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बेतादाद श्रद्धा के सैलाब ने गोवर्धन महाराज को समर्पित किया अन्‍नकूट Agra News

गोवर्धन में झलकी द्वापर युगीन परंपरा। दीपोत्‍सव के चौथ उत्‍सव का गोवर्धन पूजन संग समापन।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 28 Oct 2019 09:36 PM (IST)Updated: Mon, 28 Oct 2019 09:36 PM (IST)
बेतादाद श्रद्धा के सैलाब ने गोवर्धन महाराज को समर्पित किया अन्‍नकूट Agra News
बेतादाद श्रद्धा के सैलाब ने गोवर्धन महाराज को समर्पित किया अन्‍नकूट Agra News

आगरा, जेएनएन। अद्वितीय सौंदर्य, अछ्वुत दिव्यता, अकल्पनीय श्रद्धा का प्रवाह आज पर्वतराज गोवर्धन के आंगन बहता नजर आया। भारतीय परिधान में सजी विदेशी संस्कृति भी प्रभु के चरणों में नतमस्तक हो गई। सोमवार की सुबह गिरिराजजी शिला पर दूध का अभिषेक शुरू हुआ तो ये धार देर शाम तक नहीं थमी। सिर पर टोकरी रखकर सेवायतों ने अपने परिजनों के साथ मिलकर अन्नकूट प्रसाद प्रभु को समर्पित किया। गोवर्धन पूजा महोत्सव ने अपनी ऐसी दिव्यता दिखाई कि लाखों लोग धन्य हो गए।

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बेतादाद श्रद्धा के अनवरत बहते सैलाब से तलहटी कलियुग के देव गोवर्धन महाराज पर गौरवांवित नजर आई। समूचा ब्रज मंडल अपने देव का यशोगान करता रहा। परिक्रमा मार्ग में भजनों की धुनों पर नृत्य करते भक्त बेसुध होकर झूमते हुए परिक्रमा लगाने लगे। इतिहास में अंकित आन्यौर का अन्नकूट स्थल आज एक बार फिर द्वापर युगीन परंपरा का गवाह बना। ब्रज निष्ठ संत कन्हैया बाबा और गिरिराज भक्त ईश्वर भाई पटेल के सानिध्य में नंदगांव बरसाना गोवर्धन आन्यौर जतीपुरा राधाकुंड परासौली के ब्रजवासी अपने अपने घरों से विभिन्न कच्चे पक्के पकवान लेकर पहुंचे और गिरिराजजी को अन्नकूट प्रसाद समर्पित किया। प्रसिद्ध दानघाटी मंदिर पर सेवायत मथुरा प्रसाद और पवन कौशिक, मुकुट मुखारविंद मंदिर पर रिसीवर रमाकांत गोस्वामी और सेवायत मुरारी मास्टर जैकी शर्मा ने प्रभु को अन्नकूट प्रसाद समर्पित किया। हरदेव मंदिर पर गोस्वामी समाज ने अन्नकूट महोत्सव को भव्यता प्रदान की। जतीपुरा मुखारङ्क्षवद मंदिर पर एसडीएम राहुल यादव और तहसीलदार पवन पाठक ने महोत्सव को नया आयाम देकर पुरातन परंपरा को जीवंत किया। रविवार को मानसीगंगा और राधाकुंड पर भव्य दीपदान हुआ, दोनों ही धार्मिक स्थल दीपों से झिलमिल नजर आए।

गिरिराज मुकुट मुखारविंद मंदिर मानसी गंगा दसविसा की ओर से अन्नकूट भोग शोभायात्रा निकाली गई। गोवर्धन पूजा के उपलक्ष्य में गिरिराज जी की तलहटी में मंदिर प्रशासन की ओर से श्रीकृष्ण लीलाओं का मंचन किया जा रहा है। लीला मंचन में गोवर्धन पूजा शोभायात्रा की झांकी के भव्य दर्शन हुए। गिरिराज मुकुट मुखारङ्क्षवद मंदिर मानसी गंगा दसविसा की ओर से आयोजित गोवर्धन पूजा महोत्सव में निकाली गई शोभायात्रा में भक्ति की धारा प्रवाहित हुई। कृष्ण व बलराम के स्वरूपों के साथ मानसी गंगा की परिक्रमा करते हुए अन्नकूट छप्पन भोग अर्पित किए गए। दसविसा ब्राह्मणान के महिला व पुरुष सज धजकर गोवर्धन पूजा महोत्सव में शामिल हुए। रिसीवर रमाकांत गोस्वामी ने प्रसाद वितरण किया। बंशीशर्मा, मनुऋषि, गजेंद्र, संतोष उपाध्याय, मुरारी मास्टर, जैकी शर्मा, मनोज, कोकन का सहयोग रहा।

यूं मनाया जाता है अन्नकूट महोत्सव

अन्नकूट महोत्सव के दिन सर्वप्रथम गिरिराज प्रभु का दुग्धाभिषेक होता है। इसके उपरांत अन्नकूट का भोग समर्पित किया जाता है। इसमें कई तरह की सब्जियां, मिष्ठान, कड़ी, चावल, बाजरा, रोटी, पूआ, पूरी, पकौड़ी, खीर, माखन मिश्री आदि होते हैं। गोवर्धन गिरिराज जी के साथ अग्नि, वृक्ष, जलदेवता, गोमाता सभी देवों की आराधना की जाती है।

धार्मिक इतिहास के झरोखे से गोवर्धन पूजा

समूचे ब्रज मंडल के घर- घर में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट कृष्ण कालीन समय से चली आ रही धार्मिक परंपरा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार करीब पांच हजार वर्ष पूर्व कान्हा ने देवताओं के राजा इंद्र की पूजा छुड़वाकर गिरिराज महाराज की पूजा कराई। ग्वालों की टोली के संग कान्हा ने दीपावली पर सप्तकोसीय परिक्रमा लगाकर दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की। इंद्र ने मेघ मालाओं को ब्रज भूमि को बहाने का आदेश सुना दिया। मेघों की गर्जना सुन ब्रजवासी घवरा गए। ब्रज वासियों की करुण पुकार सुन सात बरस के कन्हैया ने सात दिन सात रात तक सात कोस गिरिराज को अपने बाएं हाथ की कनिष्ठ उंगली पर धारण कर इंद्र का मान मर्दन किया और ब्रज वासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया। गिरिराज पूजा में इतना दूध चढ़ाया गया कि ब्रज की नालियां दूध से भर गई। पूजन के पश्चात अन्नकूट का प्रसाद लगाया गया। तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा चली आ रही है। दीपावली पर पूर्ण अमावस्या को कुहु की रात भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार दीपावली के दिन भगवान श्री कृष्ण ने नंदगाव से आकर गोवर्धन की सप्तकोसीय परिक्रमा लगाई। इसलिए दीपावली के दिन लाखों श्रद्धालु इस पर्व को मनाने गोवर्धन आते हैं।

ब्रजभूमि के वैभव से अछूते रहे कृष्ण काल के प्रमाणिक स्थल

यूं तो समूचा ब्रज मंडल ही कान्हा की लीला भूमि है लेकिन इतिहास के पन्ने गोवर्धन में हरदेव मंदिर के बारे में दावा करते हैं कि यही वह स्थान है जहां सात साल के सांवरे ने गोवर्धन को सात दिन अपनी अंगुली पर धारण किया, तथा परिक्रमा मार्ग के गांव आन्यौर में अन्नकूट समर्पित किया गया। मगर श्रद्धा के दम पर चलती परंपरा इतिहास के दावों की मोहताज नहीं होती। नतीजा आज हरदेव मंदिर और आन्यौर में सन्नाटा और दानघाटी, मुकुट मुखारविंद, जतीपुरा मुखारविंद पर कान्हा का ऐश्वर्य बिखरा है।

यादव कुल पुरोहित गर्गाचार्य ने गर्ग संहिता में उल्लेख किया है कि हरदेव मंदिर वही जगह है जहां कृष्ण ने गोवर्धन धारण किया था, आन्यौर में अन्नकूट महोत्सव मनाया गया था। गर्ग कृष्ण के समकालीन हैं इसलिए इसे जानकार सबसे महत्वपूर्ण तथ्य मानते हैं। मगर अधिकांश श्रद्धालुओं को इस तथ्य के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। नतीजा यह है कि अधिकांश समय दानघाटी, मुकुट मुखारविंद और जतीपुरा मुखारविंद पर ही गोवर्धन का वैभव सिमटा रहता है।

अन्नकूट में लाखों की भीड़ जुड़ती हैं। झिलमिल इमारतें, रंगीन फव्वारे, पुष्प महल में स्वर्ण श्रंगार धारण किए प्रभु ब्रजभूमि के ऐश्वर्य की गवाही देते हैं। वैभव से परिपूर्ण गोवर्धन में प्राचीन विरासत स्वरूप हरदेव मंदिर और आन्यौर के अन्नकूट स्थल पर सन्नाटा छाया हुआ है। इतिहास के पन्नों में यह भी दर्ज है कि हरदेव मंदिर का निर्माण मध्यकाल में मानङ्क्षसह के पिता राजा भगवान सिंह ने कराया था। मंदिर निर्माण के लिए मुगल बादशाह अकबर ने राजा भगवान सिंह को शाही खदान के लाल पत्थरों के उपयोग की इजाजत दी। इतिहास में यह भी लिखा है कि राजा भगवान सिंह ने अकबर को एक युद्ध में बचाया था। इसके बाद सम्राट अकबर ने भगवान सिंह को मुलतान का गवर्नर नियुक्त कर अपना विश्वासपात्र बना लिया। सेवायत लछुआ गुरु ने बताया कि मंदिर के संचालन को राजाज्ञा के तहत पर्याप्त जमीन मिली थीं। इस मंदिर के संरक्षण के लिए 1871 में तत्कालीन कलेक्टर एफएस ग्राउज ने इसे राष्ट्रीय स्मारक की श्रेणी में बताया था।

अन्नकूट दर्शन कर निहाल हुए भक्त

दीपोत्सव की श्रंखला में दूसरे दिन सोमवार को शहर के मंदिर, मठ और आश्रमों के साथ घर-घर में अन्नकूट उत्सव मनाया गया। सुबह ठाकुरजी को अन्नकूट में छप्पन प्रकार के व्यंजन परोसे तो शाम को गोबर के गिरिराजजी का पूजन कर ब्रजवासियों ने परिक्रमा की। प्राचीन सप्तदेवालयों में अन्नकूट उत्सव बड़े ही उल्लास पूर्वक मनाया गया। देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने भगवान को भोग लगाया और नाम संकीर्तन पर जमकर नृत्य किया।

सप्तदेवालयों में प्रमुख राधादामोदर मंदिर में अन्नकूट उत्सव पर ठाकुरजी के समक्ष अन्न का बड़ा पर्वत बनाया। देशी विदेशी श्रद्धालुओं ने श्रील प्रभुपाद के नाम संकीर्तन की धुन पर नृत्य भी किया। इस्कॉन के अलावा राधादामोदर, राधारमण, राधाश्यामसुंदर, राधागोङ्क्षवद देव, गोपीनाथ, मदनमोहन व शाहजी मंदिर, सुदामा कुटी में ठाकुरजी को अन्नकूट भोग परोसा गया।

शाम को बंटा प्रसाद

दोपहर में अन्नकूट के दर्शन के बार शाम को भक्तों को प्रसाद बांटा गया। मंदिरों में आयोजित हुए अन्नकूट उत्सव के बाद प्रसाद लेने को भक्तों में होड़ लग गई। प्रसाद पाने को भक्तों की भीड़ टूट पड़ी।

इस्कॉन मंदिर में आज होगा अन्नकूट

इस्कॉन मंदिर में इस बार अन्नकूट उत्सव मंगलवार को मनाया जाएगा। इस्कॉन प्रवक्ता सौरभ त्रिविक्रम दास ने बताया कि वैष्णव पंचांग में दीपावली सोमवार को होने के कारण मंगलवार को अन्नकूट उत्सव उल्लास पूर्वक मनाया जाएगा। इसके लिए श्रद्धालुओं ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। 


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