Republic Day Special: तब गांव- गांव रोशन हुई थी आजादी की मशाल, आज भी बाकि हैं वो निशान Agra News
आगरा शहर जहां प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र रहा वहीं देहात के कस्बे भी आजादी की आंच में तप रहे थे।
आगरा, आशीष कुलश्रेष्ठ। जंग ए आजादी में ब्रिटिश हुकूमत के छक्के छुड़ाने वाले आजादी के मतवालों से शहर ही नहीं ग्रामीण अंचल भी भरा पड़ा है। नमक आंदोलन, असहयोग आंदोलन समेत सत्याग्रहों की पथरीली राह पर उन्होंने क्रांति की नई इबारत लिखी। काले पानी की सजा काटी, हंसते- हंसते फांसी के फंदे पर भी झूल गए, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत के ताबूत में कील ठोकते रहे। आगरा शहर जहां प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र रहा, वहीं देहात के कस्बे भी आजादी की आंच में तप रहे थे।
ये बात हवाओं को बताए रखना,
रोशनी होगी चिरागों को जलाए रखना।
लहू देकर जिसकी हिफाजत हमने की,
ऐसे तिरंगे को दिल में बसाए रखना।
चमरौला रेलवे स्टेशन पर हुए थे चार शहीद
28 अगस्त, 1942 को रक्षाबंधन के दिन चमरौला स्टेशन पर धावा बोला गया। किशन लाल स्वर्णकार ने रेलवे स्टेशन के कार्यालय पर मिट्टी का तेल छिड़का, माचिस की तीली जलाते ही पीएसी के जवानों ने गोली दाग दी। इसमें किशन लाल की अंगुलियां उड़ गईं। अंधाधुंध फायङ्क्षरग में साहब सिंह, खजान सिंह, सोरन सिंह मौके पर ही शहीद हो गए। विधवा हो चुकी उनकी अर्धांगिनियों ने पहचान छिपाने के लिए अपने सुहाग चिह्न तक नहीं उतारे थे।
बरहन रेलवे स्टेशन पर धावा
बरहन में आठ अगस्त, 1942 को गांधी जी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आह्वान पर करो या मरो आंदोलन का एलान किया गया। इसके साथ ही आगरा के ग्रामीण क्षेत्र में क्रांति की जो ज्वाला धधकी, उसने शहरी क्षेत्र को पीछे छोड़ दिया। तहसील एत्मादपुर के बरहन में 14 अगस्त, 1942 को हजारों की संख्या में आजादी के रणबांकुरों ने बरहन रेलवे स्टेशन पर धावा बोल दिया। वहां से संचार व्यवस्था भंग की और स्टेशन को आग के हवाले कर दिया। यह कार्रवाई रात 10 से 11 बजे के बीच हुई। जब पुलिस पहुंची, भीड़ अधिकांश गोदामों से अनाज लूटकर ले जा चुकी थी। तब बरहन के थाना अहारन में फायङ्क्षरग हुई, जिसमें बैनई निवासी केवल सिंह जाटव शहीद हो गए। बरहन स्टेशन पर धावा बोलने का निर्णय आंवलखेड़ा में ठाकुर लक्ष्मण सिंह के यहां जिला कांग्रेस कमेटी के मंत्री ठाकुर उल्फत सिंह चौहान निर्भय की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया था।
जुर्माने से बना राष्ट्रीय इंटर कॉलेज
चमरौला व बरहन कांड के बाद 25 हजार रुपये के सामूहिक जुर्माने की सजा हुई। यह जुर्माना आजादी के बाद राष्ट्रीय सरकार द्वारा वापस कर दिया गया। इन्हीं रुपयों से क्षेत्र को शिक्षित करने और उसके सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षण संस्था की स्थापना हुई, जो आज बरहन में राष्ट्रीय इंटर कालेज के रूप में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है।
किरावली के आंदोलन में रोझौली के 20 लोग गए थे जेल
किरावली में अगस्त 1942 को नव युवा और बुजुर्ग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मुंशी काशीराम, उनकी पत्नी काव्या, बद्रीप्रसाद और उनके साथियों ने गांधीजी के इस आंदोलन के लिए सड़क पर खूब संघर्ष किया। कवि राजेंद्र निडर बताते हैं कि 'अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलनÓ में शामिल होने वाले तोताराम, द्रोपा सिंह, चिरंजीलाल, कुंवरपाल, कुंदर सिंह, नेकराम, रामलंबर, लक्ष्मण सिंह थे।
बाह के गेंदालाल ने डकैतों को किया था देशसेवा के लिए प्रेरित
बाह के मई गांव निवासी गेंदालाल दीक्षित ने देश को आजादी दिलाने की ठानी तो वे इसके लिए डकैत गिरोह से जा मिले और उन्हें देश सेवा के लिए प्रेरित किया। 21 फरवरी, 1915 को आजादी के आंदोलन को धार देने के लिए मातृ देवी संस्था का गठन किया। इसमें 36 डकैत शामिल हुए। आजादी के लिए हथियारों की जरूरत पड़ी तो भिंड से आगरा के लिए बक्से में रख हथियार लाते समय आगरा में फंस गए। चतुराई से यहां से बच निकले। मैनपुरी में अंग्रेजों के खिलाफ हुई जंग में जब फंसे तो उनके अलावा 38 देशभक्तों पर मुकदमा चला। जेल जाने के बाद वे वहीं से फरार हो गए। गेंंदालाल दीक्षित अपनी बहन सुभद्रा के साथ पिनाहट के गांव जोधपुरा में अपनी ननिहाल में भी कई दिन रुके थे। आज वह जगह खंडहर बनी हुई है।
पारना में घर-घर जली थी आजादी की मशाल
वर्ष 1857 में आजादी पाने के लिए घर-घर मशाल जल रही थी। क्रांति को धार देने के लिए पारना की वीरांगना विद्यावती राठौड़ ने मोर्चा संभाला। क्रांतिकारी उन्हें लक्ष्मीबाई के नाम से पुकारते, किरावली सत्याग्रह में उन्होंने जो किया, उसकी वीरगाथा आज भी लोग सुनाते हैं। विद्यावती ने वर्ष 1930 के नमक सत्याग्रह में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। किरावली तहसील में दिए धरने में विद्यावती को बंदी बना लिया गया। एक साल की सजा हुई। रिहा होने के बाद पारना गांव में अपने किले पर तिरंगा फहराया। उन्होंने पारना गांव के मंदिर में अनुसूचित जातियों लिए द्वार खोल दिए।
बटेश्वर बना आजादी का केंद्र
27 अगस्त, 1942 के दिन बटेश्वर में जो कुछ हुआ वह आजादी की लड़ाई के लिए बेमिसाल था। रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरियों का मेला लगा। चौक में आल्हा चल रहा था। लीलाधर ने लोगों के उत्साह और आक्रोश को जगाकर अंग्रेजों के खिलाफ घने बीहड़ के बीच जंगलात कोठी पर तिरंगा फहरा दिया। इस क्रांतिकारी गतिविधि में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का भी नाम आया। बाद में अंग्रेजों ने जुर्माना लगाया तो पूरे बटेश्वर ने अपने जेवरात बेचकर चंदा लगाया।