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सबमें सबला तो मतदान में अबला क्यों, आंकड़े देख चौंक जाएंगे आप

मतदान में भी अब बराबरी की बारी में नारी शक्ति। महिला प्रत्‍याशी होने के बावजूद भी महिला मतदाताओं का प्रतिशत रहता है निराशाजनक।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 05:49 PM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 05:49 PM (IST)
सबमें सबला तो मतदान में अबला क्यों, आंकड़े देख चौंक जाएंगे आप
सबमें सबला तो मतदान में अबला क्यों, आंकड़े देख चौंक जाएंगे आप

आगरा, विनीत मिश्र। जल-थल हो या नभ, हर क्षेत्र में नारी शक्ति ने अपना परचम फहराया है। सिलसिला और रफ्तार से जारी है। मगर जब देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में सहभागिता की बात की जाए तो ये सबला निरंतर 'अबला' ही साबित हुई है। राजनीतिक क्षितिज में तो आधी आबादी की मौजूदगी अपेक्षित नहीं हो पाई, मतदान के दायित्व निर्वहन में भी हमेशा पुरुषों से पीछे ही रही। कभी घर-गृहस्थी से फुरसत नहीं मिली तो कभी अपने इस अधिकार का उपयोग करने की जरूरत नहीं समझी। अब फिर बराबरी दिखाने की बारी आई है। हिचक-झिझक की देहरी लांघ बूथ तक पहुंचना है और दुनिया को दिखा देना है कि मतदान में भी अब हम अबला नहीं रहे। 

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तेरे माथे पर ये आंचल तो बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था।।
मजाज लखनवी का ये शेर शायद महिलाओं ने नहीं सुना। जब महिलाएं चांद पर पहुंच रही हैं, मगर सियासत के फलक पर नई इबारत लिखने की बेताबी आधी आबादी में नहीं दिखाई दे रही है। पुरुषों के बराबर हक देने की आवाज बुलंद करने वाली महिलाएं देहरी लांघ वोट की चोट करने में भी हमेशा पीछे ही रहीं। तब भी नहीं जब किसी महिला ने चुनावी मैदान में कूदने की हिम्मत दिखाई। आंकड़े गवाह हैं वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मथुरा से हेमामालिनी मैदान में थीं, तब भी मथुरा में महिलाओं का मत फीसद पुरुषों के मुकाबले 44.59 फीसद ही रहा। यही हाल 2009 में फतेहपुर सीकरी में बसपा प्रत्याशी सीमा उपाध्याय के साथ हुआ। यहां भी महज 44.49 फीसद महिलाओं ने ही वोट दिया था।

एटा-मैनपुरी में महिला मतदान कम

आगरा मंडल की बात करें तो ताजनगरी, फीरोजाबाद और मथुरा में मतदान में महिलाएं पुरुषों के पीछे जरूर रहीं, लेकिन मतदान में बराबरी करने की कोशिश जरूर करती रहीं, लेकिन एटा और मैनपुरी में महिलाओं का मतदान फीसद पुरुषों के मुकाबले बेहद कम रहा।


एटा और मैनपुरी में महिला मतदान कम
आगरा, फीरोजाबाद और मथुरा में महिलाएं मतदान में पुरुषों के पीछे जरूर रहीं, लेकिन मतदान में बराबरी करने की कोशिश जरूर करती रहीं। हां, एटा और मैनपुरी में महिलाओं का मतदान फीसद पुरुषों के मुकाबले बेहद कम रहा।

कभी कदम पीछे, कभी बढऩे की कोशिश
चुनावी समर में महिलाएं कभी मतदान करने को आगे बढ़ीं, तो कभी उनके कदम रुकते गए। कई बार उन्होंने पुरुषों के कदम से कदम मिलाने की कोशिश की, तो कई बार कदम ठिठके भी। एटा में 2014 में ही महिलाओं ने सबसे अधिक 45.67 फीसद मतदान किया तो यहां सबसे कम 1999 में मतदान फीसद 32.59 फीसद रहा। फीरोजाबाद में 1998 में 34.03 सबसे कम और 2004 में 48.92 सबसे अधिक रहा। मथुरा में 46.39 मतदान फीसद सबसे अधिक 1971 में हुआ था, इसके बाद महिला मतदान का रिकॉर्ड नहीं टूट सका। मैनपुरी में 1991 में सबसे अधिक 47.01 फीसद मतदान हुआ, जबकि 2004 में सबसे कम 31.28 फीसद। आगरा में 1971 में 47.80 फीसद मतदान का रिकॉर्ड बना था, जबकि 1998 में 40.28 फीसद सबसे कम मतदान हुआ।


दो ही महिलाएं पहुंच सकीं संसद
इसे सियासत में महिलाओं की बेरुखी कहें या फिर सियासत और मतदाताओं की बेवफाई। आजाद भारत के इतिहास में ब्रज की छह सीटों पर केवल दो महिलाएं ही संसद तक पहुंच सकीं। मथुरा से 2014 में भाजपा की टिकट पर हेमामालिनी ने जीत दर्ज की, तो 2009 में फतेहपुर सीकरी से बसपा की टिकट पर सीमा उपाध्याय सांसद बनीं। मैनपुरी के चुनावों में भजन गायिका तृप्ति शाक्य, संघमित्रा मौर्य, सुमन चौहान ने भी किस्मत आजमाई लेकिन हार मिली। मथुरा में 1984 में चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी ने चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। फिर उनकी बेटी ज्ञानवती मैदान में उतरीं लेकिन हार गईं। फीरोजाबाद में 2009 के उपचुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव मैदान में आईं, लेकिन हार का सामना करना पड़ा।

ताजनगरी में हमेशा पीछे रहीं महिलाएं

वर्ष पुरुष मत महिला मत (फीसद)
1971 52.20 47.80
1977 55.02 44.98
1980 52.59 47.41
1984 53.02 46.98
1989 58.00 42.00
1991 53.00 47.00
1996 59.22 40.78
1998 59.72 40.28
1999 55.13 44.87
2004 51.95 47.05
2009 55.61 44.39
2014 54.72 45.27


एटा
वर्ष पुरुष मत महिला मत
1971 54.76 45.24
1977 65.00 35.00
1980 64.46 34.54
1984 65.16 34.84
1989 65.02 34.98
1991 65.12 34.88
1996 60.01 39.99
1998 60.00 40.00
1999 67.41 32.59
2004 61.56 39.44
2009 55.43 44.57
2014 54.33 45.67


फीरोजाबाद
वर्ष पुरुष मत महिला मत
1971 53.97 46.03
1977 61.29 38.70
1980 52.20 47.79
1984 54.03 45.07
1989 60.98 39.02
1991 58.01 41.99
1996 56.16 43.86
1998 65.97 34.03
1999 62.43 37.57
2004 51.19 48.92
2009 55.02 44.98
2014 55.14 44.86


मथुरा

वर्ष पुरुष मत महिला मत
1971 53.61 46.39
1977 58.16 40.83
1980 63.94 36.06
1984 60.43 39.57
1989 63.97 36.03
1991 60.01 39.99
1996 63.97 36.03
1998 64.31 35.69
1999 64.46 35.56
2004 54.52 45.48
2009 55.75 44.25
2014 55.04 44.86

मैनपुरी

वर्ष पुरुष मत महिला मत
1971 55.03 44.97
1977 52.49 44.97
1980 64.99 33.01
1984 58.00 42.00
1989 53.00 47.00
1991 52.99 47.01
1996 64.90 35.10
1998 55.02 44.98
1999 68.58 31.42
2004 69.72 31.28
2009 55.59 44.41
2014 54.48 45.52

फतेहपुर सीकरी
वर्ष पुरुष मत महिला मत
2009 55.62 44.38
2014 55.05 44.95


क्या कहती हैं महिलाएं
चुनावों में समय के साथ महिलाओं की सहभागिता बढ़ रही है। लेकिन संसद में पुरुषों के मुकाबले उनकी उपस्थिति अभी भी कम है। महिलाओं की भागीदारी राजनीति में बढ़ाने के लिए महिलाओं को आगे आना होगा। महिलाओं में मतदान को लेकर उत्साह होना जरूरी है।
भावना वरदान शर्मा, साहित्यविद्।

आज महिलाएं चांद पर पहुंच रही हैं, लेकिन सियासत में अभी भी पीछे हैं। जब तक महिलाएं राजनीति में आगे नहीं आएंगी, संसद में उनकी भागीदारी कम रहेगी, तो वह अपने हक के लिए आवाज कैसे बुलंद कर पाएंगी। इसलिए जरूरी है कि राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाएं आगे आएं।
डॉ. मधु भारद्वाज, साहित्यकार।

महिलाओं को राजनीति में भी आगे आना जरूरी है। जो संसद नीति निर्धारक है, जब तक वहां महिलाओं की पर्याप्त भागीदारी नहीं होगी, तो उनकी आवाज कैसे उठेगी। इसके लिए ये भी जरूरी है कि महिलाएं मतदान में भी अपनी भागीदारी बढ़ाएं।
सरोज गौरिहार, स्वतंत्रता संग्र्राम सेनानी।


चुनाव ऐसा मौका है जब महिलाओं को अपनी सशक्त भागीदारी कर न केवल अपनी ताकत को दिखाना है। मतदान के दिन उन्हें अपने घरेलू काम जल्दी से निपटा कर अपने परिवार को ही नहीं बल्कि आसपास रहने वाले लोगों को भी मतदान के लिये प्रेरित करना चाहिए।
- कल्पना गर्ग, मथुरा


मैने पहली बार 20 वर्ष की उम्र में मतदान किया था। उसके बाद हर चुनाव में वोट डाला है। हर महिला अगर मतदान के दिन को उत्सव की तरह मनाने की ठान ले तो मतदान का प्रतिशत बढऩे से कोई नहीं रोक सकता।
-डॉ.शशिबाला यादव
प्राचार्या
शारदा जौहरी कन्या महाविद्यालय, कासगंज


23 अप्रैल को मतदान होना है। ऐसे में सबसे पहला काम हमें अपने बूथों पर पहुंचकर मतदान का ही करना होगा। यदि इस बार हम अपने अधिकार से वंचित रह जाएंगी तो इस एक गलती का खामियाजा हमें पूरे पांच वर्षों तक भुगतना होगा। मतदान न करके हम अपना ही नुकसान करते हैं।
अनिल कुमारी यादव, गृहिणी
उत्तरी छपट्टी, मैनपुरी। 


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