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कोरोना काल में अकेलेपन में साथी बने पालतू जानवर

पिछले चार महीनों में श्वान और बिल्ली की मांग हुई दोगुनी सप्लाई न होने से कीमतों में तीन गुना तक इजाफा आगरा प्रभजोत कौर। कोरोना काल में दूसरे शहरों में नौकरी करने वाले युवा अपने घर लौ

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 06:17 AM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 06:17 AM (IST)
कोरोना काल में अकेलेपन में साथी बने पालतू जानवर
कोरोना काल में अकेलेपन में साथी बने पालतू जानवर

आगरा, प्रभजोत कौर। कोरोना काल में दूसरे शहरों में नौकरी करने वाले युवा अपने घर लौट आए। घंटों वर्क फ्राम होम में इतने उलझ गए कि तनाव बढ़ता गया। दोस्तों से मुलाकात नहीं हुई, बाहर आना जाना नहीं हुआ। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए युवाओं ने श्वान और बिल्ली पालने शुरू किए। इसका नतीजा यह निकला की पिछले चार महीनों में पालतू जानवरों की मांग में दो गुना का इजाफा हो गया है। जिससे इनकी कीमतें भी दो से तीन गुना तक बढ़ गई हैं। हर महीने बिकते थे 200 पालतू जानवर

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आगरा में करीब 200 पालतू जानवरों के विक्रेता हैं। लाकडाउन से पहले हर महीने शहर में लगभग 200 श्वान व बिल्ली बिकते थे। अनलाक में यह संख्या दोगुनी हो गई है। आगरा में कोलकाता से छोटी ब्रीड, पंजाब से बड़ी ब्रीड, जयपुर और दिल्ली से भी श्वानों की विभिन्न ब्रीड आती हैं। श्वान विक्रेता अन्य व्यवसाय करता है, साथ ही श्वान का खाद्य पदार्थ भी बेचते हैं। नहीं हो रही सप्लाई

लाकडाउन में कोलकाता, जयपुर, पंजाब, दिल्ली से पिल्लों की सप्लाई बंद हो गई, मांग बढ़ती गई। इससे कीमतों में काफी वृद्धि हुई। पेट विक्रेता पीयूष बताते हैं कि दो से तीन गुना की वृद्धि श्वानों और बिल्लियों की कीमतों में हुई है। ऐसे बढ़ीं कीमतें

बीगल- 15 से बढ़कर 30 हजार

लेब्राडोर- 10 से बढ़कर 25 हजार

जर्मन शैफर्ड- पांच से बढकर 20 हजार

पामेरियन- दो से बढ़कर 10 हजार

पग-10 से बढ़कर 20 हजार

सिप्टज- 2500 से बढ़कर 10 हजार

डाबरमैन- आठ से बढ़कर 20 हजार

परशियन बिल्ली- आठ से बढ़कर 15 हजार

वर्जन

हमारे पास वैक्सीन के लिए आने वाले पिल्लों की संख्या काफी बढ़ी है। एनिमल बोर्ड वेलफेयर एसोसिएशन का नियम है कि पेट विक्रेता इलाज नहीं कर सकते, इसलिए लोग पिल्ला खरीदने के बाद हमारे पास वैक्सीन के लिए आते हैं।

- डा. संजीव नेहरू, वेटेरिनरी

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स्टडी यह मानती हैं कि तनाव और डिप्रेशन का मुख्य कारण होता है अकेलापन। आज की जीवनशैली में हम देख सकते हैं कि अकेलापन बढ़ता जा रहा है। श्वान की मौजूदगी में आपको अकेलापन महसूस नहीं होता। यही नहीं, जो लोग अपने श्वान को नाम देते हैं और उनसे बात करते हैं, वह 36 प्रतिशत कम अकेलापन महसूस करते हैं। अकेलेपन से होने वाली कई बीमारियां जैसे अल्जाइमर और अन्य मानसिक रोगों का जोखिम भी कम होता है।

- डा. केसी गुरनानी, मनोचिकित्सक मैं बंगलुरु में काम करती हूं, लाकडाउन में घर आ गई। वर्क फ्राम होम चलता रहा। घर से निकल नहीं सकते थे, किसी से मिल नहीं सकते थे। मैं भी बोर हो रही थी और मम्मी- पापा भी चिड़चिड़े हो रहे थे। मम्मी- पापा से बात करके मैं अपने लिए पपी ले आई। अब अकेलापन भी महसूस नहीं होता और हमेशा एनर्जी बनी रहती है।मम्मी-पापा भी पपी के साथ व्यस्त रहते हैं

- श्रेया राणा, खंदारी


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