'ट्रॉमा मैनेजमेंट' से नहीं टूटेगी घायलों की सांस
आगरा: शनिवार से पुष्पांजलि हॉस्पिटल में शुरू हुई दो दिवसीय सर्जन्स की कार्यशाला में ट्रॉमा मैनेजमेंट पर चर्चा की गई।
जागरण संवाददाता, आगरा: सड़क दुर्घटना के बाद इलाज मिलने पर जान बचाई जा सकती है। मगर, ऐसा नहीं हो रहा है। इससे भारत में हर साल सड़क दुर्घटना में डेढ़ लाख लोगों की जान जा रही है। इसमें 70 फीसद युवा हैं। शनिवार से पुष्पांजलि हॉस्पिटल में शुरू हुई दो दिवसीय सर्जन्स की कार्यशाला में ट्रॉमा मैनेजमेंट पर चर्चा की गई। 16 ऑपरेशन किए गए, इनका लाइव टेलीकास्ट किया गया।
इंटरनेशनल कॉलेज ऑफ सर्जन्स (इंडियन सेक्शन), सोसायटी ऑफ एंडोस्कोपिक एंड लैप्रोस्कोपिक सर्जन्स ऑफ आगरा (सेल्सा) व एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ आगरा की कार्यशाला में सड़क दुर्घटना में हो रही मौतों पर चर्चा की गई। ट्रॉमा सेंटर, एम्स दिल्ली के प्रो. संदीप कुमार व प्रो. सुषमा सागर ने बताया कि हर साल सड़क दुर्घटना में डेढ़ लाख और रेलवे ट्रैक पर 25-30 हजार लोगों की मौत हो रही है। इसमें 20-45 साल के 70 फीसद और छह फीसद मामले किशोर के हैं। उन्होंने बताया कि सड़क दुर्घटना में मौके पर एक मौत होती है, 60 से 70 लोग घायल होते हैं। इसमें से 20 से 30 फीसद को गंभीर चोट आती है, इनकी इलाज के दौरान मौत हो जाती है। कुछ केस में जान बच जाती है लेकिन दिव्यांग हो जाते हैं। ऐसे केस में जान बचाने के लिए तीन स्तर पर काम होना चाहिए। सड़क दुर्घटना में सिर में चोट न आए, इसके लिए हेलमेट, सीट बेल्ट लगाएं, एल्कोहल का सेवन कर वाहन न चलाएं। वाहन की स्पीड कम रखें। वहीं, सड़क दुर्घटना के बाद प्री हॉस्पिटल केयर मिलनी चाहिए, अभी 20 राज्यों में एंबुलेंस के माध्यम से यह सुविधा दी जा रही है। पहले एक घंटे में घायल के हॉस्पिटल में पहुंचने के बाद इन हॉस्पिटल केयर से ही जान बच सकती है। इसके लिए डॉक्टर के साथ ही पैरामेडिकल स्टाफ ट्रेंड होना चाहिए। एबीसीडी एप्रोच से सांस की नलिका, सांस लेना, रक्त संचार और कोई अंग तो कट नहीं गया है। इसे देखते हुए इलाज करना चाहिए। इससे मौत कम हो सकती हैं। कार्यशाला में दिल्ली के हॉस्पिटल में चल रही बेरिएट्रिक सर्जरी, जीभ के कैंसर सहित 16 ऑपरेशन का लाइव टेलीकास्ट किया गया। आयोजन समिति के सचिव डॉ. अमित श्रीवास्तव व डॉ. समीर कुमार को सम्मानित किया गया। कार्यशाला का शुभारंभ एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. यूएस धालीवाल, चेयरपर्सन डॉ. एसडी मौर्या, एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्रा, डॉ. सेंथुल कुमार ने किया। इस दौरान डॉ. ज्ञान प्रकाश, डॉ. एचएल राजपूत, डॉ. सुनील शर्मा, डॉ. अपूर्व चतुर्वेदी, डॉ. श्वेताक प्रकाश, डॉ. सुरेंद्र पाठक, डॉ. अनुभव गोयल आदि मौजूद रहे।
दूरबीन विधि से 80 फीसद ऑपरेशन : एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्रा ने बताया कि पित्त की थैली की पथरी के 80 फीसद ऑपरेशन दूरबीन विधि से हो रहे हैं। मगर, हर्निया के केस में 5 फीसद ऑपरेशन ही दूरबीन विधि से किए जा रहे हैं। इसकी संख्या बढ़नी चाहिए। 70 देश मिलकर अधिकांश ऑपरेशन को दूरबीन विधि से करने की दिशा में काम कर रहे हैं।