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होली के बाद बदल जाएगा बांकेबिहारी मंदिर का समय, जानें क्‍या रहेगी दर्शनों की व्‍यवस्‍था

सुबह एक घंटे पहले खुलेंगे दर्शन और शाम को एक घंटे देर से होंगे पट बंद। दीपावली तक चलेगी मंदिर की यह समय सारिणी।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 06:36 PM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 09:43 PM (IST)
होली के बाद बदल जाएगा बांकेबिहारी मंदिर का समय, जानें क्‍या रहेगी दर्शनों की व्‍यवस्‍था
होली के बाद बदल जाएगा बांकेबिहारी मंदिर का समय, जानें क्‍या रहेगी दर्शनों की व्‍यवस्‍था

आगरा, जेएनएन। ठा. बांकेबिहारी मंदिर में होली के बाद दर्शन समय में परिवर्तन हो जाएगा। शरद ऋतु के दौरान खुल रहे दर्शन समय में शुक्रवार से परिवर्तन हो जाएगा। शुक्रवार को मंदिर के दर्शन सुबह एक घंटे पहले खुलेंगे, जबकि रात को एक घंटे बाद मंदिर के पट बंद होंगे।

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वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर की तय व्यवस्था के अनुसार होली के बाद पडऩे वाली चैत्र कृष्ण पक्ष की द्वितीया शुक्रवार 22 मार्च से दर्शन के लिए पट सुबह 7.45 बजे खुलेंगे और दोपहर को 12 बजे बंद होंगे। इसी तरह शाम को मंदिर के पट 5.30 बजे खुलेंगे और रात को 9.30 बजे शयनभोग आरती के बाद पट बंद कर दिए जाएंगे। मंदिर की ये समय सारिणी दीपावली तक चलेगी।

बांके बिहारी के प्रकट होने की कथा 

मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की एक प्रतिमा है। इस प्रतिमा के विषय में मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं, इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है। संगीत सम्राट तानसेन के गुरू स्वामी हरिदास जी भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे। उन्होंने अपने संगीत को भगवान को समर्पित कर दिया था। वृंदावन में स्थित श्री कृष्ण की रासस्थली निधिवन में बैठकर भगवान को अपने संगीत से आकर्षित किया करते थे। भगवान की भक्ति में डूबकर हरिदास जी जब भी गाने बैठते तो प्रभु में ही लीन हो जाते। इनकी भक्ति और गायन से रिझकर भगवान श्री कृष्ण इनके सामने आ जाते। हरिदास जी मंत्रमुग्ध होकर श्री कृष्ण को दुलार करने लगते ।

स्वामी जी के अनुयायियों ने एक बार उनसे उनकी साधना को देखने और आनंद लेने के लिए निवेदन किया और कहा कि वे निधिवन में दाखिल होकर उन्हें तप करते देखना चाहते हैं। अपने कहे अनुसार वे सभी निधिवन के उस स्थान पर पहुंचे भी लेकिन उन्होंने जो देखा वह हैरान करने वाला था। हरिदास जी श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गा रहे थे और अचानक उनके सुरों में बदलाव आने लगा और वह गाने लगे –

'भाई री सहज जोरी प्रकट भई, जुरंग की गौर स्याम घन दामिनी जैसे। प्रथम है हुती अब हूं आगे हूं रहि है न टरि है तैसे।। अंग अंग की उजकाई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसे। श्री हरिदास के स्वामी श्यामा पुंज बिहारी सम वैसे वैसे।।'

वहां स्वामी जी नहीं वरन् एक तेज रोशनी थी, इतनी तेज मानो सूरज हो और अपनी ऊर्जा से सारे जग में रोशनी कर रहा हो। इस प्रसंग के बाद ही स्वामी जी के अनुयायियों को उनकी भक्ति और शक्ति का एहसास हो गया। स्‍वामी जी के निवेदन से ही श्रीकृष्ण और राधा उनके समक्ष प्रकट हुए थे और उन्हें जाते- जाते अपनी एक मूरत सौंप गए। इस दृश्य को स्वामी जी के सभी भक्तों ने अपनी आंखों से देखा था। कहते हैं श्रीकृष्ण की मौजूदगी का असर ऐसा था कि कोई भी भक्त अपनी आंखें भी झपका नहीं पा रहा था। मानो सभी पत्थर की मूरत बन गए हों।

इस तेज से प्रज्‍जवलित होकर स्वामी जी ने राधे- कृष्णा से आग्रह किया कि कृपा वे अपने इस रूप को एक कर दें। यह संसार उन दोनों के इस तेज को सहन नहीं कर पाएगा। साथ ही वे जाने से पहले अपना एक अंश उनके पास छोड़ जाएं। स्वामी जी कि इसी इच्छा को पूरा करते हुए राधे- कृष्णा ने अपनी एक काली मूर्ति वहां छोड़ दी, यही मूरत आज बांके बिहारी मंदिर में स्थापित है। कहते हैं कि जो कोई भी भक्त मंदिर परिसर पर रखी कान्हा जी की इस मूरत की आंखों की ओर अधिक समय तक देखता है वह अपना आपा खोने लगता है। आज भी इस मूरत की आंखों में उतना ही तेज है जो कान्हा के होने का एहसास दिलाता है।

थोड़ी थोड़ी देर में ढक दी जाती है मूर्ति

एक अन्‍य मान्‍यता के अनुसार बांके बिहारी जी की मूर्ति को हर थोड़ी देर में पर्दे से ढक दिया जाता है ताकि बिहारी जी अपना स्थान छोड़ कर कहीं चले ना जाएं । कहते हैं कि अगर कोई श्री बांके बिहारी के मुखाविंद को लगातार देखता रहे तो प्रभु उसके प्रेम से मंत्र मुग्ध होकर उनके साथ चल देते हैं इसलिए हर कुछ देर में पर्दा से उनको ढक दिया जाता है। भगवान भक्तों की भक्ति से अभिभूत होकर या उनकी व्यथा से द्रवित हो भक्तों के साथ ही चल देते हैं। बांके बिहारी जी भक्तों की भक्ति से इतना प्रभावित हो जाते हैं कि मंदिर में अपने आसन से उठकर भक्तों के साथ हो लेते हैं, इसीलिए मंदिर में उन्हें पर्दे में रखकर उनकी क्षणिक झलक ही भक्तों को दिखाई जाती है। पुजारियों का एक समूह दर्शन के वक्त लगातार मूर्ति के सामने पड़े पर्दे को खींचता- गिराता रहता है। 

नहीं बजते सुबह शाम घंटे

शायद अपनी तरह का पहला मंदिर है, जहां सिर्फ इस भावना से कि कहीं बांके बिहारी की नींद मे खलल न पड़ जाए इसलिए सुबह घंटे नही बजाए जाते बल्कि हौले-हौले एक बालक की तरह उन्हें दुलार कर उठाया जाता है, इसी तरह सायं आरती के वक्त भी घंटे नहीं बजाए जाते ताकि उनकी शांति में कोई खलल न पड़े। 


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