Water Conservation: चेत जाएं, ब्रज की रज से हर दिन दूर हो रहा जल, देखें क्या कहते हैं आंकड़े
Water Conservation जल संरक्षण की दृष्टि से देखें तो यमुना से लेकर कुएं तालाब तक सब अतिक्रमण और प्रदूषण की भेंट चढ़ते जा रहे हैं।
आगरा, तनु गुप्ता। ब्रज यानि कान्हा की धरती। वो धरती जिसकी रज स्वतः ही पवित्र है। जहां कल कल बहती यमुना पापों से मुक्ति का मार्ग दिखाती है। यमुना के घाट जल की महत्ता को और बढ़ाते हैं। ब्रज को यदि दूसरे शब्दों में प्राकृतिक विरासतों का धाम कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। लेकिन आज की हकीकत अगर देखी जाए तो ये बंशीवाले की नगरी का वास्तविक सौंदर्य खोता जा रहा है। आगरा से लेकर वृंदावन तक अब बस प्रकृति की सुंदरता सिर्फ कल्पना मात्र के लिए रहती जा रही है। जल संरक्षण की दृष्टि से देखें तो यमुना से लेकर कुएं तालाब तक सब अतिक्रमण और प्रदूषण की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। पर्यावरण विशेषाज्ञ डॉ केपी सिंह के अनुसार भारत में जल प्रदूषण से जनित रोगों से 3 लाख मौतें प्रति वर्ष होती हैं।
पानी की प्रचुरता और सुव्यवस्था का धनी रहा है मथुरा
डॉ केपी सिंह बताते हैं कि ऐतिहासिक अवशेष इस बात को सिद्ध करते हैं कि कभी मथुरा की जलीय व्यवस्था पूर्ण और सुव्यवस्थित हुआ करती थी। दो नदियों यमुना और पटवाह , तीन सहायक नदियों करबन, सेंगर व सिरसा । तीन झील नोहझील , मोतीझील माँट व मोतीझील वृंदावन। चार सरोवरों पानसरोवर नंदगांव , मानसरोवर वृंदावन, चंद्र सरोवर पारासौली गोवर्धन व प्रेम सरोवर बरसाना । 25 घाट , 159 कुंड, सैकड़ों ताल , पोखर और कूपों के रूप में पानी की उपलब्धता प्रचुर मात्रा मे रही है।
वर्तमान में खतरनाक हैं हालात
मथुरा में बिना टैपिंग के नाले , धातुओं, केमीकल, साड़ी रंगाई के कारखानों का कचरा यमुना नदी में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। अप्रैल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार मथुरा के कुल 37 नालों में से 15 का गंदा पानी सीधे यमुना नदी में गिरता है। वृन्दावन के 2 नाले भी सीधे यमुना नदी में गिरते हैं। लगभग 65% सीवेज सीधे यमुना में गिरकर नदी में प्रदूषण बढ़ा रहा है। यूपीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार मई 2020 में यमुना नदी में डिजाल्व आक्सीजन (डीओ) की औसत मात्रा 6.55 मि.ग्रा. प्रति लीटर , बायो आक्सीजन डिमांड (बीओडी ) 8.3 मि.ग्रा. प्रति लीटर एवं टोटल काॅलिफार्म ( मानव व जीव अपशिष्ट ) की औसत मात्रा 88500 एमएनपी प्रति लीटर है। जो कि तय मानक के स्तर से बहुत अधिक और खतरनाक स्तर पर है।
लगातार गिर रहा भूगर्भ जल स्तर
भूगर्भीय जल लगातार गिर रहा है। 10 ब्लाक में से बल्देव , नौहझील व राया ब्लाकों को डार्क जोन में रखा गया हैं। साथ ही फरह व मांट ब्लाक क्रटिकल जोन के मुहाने पर खड़े हैं। जो कि पानी के गंभीर संकट को दर्शाता है। खारे पानी की गंभीर समस्या से मथुरा पहले से ही जूझ रहा है। मथुरा में हजारों आरओ प्लांट एवं समरसीबल से पानी का दोहन हो रहा है जिसके कारण कुछ स्थानों पर भूजल तीसरे स्ट्रेटा (90 से 150 मीटर ) तक पहुँच गया है। कुछ ही बर्षों के बाद मथुरा को इसके रेगिस्तान जैसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन का अभाव
डाॅ केपी सिंह बताते हैं कि वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम 2019 की रिपोर्ट के अनुसार अकेले भारत में 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा प्रति वर्ष तैयार होता है। एक लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा किसी ना किसी रूप में विदेश से भारत आता है। सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार 25,940 टन प्लास्टिक कचरा प्रतिदिन निकलता है। उत्तर प्रदेश से कानपुर का स्थान प्लास्टिक कचरा उत्पादन में देश के 9वे नंबर पर है। मथुरा में अक्टूबर 2019 में सांसद हेमामालिनी ने जमुनापार में नगर निगम के डंपिग ग्राउंड में प्लास्टिक कचरे से डीजल उत्पादन के प्लांट का उद्धाटन किया था। लेकिन इसके परिणाम का अभी तक इंतजार है। सरकारी आकड़ों के अनुसार भारत में 1947 में तालाबों की संख्या लगभग 24 लाख थी। वर्तमान में लगभग 5 लाख तालाब बचे हैं जिनमें से लगभग 25 % तालाब कूडे व पोलीथिन के ढेर और सूखे से अपने मूल अस्तित्व को खोने जा रहे हैं। मथुरा में 2000 तालाब हैं। जिनमें से 1100 तालाबों पर गंभीर संकट खडा हुआ है जिसके लिए गत वर्ष पुनरूद्धार कार्यक्रम चलाया गया था ।
आगरा के तालाब और कुओं के अस्तित्व पर गंभीर संकट
जिला आगरा की बात करें तो 990.703 वर्ग हेक्टेयर क्षेत्रफल में 3687 तालाब हैं। जिनमें से मूल रूप में बचे 2825 तालाबों पर गंभीर संकट खडा हुआ है और 59 तालाबों का अस्तित्व पूर्ण रूप से समाप्त हो चुका है जिनमें शहर के महत्वपूर्ण स्थानों के तालाब भी शामिल हैं। परिणाम स्वरूप आगरा के भूगर्भीय जल स्तर में 30 सेन्टीमीटर से लेकर एक मीटर तक की गिरावट प्रति वर्ष हो रही है। जिसके कारण भूजल तीसरे स्ट्रेटा (90-150 मीटर) तक पहुंच गया है। चार हजार आरओ प्लांट और चार लाख समरसीबल पंप ने भी दोहरी मार भूगर्भीय जल पर कर रखी है।
यमुना में रुके प्रदूषण और अन्य सूखी नदियों में पानी चले तो कुछ हालात सुधरें
जनपद में सात मुख्य नदियों का जाल बिछा हुआ है जिनमें केवल यमुना और चंबल नदी में ही पानी रहता है लेकिन पार्वती, खारी, उटंगन, वाणगंगा और किवाड नदियों का अस्तित्व पूर्णतः खतरे में है। अगर इन नदियों की खुदाई कर इनमें पानी छोड़ा जाए तो आगरा के भूगर्भीय जल स्तर को गिरने से रोका जा सकता है। आगरा की यमुना में कुल 92 नालों में से 61 का गंदा पानी सीधे यमुना नदी में गिरता है। इन नालों से 216 एमएलडी सीवेज बिना ट्रीटमेंट यमुना में गिर रहा है। लगभग 61% सीवेज सीधे यमुना में गिरकर नदी में प्रदूषण बढ़ा रहा है। यूपीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार मई 2020 में यमुना नदी में डिजाल्व आक्सीजन (डीओ) की औसत मात्रा 7.4 मि.ग्रा. प्रति लीटर , बायो आक्सीजन डिमांड (बीओडी ) 9.2 मि.ग्रा. प्रति लीटर एवं टोटल काॅलिफार्म ( मानव व जीव अपशिष्ट ) की औसत मात्रा 52000 एमएनपी प्रति लीटर है। जो कि तय मानक के स्तर से अधिक है। ताजमहल के निकट यमुना नदी से लिए सैंपल में टोटल काॅलिफार्म ( मानव व जीव अपशिष्ट ) की मात्रा 79000 एमएनपी प्रति लीटर है। जो अत्यंत घातक है।