फास्ट फूड का कल्चर भी यहां आकर है रुकता, जानिए क्या है इस देसी जायके की खासियत Agra News
70 सालों से बरकरार है छिद्दन के मंगौड़ों की सुगंध। कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद भी लगा रहता है ग्राहकों का मेला।
आगरा, जागरण संवाददाता। आगरा-मथुरा रोड पर घोड़ा तो आज भी वहीं खड़ा है, फाटक गायब है। फाटक की जगह अब ओवरब्रिज बन गया है। लेकिन छिद्दन के मंगौड़े की खुशबू आज भी लोगों को बरबस ही रोक लेती है। बेशक आज छिद्दन नहीं हैं लेकिन मंगौड़े हैं। क्या है छिद्दन के मंगौड़ों की कहानी जानेंगे तो आपके मुंह में भी पानी आ जाएगा।
हलवाई की बगीची निवासी छिद्दन सैनी ने वर्ष 1948 में आगरा-मथुरा रेलवे क्रॉसिंग घोड़ा फाटक (डबल फाटक) पर फूस की दुकान जमाई, जिसमें छोटी सी भट्टी पर कड़ाही के तेल में सिंकते मंगौड़े नजर आते थे। साथ में ही पिसी हुई मूंग की दाल और खïट्टी चटनी के साथ पत्ते के दोने रखे होते थे। देखते ही देखते आगरा ही नहीं दिल्ली वालों की जीभ पर भी मंगौड़ों का स्वाद ऐसा चढ़ा कि आज तक बरकरार है। रेल फाटक बंद होने पर बसें और वाहन यहां रुकते थे और यात्री मंगौड़ों का स्वाद लेते थे। फाटक खुला होता था तभी यहां बस चालक मंगौड़े खाने के लिए बसें रोक देते थे।
आज छिद्दन की तीसरी पीढ़ी यानी उनके बेटे गिर्राज सैनी के पुत्र दिनेश सैनी मंगौड़े तल कर लोगों की हसरत पूरी कर रहे हैं। बारिश के मौसम में तो यहां दूर-दूर से लोग मंगौड़े खाने आते हैं। छिद्दन के साथ ही अब यहां कई और मंगौड़े वालों की दुकानें भी खुल गई हैं। ये सब असली और पुरानी दुकान होने के दावे करते हैं।
मंगौड़ों की खासियत
दिनेश सैनी बताते हैं कि मंगौड़ों में स्वाद की वजह मूंग की दाल को सिल पर बïट्टे से पीसा जाना है। साथ ही सरसों के शुद्ध तेल का उपयोग है। खïट्टी हरी चटनी को भी आम की खटाई से तैयार किया जाता है।
लगा था कारोबार उजड़ जाएगा
रेलवे फाटक पर जब ओवरब्रिज बना तो यहां वर्षों पुरानी दुकानें भी स्थानांतरित करनी पड़ीं। अब छिद्दन की दुकान हलवाई की बगीची की तरफ पुल पर चढऩे से पहले लगती है और अन्य दुकानें गुरुद्वारे के सामने पुल से उतरने के बाद किनारे पर जम गई हैं। लेकिन मंगौड़ों की प्रतिस्पर्धा और स्वाद में कोई कमी नहीं आई है। कद्रदानों की संख्या भी दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।