Pulwama Terror Attack: मानो श्रद्धा का समंदर, देशभक्ति का धाम बना हो शहीद का गांव
शहीद को दर्शन को कहरई में जुटा कारवां। छतों से पुष्प वर्षा, माथे से लगाई पार्थिव शरीर से उठी माला।
आगरा, विनीत मिश्र। ये देश के प्रति समर्पण और श्रद्धा के संगम का अनूठा नजारा था। कहरई कहने को छोटा सा गांव है, लेकिन श्रद्धा के समंदर में उठती हिलोरों ने इसे देशभक्ति का धाम बना दिया।
करीब आठ हजार की आबादी वाले इस गांव में इतने लोग जुटे, जिनकी गिनती भी असंभव थी। शनिवार को पौ फटने के साथ ही शहीद के अंतिम दर्शन को हजारों कदम खुद-ब-खुद कहरई की ओर बढ़ चले। किसी को कहरई का रास्ता पूछने की जरूरत नहीं थी। जिधर आगे की भीड़ मुड़ती, पीछे का काफिला भी उसी तरफ चल देता।
इधर, दिन चढ़ता रहा और उधर कहरई में श्रद्धा का सैलाब। सुबह आठ बजे तक कई हजार आंखें दर्शन को बेताब थीं। एक नारा गूंजता- जब तक सूरज चांद रहेगा, हजारों लब खुद ही बोलने लगते- कौशल तेरा नाम रहेगा। फिर बारी आई गांव की परिक्रमा की। चार किमी की परिक्रमा में क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग। न थके, न रुके। बस चलते ही रहे। जुबां पर कुछ था, तो शहादत के सम्मान में नारे। देशभक्तों के कारवां के आगे गांव की गलियां भी संकरी पड़ गईं। जिस गली से शहीद का रथ गुजरा, छतों से फूल बरसे, हर घर पर तिरंगा फहराया गया। रथ पर सवार परिजन पार्थिव शरीर पर चढ़ी फूलों की माला उछालते। जिस हाथ में ये माला आती, वो उसे अपने माथे पर लगा लेता। ऐसी माला लपकने की होड़ सी लगी रही।
ताजगंज में रहने वाले अस्सी बरस के फूलचंद्र शर्मा भी सुबह सात बजे कहरई पहुंच गए। गांव की परिक्रमा में शरीर साथ नहीं दे रहा था, लेकिन मन की आस्था ने कदम रुकने नहीं दिए। उम्र के इस पड़ाव पर चेहरे पर थकान साफ दिख रही थी, लेकिन शहीद को अंतिम विदाई देने की तमन्ना में अंत्येष्टि स्थल पहुंचकर ही कदम रुके। सदर क्षेत्र में रह रहे 60 साल के दीनानाथ दिवाकर चार दिन से बुखार से पीडि़त थे, लेकिन आज कहरई उनके लिए किसी मंदिर से कम नहीं था। जब हिम्मत कर गांव की ओर कदम बढ़ाए, तो बुखार भी पस्त पड़ गया। अंत्येष्टि स्थल पर जब बेटे ने पिता को मुखाग्नि दी, तो हजारों हाथ शहीद के नमन को खुद-ब-खुद जुड़ गए।