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मयन की तपोभूमि से टकरा कर लौटी हर बार सियासी लहर

मैनपुरी लोकसभा सीट पर राम लहर चली और न मोदी लहर। देश और सूबे के सियासी माहौल से अलग सोचता रहा यहां का मतदाता।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 12:20 PM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 12:20 PM (IST)
मयन की तपोभूमि से टकरा कर लौटी हर बार सियासी लहर
मयन की तपोभूमि से टकरा कर लौटी हर बार सियासी लहर

 आगरा, दिलीप शर्मा। मयन ऋषि की ये तपोभूमि सियासत में अपना अलग वजूद रखती रही है। सूबे और देश में चाहे जो माहौल रहा हो, मगर यहां के मतदाता मनमौजी ही रहे। इमरजेंसी की बात छोड़ दें तो रामलहर यहां की सियासी धरा से टकराकर मायूस हो गई तो मोदी लहर को भी हताश होना पड़ा।

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वर्ष 1991 में अयोध्या प्रकरण को लेकर जबर्दस्त रामलहर चली थी। पूरे प्रदेश में भाजपा के प्रति लोगों में समर्थन का भाव पैदा हुआ था। उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा पहली बार मैनपुरी लोकसभा सीट पर मैदान में उतरी थी। रामनरेश अग्निहोत्री (वर्तमान में भाजपा से भोगांव विधायक) प्रत्याशी थे। जबकि जनता पार्टी से उदयप्रताप सिंह उम्मीदवार थे। चुनाव में उदयप्रताप सिंह ने जीत हासिल की थी।

इसके बाद वर्ष 2014 में जबर्दस्त मोदी लहर चली थी। उस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अकेले सूबे में ही नहीं, पूरे देश में रिकार्ड सीटें जीती थीं। परंतु तब ये लहर भी मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र की दीवारों से टकराकर लौट गई। उस चुनाव में सपा के मुलायम सिंह यादव के सामने भाजपा ने शत्रुघ्न सिंह चौहान को रणक्षेत्र में उतारा था। चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने 3.64 लाख वोटों के रिकार्ड अंतर से भाजपा को करारी शिकस्त दी थी। इसके बाद मुलायम सिंह ने सीट छोड़ी तो नंवबर 2014 में उप चुनाव हुआ। उसमें भी सपा के प्रत्याशी तेजप्रताप यादव ने भाजपा प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य को पराजित किया था।

जातीय समीकरणों ने रोका रास्ता

मैनपुरी लोकसभा में सियासी लहरों का रास्ता हकीकत में यहां के जातीय समीकरण रोकते रहे। लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां पिछड़ा वर्ग के मतदाता निर्णायक स्थिति में माने जाते हैं, जो करीब 45 फीसद बताए जाते हैं। इनमें भी यादव वोटरों का आंकड़ा करीब 25 फीसद माना जाता है। इनके अलावा 25 फीसद तक सवर्ण मतदाता और करीब इतने ही दलित मतदाता हैं। अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या सबसे कम लगभग पांच फीसद है। इन लहरों में भाजपा इन जातीय समीकरणों को भेदने में नाकाम रही।

केसरिया संगठन की कमजोरी भी बनी वजह

वर्ष 1991 में जब भाजपा पहली बार चुनावी मैदान में उतरी थी, तब यहां संगठन नाममात्र को ही था। लोकसभा की करहल, किशनी और जसवंत नगर विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी की बिल्कुल भी पकड़ नहीं थी। वर्ष 2014 के चुनाव में भी संगठन पूरे लोकसभा क्षेत्र तक पहुंच नहीं बना पाया था। करहल, जसवंतनगर और किशनी विस क्षेत्र के सैंकड़ों बूथों पर तो बूथ कमेटियां तक नहीं थीं।

वर्ष 1991 का चुनाव

प्रत्याशी, दल, वोट मिले

उदयप्रताप सिंह, जनता पार्टी, 126463

रामनरेश अग्निहोत्री, भाजपा, 114298

कृष्ण चंद्र यादव, कांग्रेस, 93159

शिवराज सिंह यादव, जनता दल, 52839

वेदराम सागर, बसपा, 31509

वर्ष 2014 का चुनाव

प्रत्याशी, दल, मत मिले

मुलायम सिंह यादव, सपा, 595918

शत्रुघ्न सिंह चौहान, भाजपा, 231252

डॉ. संघमित्रा मौर्य, बसपा, 142833

बाबा हरदेव सिंह, आप, 5323

आपातकाल है अपवाद

देश में आपातकाल लागू होने के बाद चली कांग्रेस के विरोध की लहर इस मामले में अकेली अपवाद है। तब मैनपुरी सीट के मतदाता भी देश भर में बने सियासी माहौल से प्रभावित हुए थे। कांग्रेस ने वर्ष 1962, 66 और 71 के लोकसभा चुनावों में लगातार जीत हासिल की थी। परंतु 1977 में हुए लोस चुनाव में भारतीय लोकदल के प्रत्याशी रघुनाथ ङ्क्षसह वर्मा ने कांग्रेस प्रत्याशी महाराज ङ्क्षसह को सवा दो लाख से अधिक वोटों के अंतर से हराया था।  


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