मां मौन है या मूक, किसकी है यह चूक! पढ़ें दिल को छू लेने वाली खबर
आगरा के रामलाल वृद्धाश्रम में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आश्रय लेने पहुंची तीन महिलाएं। बीमारी की अवस्था में बेटों ने निकाला घर से।
आगरा, अजय शुक्ला। शुक्रवार को जब शहर मुस्कराकर शक्तिस्वरूपा नारियों के सम्मान में अभिनंदन पत्र पढ़ रहा था तब साठ बरस की गौरी, लगभग इतने ही बरस की प्रेमश्री मिश्र और अपनों से मिली पीड़ावश समय से पहले बूढ़ी हो चलीं राजकुमारी को रामलाल वृद्धाश्रम में भर्ती कराने के लिए कागज-पत्तर भरे जा रहे थे। वृद्धाश्रम में सम्मान इन्हें भी मिला, माला पहनाकर नए परिवार में दाखिला मिला लेकिन कुछ सवाल सम्मान को टीस में बदल रहे थे। सवालों का निशाना थे बेरहम बेटे और समाज का संवेदनहीन धड़ा।
बेटे और पड़ोसियों पर बोझ नहीं बनीं गौरी
पति पहले ही नहीं रहे। चार साल पहले फालिज मार गया, बायां हिस्सा काम का नहीं रहा। ढंग से बोल भी नहीं पातीं। एक बेटा है, यहीं आगरा में चाय-पकौड़ी का ठेला लगाकर दिहाड़ी कमाता है। पति भी यही करते थे। सिकंदरा में अनाथों सा जीवन व्यतीत हो रहा था। पास-पड़ोस के लोग कुछ समय तो संवेदना उड़ेलते रहे, आपस में कुछ रकम जमाकर इलाज भी कराया लेकिन अब ऊब गए। बेटा अपना परिवार बनाने के सपने बुन रहा है, इसलिए मां का इलाज नहीं करा रहा या करा नहीं सकता।
स्वाभिमान संजोते कट गई प्रेमश्री के जिंदगी की सांझ
पति पहले ही साथ छोड़ परलोक सिधार गए। 16 बरस का बेटा सहारा था, काल ने उसे भी छीन लिया। इतनी पीड़ा मिलने के बावजूद प्रेमश्री ने पड़ोसियों और रिश्तेदारों पर बोझ बन उनके साथ पीड़ा साझा करने के बजाय साहस की गांठों से तकलीफों की पोटली बांधी और नगला जसुआ से नेहरू नगर आ गईं। एक डॉक्टर के परिवार की सेवा टहल कर जिंदगी की सांझ गुजार दी। समय जब स्याह पहर में बदला और घुटनों में ताकत नहीं रही तो डॉक्टर परिवार ने उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचा दिया।
बड़े बेहया निकले इस राजकुमारी के ‘राजकुमार’
पिता ने बड़े अरमानों से यह नाम रखा होगा पर राजकुमारी के ‘राजकुमार’ बेहया निकले। धौलपुर के राजाखेड़ा निवासी राजकुमारी मूक बधिर हैं। बड़े बेटे का ब्याह हो चुका है और छोटा ब्याह के सपने बुन रहा। बड़े बेटे और बहू की प्रताड़ना पहले ही कम नहीं थी, उस पर छोटे बेटे ने हद पार कर दी। गला और बाल पकड़कर खींचा, घर से बेदखल कर दिया। राजकुमारी यहां भाई-भाभी के पास सहारे की आस में आयीं तो उन्होंने वृद्धाश्रम पहुंचा दिया।
सवाल तो बहुतेरे हैं
अपनों से मिली दुत्कार आंसू सुखाने और खून जमाने वाली ही होती है, लेकिन फालिज की मारी गौरी हों या बेटों की सताई राजकुमारी अब शब्दों में पीड़ा नहीं ढाल पातीं। प्रेमश्री के मन में उस डॉक्टर परिवार के लिए भी कोई शिकायत नहीं। .. और सबसे बड़ा सवाल कि इन महिलाओं की गलियों से होकर कोई सरकारी योजना नहीं गुजरी और न कोई सरकारी पहचान, आयुष्मान भारत भी नहीं जो इनकी जिजीविषा को ईंधन दे देती!