आगरा से रूपरानी तोप को अंग्रेज ले जाना चाहते थे इंग्लैंड, डूब गई थी यमुना में Agra News
ब्रिटिशकाल की है मुजफ्फरनगर में खेत की खोदाई में मिली तोप।
आगरा, जागरण संवाददाता। मुजफ्फरनगर में खेत की खोदाई में पिछले दिनों मिली तोप ब्रिटिशकालीन है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रसायन शाखा तोप पर बने चिह्न और उसकी डिजाइन के आधार पर उसके ब्रिटिश काल (करीब 200 से 250 वर्ष पुरानी) होने का अनुमान जता रही है।
मुजफ्फरनगर के पुरकाजी क्षेत्र के गांव हरिनगर के जंगल में 20 जनवरी को खोदाई में एक तोप निकली थी। जिसका वजन करीब 40 कुंतल था। पुरकाजी क्षेत्र में पहले भी तोप निकलती रही है। डीएम आवास पर दो तोप रखी हुई हैं, जबकि एक तोप एसएसपी आवास पर रखी हुई है। ये तोप भी पुरकाजी क्षेत्र के जंगल से ही निकली थी।
बारूद के ढेर पर तो दुनिया अब बैठी है, एक जमाना था जब तीर-कमान और तलवारों से ही आमने-सामने की जंग होती थी। किसी राजा ने अपनी सुरक्षा के लिए तोप बनवाईं तो किसी शासक ने दुश्मनों को नेस्तनाबूत करने के लिए। तोप की विध्वंस की भयावहता अकल्पनीय होती थी। तोप की गूंज से जंग का मैदान थर्रा जाता था। सेना में शामिल हाथी पागल होकर सैनिकों को कुचल देते थे। हाहाकार मच जाता था। भारी-भरकम वजन, सटीक और दूरगामी मारक क्षमता के कारण तोपों की खासियत इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।
इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि आगरा किला को अंग्रेजों ने सितंबर 1803 में दौलतराव सिंधिया से छीना था। तब अंग्रेज जनरल लेक यहां की तोप 'रूपरानी' को विजय के प्रतीक रूप में ब्रिटेन भेजना चाहता था। राजे ने अपनी पुस्तक 'तवारीख-ए-आगरा' में भी इसका जिक्र किया है। राजे बताते हैं कि किला पर पाड़ बनाकर तोप को यमुना में उतारा गया था। भारी वजन के कारण पाड़ टूट गई और तोप यमुना में समा गई। इसके बाद तोप का पता ही नहीं चला। अंग्रेजों ने इसका जिक्र आगरा गजेटियर 1884 में किया है। वे बताते हैं कि तोप के परीक्षण के लिए कलकत्ता(कोलकाता) से एक अफसर आया था। लेकिन वह नहीं जान सका कि यह किस धातु की बनी हुई है।
जयपुर के जयगढ़ किले में रखी है सबसे वजनी तोप
जयगढ़ किले के डूंगर दरवाजे पर रखी तोप जयबाण दुुनिया की सबसे बड़ी मानी जाती है। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह ने 1720 ई. में इस तोप का निर्माण कराया था। तोप की नली से लेकर अंतिम छोर की लंबाई 31 फीट 3 इंच है। वजन 50 टन है। जयबाण तोप को पहली बार टेस्ट-फायरिंग के लिए चलाया गया था तो जयपुर से करीब 35 किमी दूर स्थित चाकसू नामक कस्बे में गोला गिरने से एक तालाब बन गया था। ये तालाब आज भी है। एक बार फायर करने के लिए 100 किलो गन पाउडर की जरूरत होती थी। अधिक वजन के कारण इसे किले से बाहर नहीं ले जाया गया और न ही कभी युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया था।