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राधा के प्रेम का ही नहीं मीरा की दीवानगी का भी रहा है यह नगर गवाह

वृंदावन में गिरधर ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए थे। भक्ति का बेजोड़ केंद्र है मीराबाई मंदिर।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 11 Jan 2019 03:10 PM (IST)Updated: Fri, 11 Jan 2019 03:10 PM (IST)
राधा के प्रेम का ही नहीं मीरा की दीवानगी का भी रहा है यह नगर गवाह
राधा के प्रेम का ही नहीं मीरा की दीवानगी का भी रहा है यह नगर गवाह

आगरा, विपिन पारशर। मीरा बाई कृष्ण की ऐसी दीवानी, जिसने कृष्ण की भक्ति में राजपाट सबकुछ त्याग दिया। वृंदावन राधाजी का धाम है तो मीरा ने भी इसी वृंदावन में 15 वर्ष तक रहकर अपनी साधना से प्रभु श्रीकृष्ण के प्रति अपने अगाध प्रेम जताया है। यहां गिरधर ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए तो मीरा ने भी लिखा है कि आज मैं देख्यौ गिरधारी आती म्हाने लागे वृंदावन नीकौ।

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निधिवन राज मंदिर के समीप गोविंद बाग मुहल्ले में स्थित मीराबाई के प्राचीन मंदिर के सुरम्य वातावरण में पहुंचते ही भक्तों के हृदय में भक्ति फूट पड़ती है। चारों ओर हरियाली से आच्छादित मंदिर के बीच में चलते फव्वारे से सादगी बरसती है। मंदिर प्रांगण में दायीं ओर उनकी भजन कुटिया आज भी श्याम के रंग में रंगी है। भजन करती मीरा के चित्र भक्तों को उनके भजन गुनगुनाने को मजबूर कर देते हैं।

गर्भगृह में कृष्ण और उनकी बायीं दिशा में राधा और दाहिनी ओर मीरा का विग्रह है। नीचे ङ्क्षसहासन पर राधा मनोहर का उत्सव विग्रह और संग में लाठी रखी है। उनके समीप मीरा के शालिग्राम का विग्रह और राणा ने मीरा को मारने के लिए फूलों की टोकरी में जो सर्प भेजा था, वह भी शालिग्राम के रूप में परिवर्तित होकर दर्शन दे रहे हैं।

मंदिर सेवायत प्रद्यु्म्न प्रताप सिंह ने बताया कि आज से करीब पांच सौ साल पहले चित्तौडग़ढ़ की महारानी मीराबाई वृंदावन आईं। हमारे पूर्वज उन्हें यहां लाए। उन्होंने मीरा को संपूर्ण ब्रज का भ्रमण कराने के बाद पूछा कि कहां निवास करेंगी? उन्होंने खुद ही इस स्थल का चयन इसलिए किया कि एक ओर ठा. बांकेबिहारी की प्राकट््यस्थली निधिवन राज मंदिर है, दूसरी ओर राधा दामोदर और तीसरी ओर कल-कल बहती यमुना महारानी। उससे पहले हित हरिवंशजी महाप्रभु का रासमंडल है। इसके पीछे गोविंद देव का मंदिर।

यह स्थल गोङ्क्षवद देव का बगीचा था। इसका नाम गोविंद बाग था। मीरा ने इसी जगह पर अपनी भजन स्थली बनाई। करीब 15 वर्ष वृंदावन में रहने के दौरान सेवायत के पूर्वज बख्श सिंह को शालिग्राम का विग्रह देकर वह द्वारिका चली गईं। बीकानेर के राज दीवान ठाकुर रामनारायण ङ्क्षसह ने संवत 1898 में इस मंदिर का निर्माण राजस्थानी शैली में कराया।

सजीव शालिग्राम

सेवायत बताते हैं कि शालिग्राम को प्रकट देख जब मीरा के नेत्रों से प्रेम के अश्रु गिरे, वो शालिग्राम के ऊपर स्थापित हुए। उनके तत्क्षण ही शालिग्राम में साक्षात कृष्ण का भाव जाग्रत हो गया। उनके दो नेत्र कर्ण और नासिका बन गईं। अधरों पर मुस्कराहट साक्षात विराजमान हो गई, जो आज भी नजर आती है।

जीव गोस्वामी ने यहीं किए थे मीरा के दर्शन

मीरा जब गौड़ीय संत जीव गोस्वामी के दर्शन को गईं तो जवाब आया कि वे स्त्रियों से नहीं मिलते। जब मीरा ने पुन: प्रश्न पूछा कि ब्रज में तो पुरुष एकमात्र श्रीकृष्ण हैं और शेष उनकी सहचरियां हैं। आप कृष्ण के अलावा कौन अन्य पुरुष यहां आ गए। इस प्रश्न से जीव गोस्वामी को भावात्मक अनुभूति मिली। वह मीरा के दर्शन करने को मंदिर में आए।


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