 11:46 AM (IST)Updated: Mon, 05 Aug 2019 11:46 AM (IST)
रक्षाबंधन पर कैलाशपति का गंगाजल से अभिषेक, हो चुकी पूरी तैयारी Agra News
रक्षाबंधन पर कैलाशपति का गंगाजल से अभिषेक, हो चुकी पूरी तैयारी Agra News

आगरा, संजीव जैन। शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन में निकले हलाहल को पीने से भगवान नीलकंठ के शरीर में उत्पन्न हुआ ताप विभिन्न प्रकार के अभिषेक से शांत होता है। सावन माह में भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करने का विशेष महत्व है। श्रद्धालु सुदूर क्षेत्रों से कांवड़ में गंगाजल लाकर कैलाश महादेव का अभिषेक करते हैं। लेकिन, अब सरकारी प्रयासों से कैलाशपति की जटाओं तक गंगाजल पहुंचेगा। रक्षाबंधन और देश की आजादी के 72 साल पूरा होने पर 15 अगस्त को पौराणिक तीर्थ कैलाश मंदिर में यह इबारत लिखी जाएगी।

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कैलाश मंदिर ट्रस्ट के संरक्षक निर्मल गिरी व मठाधीश पं. महेश गिरी की मानें तो जल निगम 15 लाख की लागत से जल संस्थान के प्रोजेक्ट स्थल से 1700 मीटर तक छह इंच पाइप लाइन बिछाएगा। सात अगस्त से काम शुरू हो जाएगा। 15 अगस्त को कैलाश मंदिर तक परिसर में ही गंगाजल से श्रद्धालु कैलाश महादेव का अभिषेक कर सकेंगे।

गंगा-यमुना का एक संगम यहां भी

प्रयागराज व उत्तरकाशी के गंगनानी में गंगा-यमुना का संगम होता है पर अब यमुना के सुरम्य तट पर बने कैलाश मंदिर के समीप ही गंगाजल व यमुना का संगम होगा।

कैलाश मंदिर का है पौराणिक महत्व 

कैलाश मंदिर में एक ही जलहरी में दो शिवलिंग हैं। जनश्रुति के अनुसार महर्षि परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि प्रतिदिन रेणुका धाम (अब रुनकता) से भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलास पर्वत जाते थे। उन्हें भगवान से वरदान मिला कि पर्वत की जिस शिला को साथ ले जाओगे, वह मेरा ही स्वरूप होगा। वापसी में दोनों पिता-पुत्र संध्या पूजन को यमुना तट पर रुके स्नान के लिए साथ लाए दोनों शिव स्वरूप शिलाएं तट पर रख दीं। स्नान के बाद जब शिलाओं को साथ ले जाने का प्रयास किया तो वह अचल हो गईं। कालांतर में उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण हुआ, जनश्रुति के अनुसार शिवलिंग कैलास पर्वत से लाए गए थे, इसलिए इस मंदिर का नाम भी कैलाश रख दिया गया।

गंगाजल अभिषेक का है विशेष महत्व 

महंत निर्मल गिरी का कहना है कि हजारों वर्ष पहले क्षीर मंथन के दौरान अमृत का कलश मिला तो राक्षसों ने देवताओं से छीन लिया और मोहिनी रूप धारण कर भगवान विष्णु ने राक्षसों से इस कलश को प्राप्त कर लिया। विष को शिव ने धारण किया। सावन मास में शिवलिंग पर गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। अभिषेक का इतना महत्व है कि शिव के विष की शक्ति भी क्षीण हो गई। भगवान शिव को तभी से श्रद्धापूर्वक गंगाजल अर्पित किया जाने लगा। सावन में प्रत्येक व्यक्ति को शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करना चाहिए। 

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