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विष्णु हरि डालमिया का निधन: डूब गया जन्मभूमि के फलक पर चमचमाने वाला एक सितारा

91 वर्षीय विष्णु हरि डालमिया के निधन से शहर को लगा झटका। जीर्णोद्धार के साथ गायों व नारायण की सेवा में रहा जीवनपर्यंत योगदान।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 05:13 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 05:13 PM (IST)
विष्णु हरि डालमिया का निधन: डूब गया जन्मभूमि के फलक पर चमचमाने वाला एक सितारा
विष्णु हरि डालमिया का निधन: डूब गया जन्मभूमि के फलक पर चमचमाने वाला एक सितारा

आगरा, जेएनएन। विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष और कृष्ण जन्मभूमि में तन, मन और धन से सेवा करने वाला एक चमचमाता सितारा हमेशा के लिए डूब गया। 91 वर्षीय विष्णु हरि डालमिया का बुधवार को दिल्ली में निधन हो गया। उनका जन्मभूमि के जीर्णोद्धार के साथ ही गायों और दरिद्र नारायण की सेवा में जीवनपर्यंत उल्लेखनीय योगदान रहा। उनके जाने से मथुरावासियों को बड़ा झटका लगा है। 

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लंबे समय से बीमार चल रहे डालमिया ने गोल्फ ङ्क्षलक स्थित आवास पर सुबह 9.38 मिनट अंतिम सांस ली। शाम करीब चार बजे निगम बोध घाट पर अंतिम संस्कार हुआ। वे श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी नेताओं में थे, साथ ही लंबे समय तक श्रीकृष्ण जन्मस्थान के प्रबंधन्यासी रहे। उनके जानने वाले बताते हैं कि महामना पंडित मदन मोहन के बाद अगर कोई जन्मभूमि के कर्ताधर्ताओं में याद किया जाता है तो वो है डालमिया परिवार।

ऐसा भी नहीं कि अन्य लोगों की अथक मेहनत को कम करके आंका जाए, लेकिन पिता जयदयाल डालमिया और बेटे विष्णु हरि का योगदान अभूतपूर्व कहा जाएगा। क्योंकि मालवीय की प्रेरणा से अगर दोबारा मंदिर स्थापित हुआ तो निर्माण भव्यता और प्रकल्प सब इसी परिवार की इन्हीं की देन कहा जाता है। जन्मभूमि की ईंट- ईंट भी इसकी गवाही देती है।

इस तरह की कारसेवा

जानकार बताते हैं कि करीब 1944 में महामना द्वारा रजिस्ट्री कराई गई, लेकिन स्वास्थ्य खराब होने के चलते वे निर्माण नहीं करा सके। इसके चलते उन्होंने जुगलकिशोर बिड़ला को जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने 1950 में ट्रस्ट बनाया। इसके तीन साल बाद अखंडानंद द्वारा फावड़ा चलाकर कारसेवा का शुभारंभ किया गया। वर्ष 1957 में बिड़ला ने डालमिया परिवार से मंदिर निर्माण कराने का आग्रह किया। जयदयाल डालमिया ने मां के नाम से केशवदेव जी का मंदिर बनवाया। इसमें एक वर्ष का समय लगा। इसके बाद कई साल कार सेवा चली।

भागवत भवन का किया निर्माण

करीब 1962 में भागवत भवन का निर्माण होना शुरू हुआ। इसमें करीब 20 वर्ष का समय लगा। इसी दौरान गेस्ट हाउस, चिकित्सालय भी साथ-साथ तैयार होते गए। इसके बाद गायों और दरिद्र नारायण की सेवा में भी प्रमुख भूमिका रही। उनके प्रकल्पों में मृत गायों की भूसमाधि, निराश्रित शवों का विधि-विधान से अंतिम संस्कार, निश्शुल्क दवा वितरण जैसे कार्य अभूतपूर्व रहे।पिछले कई सालों से स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद उनकी सेवा में कोई कमी नहीं रही। सबसे खास बात, उन्होंने कभी अपने काम का प्रचार करना पसंद नहीं किया।

शोक में जन्मभूमि ट्रस्ट की दुकानें हुई बंद
जन्मस्थान की रौनक माने जाने वाला वहां का बाजार भी विष्णु हरि डालमिया के निधन की खबर सुनते ही स्तब्ध रह गया। जन्मभूमि ट्रस्ट के दुकान संचालकों ने धड़ाधड़ शटर गिराने शुरू कर दिए। इधर, मंदिर परिसर में बच्चों द्वारा शोक सभा आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
 खबर विक्रेताओं के लिए किसी झटके से कम नहीं थी। कारण यह उसी ट्रस्ट द्वारा बनवाई गई दुकानेंं थी, जिसमें डालमिया मुख्य ट्रस्टी थे। अंदर और बाहर मिलाकर करीब 55 दुकानें हैं। जानकार बताते हैं कि वर्ष 1998 से पूर्व यहां दुकान के नाम पर सिर्फ खोखे थे। इसके बाद से पक्का निर्माण होना शुरू हुआ। इस समय यहां भोग प्रसाद, पोशाक, श्रंगार, मूर्ति आदि का सामान मिलता है। ठाकुर जी की कृपा से काम चलता रहता है। इधर, विक्रेताओं ने अपने तय समय से दुकानें खोली लीं। मगर, जैसे ही निधन की खबर आग की तरह फैली, वैसे ही शटर भी गिरने शुरू हो गए। अंदर मंदिर परिसर में भी यही हाल रहा।


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