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Antique Statue: गणपति की कांसे की यह प्रतिमा है 482 वर्ष पुरानी, नोएडा के परिवार ने कराया पंजीकरण

एएसआइ आगरा सर्किल में गौतम बुद्ध नगर निवासी महिला ने कराया है पंजीकरण। आगरा सर्किल में केवल एक ही हुआ है पंजीकरण अनिवार्य है पंजीकरण कराना। एएसआइ के सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद आरके सिंह द्वारा उन्हें प्रतिमा का पंजीकरण कराने पर नवंबर 2019 में सर्टिफिकेट जारी किया गया था।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 02 Aug 2021 10:14 AM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 10:14 AM (IST)
Antique Statue: गणपति की कांसे की यह प्रतिमा है 482 वर्ष पुरानी, नोएडा के परिवार ने कराया पंजीकरण
नोएडा में 482 साल पुरानी गणेश प्रतिमा का चित्र।

आगरा, जागरण संवाददाता। देश में लोगों के पास पुरातन महत्व की नायाब (एंटीक) वस्तुओं के रूप में अपार संपदा है। किसी ने उसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) में पंजीकृत करा रखा है तो बहुत से लोग पंजीकरण नहीं कराते हैं। आगरा सर्किल में एकमात्र पंजीकरण भगवान गणेश की प्रतिमा का हुआ है। गौतम बुद्ध नगर निवासी महिला द्वारा पंजीकृत कराई गई यह प्रतिमा 482 वर्ष पुरानी है। एएसआइ ने भी इसे 100 वर्ष से अधिक पुरानी मानते हुए पंजीकृत किया है।

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एंटीक्विटीज एंड आर्ट ट्रेजर एक्ट, 1972 के अंतर्गत पुरा महत्व की वस्तुओं का पंजीकरण कराना अनिवार्य है। बिना पंजीकरण के पुरा महत्व की वस्तुओं को अपने पास रखना कानूनन अपराध है। ऐसा नहीं करने पर छह माह की सजा और जुर्माना हो सकता है। देश में लाेगों के पास उपलब्ध पुरा महत्व की नायाब वस्तुओं के पंजीकरण को एएसआइ ने वर्ष 2019 में 13 से 28 सितंबर तक अभियान चलाया था। इसमें पंजीकरण कराने वाले लोगों का वस्तु पर मालिकाना हक तो बरकरार रहता ही, उन्हें एएसआइ द्वारा सर्टिफिकेट भी दिया जाता है। पंजीकरण की प्रक्रिया निश्शुल्क होने के बावजूद आगरा सर्किल में एकमात्र पंजीकरण जिला गौतम बुद्ध नगर के सेक्टर-15 नोएडा निवासी जयश्री एएस पत्नी दिनेश शेखर ने कराया। उन्होंने कांसे की बनी गणेश जी की 18.5 सेमी ऊंची प्रतिमा पंजीकृत कराई। यह प्रतिमा खोखली है। एएसआइ के सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद आरके सिंह द्वारा उन्हें प्रतिमा का पंजीकरण कराने पर नवंबर, 2019 में सर्टिफिकेट जारी किया गया था।

वर्ष 1539 में महिला के पूर्वजों को मिली थी प्रतिमा

जयश्री एएस ने एएसआइ को जो शपथ पत्र दिया है, उसके अनुसार उन्हें यह प्रतिमा उनके पूर्वजों से मिली है। उनके एक पूर्वज आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। उन्हें यह प्रतिमा शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले मरीज ने वर्ष 1539 के आसपास दी थी। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होते हुए यह प्रतिमा उनके परदादा पी. कोचू पिल्लई, उनके दादा कृष्णन वाडियार और पिता श्रीधरन एके तक पहुंची। उन्हें यह प्रतिमा उनके पिता से विरासत में मिली है।

इनका करा सकते हैं पंजीकरण

कलाकृति, धातु या पत्थर की मूर्ति, पुरानी हस्तलिखित पांडुलिपि।

इनका नहीं होता पंजीकरण

पुराने सिक्के, हथियार, गहने।

विभाग में संपर्क कर करा सकते हैं पंजीकरण

अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. वसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि पुरा महत्व की वस्तुओं का पंजीकरण कराने के प्रति लोगों में जागरुकता का अभाव है। वो यह सोचते हैं कि पंजीकरण के बाद उनकी वस्तुओं को सरकार अपने अधिकार में ले लेगी, जबकि ऐसा नहीं है। वस्तु पर मालिकाना हक व्यक्ति का ही रहता है। पंजीकरण कराने के बाद उसे देश में बेचा जा सकता है, लेकिन विदेश में नहीं बेच सकते हैं। पुरातन महत्व की वस्तुओं की तस्करी रोकने को यह कानून बनाया गया था। पुरा महत्व की वस्तुओं का पंजीकरण विभाग में संपर्क कर निश्शुल्क कराया जा सकता है।

आगरा सर्किल में था गौतम बुद्ध नगर

जयश्री एएस ने वर्ष 2019 में जब प्रतिमा का पंजीकरण कराया था, तब गौतम बुद्ध नगर एएसआइ के आगरा सर्किल में हुआ करता था। सितंबर, 2020 में मेरठ नया सर्किल बन गया और गौतम बुद्ध नगर को उसमें शामिल कर दिया गया। 


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