ताजनगरी से संचालित होते हैं ईसाई धर्म के महाधर्म प्रांत और आगरा डायसिस
एतिहासिक हैं आगरा के दस गिरजाघर आगरा डायसिस 52 तो आर्च डायसिस करता है 50 गिरजाघरों का संचालन
आगरा, जागरण संवाददाता । ईसाई धर्म के लिए ताजनगरी महत्वपूर्ण है। यहीं से महाधर्म प्रांत यानी आर्च डायसिस आफ आगरा का संचालन होता है और डायसिस आफ आगरा भी कई गिरजाघरों की जिम्मेदारी संभालता है।
आर्च डायसिस आफ आगरा : वजीरपुरा स्थित निष्कलंक माता के महागिरजाघर परिसर में आर्च डायसिस आफ आगरा का बिशप हाउस है, जहां से महाधर्म प्रांत का निर्देशन होता है। 1956 से पहले तक आगरा महाधर्म प्रांत की जिम्मेदारी इटली के धर्माधिकारी संभालते थे। उसके बाद पहले भारतीय आर्च बिशप डोमनिक अथैड हुए। वर्तमान में महाधर्म प्रांत से लगभग 50 गिरजाघर और संस्थाएं जुड़ी हुई हैं। पांच आर्च बिशप विदेशी और चार भारतीय रहे हैं। ताजनगरी में इनके प्रमुख गिरजाघर निष्कलंक माता का महागिरजाघर, अकबरी चर्च, सेंट मैरी चर्च और सेंट पैट्रिक चर्च हैं। डा.अल्बर्ट डिसूजा 10वें और वर्तमान आर्च बिशप हैं। डायसिस आफ आगरा
सेंट पाल्स चर्च परिसर में डायसिस आफ आगरा (चर्च आफ नार्थ इंडिया) और बिशप हाउस 1976 से संचालित हैं। इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल के करीब 44 जनपद आते हैं। इनमें करीब 52 चर्च हैं, जिनका संचालन 45 पादरी और 22 ग्राम सेवक करते हैं। 46 स्कूल एवं कालेज हैं। 1886 में पूरे उत्तर भारत में रोमन कैथोलिक समाज का केंद्र आगरा था। जैसे-जैसे चर्चों की संख्या और जनसंख्या में वृद्धि होती गई, धर्म प्रांत का विभाजन होता गया। 1891 में अजमेर, 1910 में शिमला, 1937 में दिल्ली और पंजाब, 1956 में मेरठ को अलग-अलग धर्म प्रांत बना दिया गया। अब जो महाधर्म प्रांत है, उसमें 16 जनपद हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश के 14 शहरों के अलावा राजस्थान के दो जनपद धौलपुर और भरतपुर भी शामिल हैं। इन जनपदों में करीब सौ फादर हैं, जिनमें से 67 चर्चों में सक्रिय हैं। इस डायसिस के पहले बिशप एवी जोनार्थन थे। वर्तमान बिशप राइट रेवरेंड डा. पीपी हाबिल हैं। डायसिस के प्रमुख गिरजाघर
सेंट पाल्स चर्च, सेंट जार्जेज चर्च, सेंट जोंस चर्च सिकंदरा और फव्वारा स्थित सेंट जोंस चर्च। आपदा में दिया था रोजगार
खंदारी स्थित सेंट पाल्स चर्च की नींव 1840 में रखी गई थी, 1855 में यह चर्च बनकर तैयार हुआ। 1852 में आपदा के समय इस गिरजाघर ने लोगों को रोजगार दिया था। इस गिरजाघर के लिए ब्रिटिश अधिकारियों ने भूखंड प्रदान किया था। आगरा में 182 साल पुराना गिरजाघर
जागरण संवाददाता, आगरा : ताजनगरी में एक गिरजाघर ऐसा भी है जो लगभग 182 वर्ष पुराना है और उत्तर भारत का भी पहला गिरजाघर बताया जाता है। आगरा में ऐसे कई एतिहासिक गिरजाघर और भी हैं। इन्हीं पर नजर डालती एक रिपोर्ट- अकबरी चर्च
आगरा का सबसे ऐतिहासिक और पुराना चर्च अकबरी गिरजाघर 182 साल पुराना बताया जाता है। यह भी बताया जाता है कि तब से लेकर अब तक इस चर्च को तीन बार ध्वस्त किया जा चुका है। यह आगरा का ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत का पहला चर्च माना जाता है। यह चर्च मुगल सम्राट द्वारा चलाए गए दीन-ए-एलाही धर्म के दौरान धर्म निरपेक्षता की गवाही देता था। 1580 में आरमीनियाई प्रांत के कैथोलिक फादर एक्वाबीवा तथा मानसरेट नामक पुर्तगाली अकबर से मिलने फतेहपुरी सीकरी आए थे। इनके बाद एक अंग्रेज दल भी आगरा पहुंचा। अकबर ने नगर के बाहरी क्षेत्र के एक बड़े भूभाग को ईसाई धर्म के लिए दान कर दिया। इसी भूभाग के मध्य में जहां वर्तमान में सेंट पीटर्स कालेज है के निकट ही चर्च का निर्माण किया गया। जिसे अकबर चर्च कहा गया। सेंट जोर्जेस चर्च
सदर बाजार स्थित सेंट जोर्जेस चर्च सीएआइ के अंतर्गत आता है। माना जाता है कि सन 1828 में अंग्रेज सैनिकों के लिए इसको बनाया गया था। इसकी स्थापत्य कला अंग्रेजी है। बाहर से सुंदर दिखने वाला चर्च अंदर से भी बेहद खूबसूरत है। पूर्व की ओर बड़ा पूजा स्थल है, जहां पुरोहित प्रार्थना सभा का संचालन करते हैं। निष्कलंक माता का गिरजाघर
इटली के बिशप बोर्गी ने इस रोमन कैथोलिक चर्च का निर्माण सन 1848 में कराया था। बोर्गी ने 1842 में सेंट पैट्रिक स्कूल तथा 1846 में सेंट पीटर्स कालेज का भी निर्माण कराया था। निष्कलंक माता का यह गिरजाघर इतालवी वास्तुकला का नमूना है। ईसा की माता मरियम की बड़ी मूर्ति यहां लगी है। 1910 में इटली से तीन नए घंटे यहां लाए गए थे, शेष दो घंटे अकबर के गिरजाघर के थे। फादर मून लाजरस बताते हैं कि शोक समाचार पर इनको बजाया जाता है। प्राचीनकाल में इनका उपयोग आपत्तिकाल की सूचना के लिए भी होता था। सेंट मेरी चर्च
शहर के ही प्रसिद्ध जोंस मिल के स्वामी सर जान ने 1923 में इसका निर्माण अपनी पत्नी मैरी की याद में कराया था। बाद में इसे माता मरियम को समर्पित कर दिया। मान्यता है कि यह चमत्कारिक चर्च है। इसलिए इसे मदर आफ हैल्थ चर्च भी कहते हैं। मैथोडिस्ट चर्च
1854 में बरेली के विलियम बटलर ने भारत में मैथोडिस्ट की स्थापना की थी। आगरा में इसके दो चर्च हैं, जिनमें से एक जिला मुख्यालय के सामने बना सेंट्रल मैथोडिस्ट चर्च है। इसका प्रथम निर्माण सन 1856 तथा पुनर्निर्माण 1888 में हुआ था। गिरजाघर के निकट हालमैन इंस्टीट्यूट भी है, जिसे 1924 में हालमेन बहनें सारा और स्कारलाट ने गरीब लोगों को शिक्षित करने के उदे्श्य से खोला था और इसको चर्च को उपहार स्वरूप भेंट कर दिया था। इसी मत का दूसरा गिरजाघर, हैवलाक चर्च छावनी क्षेत्र में है। सेंट पाल चर्च
चर्च आफ नार्थ इंडिया के अंतर्गत यह गिरजाघर आता है। यह ईसाईयों के दूसरे मत प्रोटेस्टेंट का है। इसकी नींव 1840 में ब्रिटिश काल में रखी गई थी। आगरा में प्रोटेस्टेंट मत का क्षेत्रफल की दृष्टि से यह सबसे बड़ा चर्च है। अधिकतर इसकी शैली जर्मनी है। इसमें गोथियन स्थापत्य कला है। सेंट जोंस चर्च
शहर के मध्य स्थित सेंट जोंस चर्च सीएनआइ का गिरजाघर है। हास्पिटल रोड पर बना यह चर्च लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना है। इसका निर्माण 1850 में लेफ्टिनेंट कर्नल जोन कालविन ने कराया था। इसे एक चैपल (ईसाई धर्म का छोटा सा आराधना स्थल) के रूप में जाना जाता था। इसे 'कटरे का गिरजा' के नाम से भी जाना जाता है। 1812 से 1855 तक डेनियल कोरी पूजा गृह था। कोरी के साथी प्रब्दुल मसीह थे, जो राजा जोधपुर के यहां उच्चाधिकारी थे। इन्होंने ही इसका निर्माण कराया था। भवन निर्माण को पुरोहित यूनाइडर ने पूर्ण करवाया। सिकंदरा स्थित मरियम टाम्ब के पास भी सेंट जोंस चर्च है, जिसे 1842 में बनाया गया था। ये हैं शहर के प्रमुख गिरजाघर
कैथोलिक चर्च
- अकबरी चर्च वजीरपुरा
-निष्कलंक माता का गिरजाघर, वजीरपुरा
- सेंट मेरी चर्च, प्रतापपुरा, अजमेर रोड
- सेंट पैट्रिक चर्च, आगरा कैंट आगरा डायसिस चर्च
- सेंट जोर्सेज चर्च, सदर बाजार
- सेंट जोंस चर्च, हास्पिटल रोड
- सेंट जोंस चर्च, सिकंदरा
- सेंट पाल चर्च, बाग फरजाना मैथोडिस्ट चर्च
- मैथोडिस्ट चर्च, जिला मुख्यालय
- हैवलाक चर्च, आगरा कैंट