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Pulwama Terror Attack: अब न खेलेगा कहरई अपने कौशल संग होली

गांव के लाल की शहादत पर ग्र्रामीणों का सीना गर्व से चौड़ा। रिश्तेदारों से मिली थी शहादत की खबर।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 15 Feb 2019 04:31 PM (IST)Updated: Fri, 15 Feb 2019 04:31 PM (IST)
Pulwama Terror Attack: अब न खेलेगा कहरई अपने कौशल संग होली
Pulwama Terror Attack: अब न खेलेगा कहरई अपने कौशल संग होली

आगरा, जागरण संवाददाता। शहर से सटे कहरई गांव में गुरुवार शाम लोग अपने-अपने घरों में थे, तभी कौशल कुमार रावत के शहीद होने की खबर मिली। गांव का सन्नाटा अपनों की चीखों से टूट गया। ग्र्रामीणों की आंखों में गम है, तो अपने लाल की शहादत पर गर्व भी।

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कहरई गांव की आबादी करीब 8 हजार की है। शहीद कौशल कुमार रावत का परिवार काफी बड़ा है। गांव के दो सौ से अधिक लोग सेना, सीआरपीएफ, पीएसी और पुलिस में तैनात हैं। इनमें अकेले कौशल के परिवार के बीस लोग हैं। शाम सात बजे शहादत की खबर फोन पर रिश्तेदारों ने दी, छोटे भाई कमल कुमार ये खबर बुजुर्ग पिता गीताराम और मां धन्नो देवी को देने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। आंखों में आंसू लिए कुछ देर घर के बाहर बरामदे में सोचते रहे और फिर साहस जुटाकर मां-बाप को खबर सुनाई। कलेजे के टुकड़े की शहादत की खबर ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया। घर के आंगन में दोनों बैठ गए और आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। कुछ ही देर में पूरे गांव में खबर फैली और फिर भीड़ जुटती रही। रात करीब 11 बजे क्षेत्र के लेखपाल भी मौके पर पहुंच गए। गांव में हर ओर केवल कौशल और उनकी बहादुरी के ही किस्से लोगों की जुबां पर रहे।

देश की सेवा का था जज्बा

कौशल कुमार के अंदर देश की सेवा का जज्बा बचपन में से ही था। परिवार में काफी लोग सेना, सीआरपीएफ और अन्य सेवाओं में हैं। ऐसे में बचपन से ही वह भी फौज में भर्ती होना चाहते थे। उनके रिश्ते में चचेरे भाई और सेना से रिटायर हुए आशाराम कौशल के बेहद करीबी थे। गांव में जब कौशल आते थे, तो उनसे ही सबसे ज्यादा बात होती थी। ड्यूटी के दौरान भी फोन पर उनसे बात करते थे। आशाराम बताते हैं कि वह बचपन से ही फौज में भर्ती होना चाहते थे। 1990 में जब वह सीआरपीएफ में भर्ती हुए तो गर्व से सीना चौड़ा था, गांव में घूम-घूमकर कहते थे कि अब मैं भी देश की सेवा करूंगा। ये कहते -कहते आशाराम की आंखों से आंसू में आ गए। बोले, आखिर देश की रक्षा में ही हमारा लाल शहीद हो गया।

मां होली पर आऊंगा...

जिस बेटे कौशल को नौ माह तक गर्भ में पाला, फोन पर जब उसकी आवाज सुनी तो बुजुर्ग धन्नो देवी की आंखें खुशी से चमक उठीं। कौशल ने एक दिन पहले ही कहा था, मां में होली पर गांव आऊंगा। बस बेटे के यही शब्द मां और छोटे भाई कमल के कानों में अब तक गूंज रहे हैं।

कौशल कुमार की सिलीगुड़ी में सीआरपीएफ की 76वीं बटालियन में नायक के रूप में तैनाती थी। 15 दिन पहले उनका तबादला जम्मू-कश्मीर की 115 बटालियन में हुआ था। 12 फरवरी को उन्होंने जम्मू में ज्वॉइन किया था। अगले ही 13 फरवरी को दिन में करीब 11 बजे कौशल ने छोटे भाई कमल कुमार को फोन किया। कमल को बताया कि 12 को ज्वॉइन कर लिया है, अब उन्हें पोस्टिंग मिलेगी। फिर कौशल ने मां से बात करने की इच्छा जताई। मां धन्नो देवी से फोन पर कहा कि मां मैं होली पर छुïट्टी में आऊंगा। ये शब्द सुनकर मां की आंखों में खुशी छलक उठी। बस यही लाल के आखिरी शब्द थे, जो अब तक मां और भाई के कानों में गूंज रहे हैं। बेटे के उन्हीं आखिरी शब्दों को याद कर बार-बार मां बेहोश हो जाती हैं। पिता गीताराम की आंखों से आंसुओं का सैलाब बार-बार उमड़ पड़ता है। आखिरी फोन की बात बताते-बताते भाई कमल कुमार फफक पड़े। मकान के आंगन में एक कोने में बैठे और बड़े भाई से जुड़ी यादों में खो गए। कमल ये बताते-बताते रोने लगे कि बड़े भाई उन्हें बहुत ही प्यार करते थे। उन्हें क्या पता था जिस भाई से वह फोन पर बात कर रहे हैं, उन्हीं की शहादत की 32 घंटे बाद खबर मिलेगी।

कौशल की यादों में खो गए साथी

अक्सर छुïट्टी पर कौशल कुमार गांव कहरई जरूर आते थे। रिश्ते में चाचा और सीआरपीएफ में डिप्टी कमांडेंट विनोद कुमार रावत के नाती निकुंज के नामकरण संस्कार में 21 सितंबर को कौशल गांव आए थे। तब ग्र्रामीणों से मिले और खूब बाते कीं। करीब दो माह की छुïट्टी के दौरान वह कभी गुरुग्र्राम पत्नी और बच्चों के पास जाते, तो कभी गांव कहरई आते। दीपावली में भी वह कहरई आए थे। परिवार के सियाराम रावत बताते हैं कि जब भी कौशल गांव आते, सबसे घूम-घूमकर मिलते थे। दीपावली की आखिरी मुलाकात में कौशल का हंसमुख चेहरा आज भी साथियों की आंसू भरी आंखों में साफ दिखाई दिया। आंखें बार-बार अपने कौशल को तलाशती रहीं। कौशल के चचेरे भाई सत्य प्रकाश रावत बताते हैं कि गांव के बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में कौशल लोकप्रिय थे। वह सबसे इतनी आत्मीयता से मिलते थे, कि उनके ड्यूटी पर जाने के बाद सबको उनकी याद आती थी। परिवार के विजय रावत, अजय रावत बताते हैं कि बचपन में गांव की गलियों में हम कौशल के साथ दिन भर खेलते थे। आज कौशल की शहादत पर गांव की सूनी और गुमसुम गलियां भी अपने लाल को ढूंढ रही हैं।

गांव के स्कूल से एमडी जैन तक पढ़ाई

कौशल ने शुरुआती पढ़ाई गांव के प्राथमिक स्कूल से की। इसके बाद हाईस्कूल तक पढ़ाई शहर के एमडी जैन इंटर कॉलेज से की। बाद में उनकी सीआरपीएफ में नौकरी लग गई।

शहीद के नाम पर हो गांव का नाम

कौशल कुमार की शहादत से ग्र्रामीण गमजदा भी हैं और देश के लिए प्राण न्यौछावर करने पर गर्व भी महसूस कर रहे हैं। बस उनकी यही मांग है कि प्रशासन कौशल की शहादत को संजोने को गांव का नाम उनके नाम पर कर दे।

रविंद्र रावत, पवन रावत, सत्य प्रकाश, कहते हैं कि कौशल ने देश के लिए शहादत दी है। गांव की सड़कें ऊबड़-खाबड़ हैं। गांव का विकास हो और स्कूल से लेकर गांव का नाम शहीद के नाम पर किया जाए। उन्होंने कहा कि गांव में शहीद के नाम से द्वार तो बनाया ही जाए, पत्नी को नौकरी दी जाए। ताकि उनका बच्चों की जीविका चल सके। ग्र्रामीण बस गर्व से यही कहते हैं कि हमारे लाल ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए हैं, तो हम भी लाल को ऐतिहासिक विदाई देंगे। पूरा गांव शहादत को नमन करने के लिए उमड़ेगा। रिश्ते में कौशल के चाचा सत्य प्रकाश कहते हैं कि हमने अपना बेटा खो दिया, लेकिन हमें ये बताते हुए भी फक्र है कि जिस देश की सेवा उसने नौकरी में रहकर 27 साल तक की, उसी देश की रक्षा के लिए वह शहीद हुआ। गांव के युवाओं को भी कौशल की शहादत से प्रेरणा मिली है।  


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