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World Television Day: बुद्धू बक्शा ने बदल दिया आज घर- घर का नक्शा

बाजार में चार हजार से चार लाख रुपये तक के टीवी मौजूद। भारत में 1959 में हुई थी टेलीविजन की शुरुआत।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 21 Nov 2018 05:10 PM (IST)Updated: Wed, 21 Nov 2018 05:10 PM (IST)
World Television Day: बुद्धू बक्शा ने बदल दिया आज घर- घर का नक्शा
World Television Day: बुद्धू बक्शा ने बदल दिया आज घर- घर का नक्शा

आगरा, जागरण संवाददाता: वर्ष 1987 के रविवार का वो दौर याद कीजिए जब टीवी देखने के लिए लोग अपनी दिनचर्या बदल लेते थे। रामायण देखने के लिए आनन-फानन में तैयार होकर सब मोहल्ले के उस घर में एकत्र होते थे, जहां बड़ा से ब्लैक एंड व्हाइट टीवी होता था। सब मिलकर रामायण देखते थे। यही दौर था जब लोगों के घरों में रामायण की वजह से टीवी की एंट्री हुई थी।

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टेलीविजन एक ऐसा आविष्कार जो लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया। जिसने न जाने कितने लोगों को मिलाने का काम किया। रामायण के लिए लोग पूरे सप्ताह इंतजार करते थे। जिस घर में टीवी होता, उनकी कड़वी बातें भी अनसुनी कर दी जाती। धीरे-धीरे टीवी ने घर-घर में जगह बना ली। समय बदलने के साथ अब टीवी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी है।

 

 टीवी पर एप्लीकेशंस

आज स्मार्ट टीवी पर कई एप्लीकेशंस प्री-लोडेड आती हैं या बाद में एप स्टोर से लोड की जा सकती हैं। कुछ स्मार्ट टीवी से नेटफ्लिक्स, एमेजन पर लाइव टीवी, फिल्म स्ट्रीमिंग होती हैं।

इंटरनेट सर्फिंग भी

अब स्मार्ट टीवी में बिल्टइन वेब ब्राउजर आते हैं। इन पर इंटरनेट सर्फिंग कर सकते हैं। फोटो और वीडियो देख सकते हैं, उन्हें शेयर भी कर सकते हैं।

चार हजार से चार लाख तक के टीवी

प्लाज्मा फीचर की वजह से चार लाख रुपये तक के टीवी बाजार में मौजूद हैं। अब टीवी मेंं 100 प्रतिशत कलर, वन रिमोट कंट्रोल, ब्लूटूथ, स्मार्ट हब, 1500 एचडीआर, कव्र्ड स्क्रीन आदि फीचर हैं। 80 इंच तक के टीवी बाजार में उपलब्ध हैं। 

एंटीना से डीटीएच तक बदला दौर

छतों पर लगने वाला एल्यूमीनियम का चौकोर लंबा एंटीना किसी समय स्टेटस सिंबल हुआ करता था। फिर डीडी मेट्रो आने के बाद जलेबीनुमा एंटीना आया। समय बदला और अब छतें अलग-अलग कंपनी की डीटीएच की छतरियों से अटी दिखती हैं।

17 दिसंबर को लिया था संकल्प

संयुक्त राष्ट्र महासभा में 17 दिसंबर 1996 को विश्व टेलीविजन दिवस 21 नवंबर को मनाने का निर्णय लिया गया था। दुनिया में शांति और सुरक्षा के खतरों की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करने और दूसरे महत्वपूर्ण आर्थिक सामाजिक मामलों पर ध्यान केंद्रित करने में टीवी की बढ़ती भूमिका को देखते हुए निर्णय लिया गया।

यह है टीवी का सफर

पहली बार टीवी का प्रायोगिक तौर पर इस्तेमाल 1920 के ही दशक में शुरू हो गया था, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह लोकप्रिय हुआ। 26 जनवरी 1926 को स्कॉटलैंड के इंजीनियर जेएल बेयर्ड ने टीवी प्रसारण का प्रदर्शन किया था, इसलिए उन्हें ही टीवी का अविष्कारक माना जाता है।

भारत में 1959 में आया टीवी

भारत में टीवी प्रसारण पहली बार 15 सितंबर 1959 को नई दिल्ली से शुरू हुआ। इसका प्रतिदिन प्रसारण ऑल इंडिया रेडियो के तहत 1965 से हुआ था। वर्ष 1976 में भारत में टीवी के प्रसारण को ऑल इंडिया रेडियो से अलग किया गया। देश में राष्ट्रीय प्रसारण की शुरुआत 1982 में हुई और उसी साल रंगीन टीवी प्रसारण की शुरुआत भी हुई। आगरा में भी तब कुछ घरों में रंगीन टीवी दिखने लगे थे। ये वो दौर था कि ब्लैक एंड व्हाइट टीवी पर धारावाहिक देखने लोग पड़ोस के घरों में जाते थे।

एशियन गेम्स देखने को खरीदे गए टीवी

1982 में नौवें एशियन गेम्स का दिल्ली में आयोजन हुआ। लोगों में इन खेलों को टीवी पर देखने की उत्सुकता थी। उन्होंने टीवी खरीदे। उस दौर में छतों पर कई फुट ऊंचे एंटीना लगाए जाते थे। छतों पर लगे ऊंचे एंटीने स्टेटस सिंबल के तौर पर देखे जाते थे।

यादें ब्लैक एंड व्हाइट छोटे पर्दे की

टीवी पर चित्रहार और साप्ताहिक फिल्म और इंग्लिश सीरियल स्टार ट्रैक देखना पसंद था। पड़ोसी के यहां टीवी था, वहां देखने जाते थे। अपना मनपसंद कार्यक्रम देखने के लिए सारे काम समय से निपटा लेते थे। उस समय टीवी ने लोगों के बीच एक बांडिंग बना दी थी। इसने लोगों को जोडऩे का काम भी किया। समय के साथ लोगों में परिवर्तन आया।

- विक्रम शुक्ला  वेस्टर्न म्यूजिक टीचर

देश में आयोजित पहले एशियन गेम्स के दौरान टीवी की लोकप्रियता बढ़ी। ऑडियो की जगह विजुअल इंपेक्ट टेक्नोलॉजी गेम चेंजर साबित हुई। जिसका अपना अलग ही प्रभाव था। अस्सी और नब्बे के दशक में टीवी पर धारावाहिकों की धूम रही। मगर, हर चीज के नकारात्मक और सकारात्मक पहलू होते हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो अब चैनल तो बहुत हैं, लेकिन कार्यक्रम कम हो गए हैं। कई सप्ताह तक टीवी नहीं खोलता, उसे खोलने पर न्यूज की जगह सामने बेतुकी बहस करने वाले नजर आते हैं।

- एनके घोष,  विभागाध्यक्ष अंग्रेजी विभाग, आगरा कॉलेज

उस समय टीवी ने लोगों को जोड़ा था, अब तोडऩे का काम कर रहा है। घरों में टीवी बढ़ते जा रहे हैं, लोग बंटते जा रहे हैं। मुझे याद है रामायण सीरियल के दौरान बटाला एक केस के सिलसिले में गया था। उस समय मोहल्ले के कुछ ही घरों में टीवी होता था। रविवार को सीरियल देखने के लिए गेस्ट हाउस वाले से पूछने के बाद पास के एक मोहल्ले में गया। वहां एक घर में टीवी चलते देख चला गया। आने का मकसद बताने पर परिवार के लोगों ने स्वागत किया। कमरे में दो दर्जन से अधिक लोग थे। लगभग सभी अपरिचित थे। मगर, उस परिवार ने किसी को भी बिना चाय पिलाए नहीं आने दिया।

- एके सेठ, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं विशिष्ट सदस्य इंटरनेशनल काउंसिल आफ ज्यूरिस्ट लंदन, यूके 

चैनल के साथ बढ़ती गईं दूरियां

 70 वर्षीय मुन्नालाल टीवी की बात करने पर बिफर उठते हैं। कहते हैं टीवी तो हमारे जमाने में था। जब रंगीन चित्र नहीं आते थे। गांव में एक या दो टीवी होते थे पूरा गांव उसके सामने बैठता था। टीवी के बहाने सब लोग जुटते थे तो इससे संबंध बने रहते थे आज तो शहर में बेटों के घर में दो-दो टीवी हैं। बच्चे कार्टून देखते रहते हैं तो बेटे न्यूज। टीवी ने परिवार बांट दिए।

यह स्थिति सिर्फ एक परिवार की नहीं है। एक जमाने में टेलीविजन मेल-मिलाप बढ़ाने वाले थे। ज्यादा वक्त नहीं बीता है। करीब दो-ढाई दशक पूर्व तक बच्चे ही नहीं, बड़े भी पड़ोसियों के घर में टीवी देखने जाया करते थे। 35 वर्षीय राजवीर कहते हैं हमें याद है रामायण एवं महाभारत से शुरू हुआ यह सिलसिला चंद्रकांता एवं शक्तिमान तक जारी रहा, लेकिन धीरे-धीरे टीवी सस्ते हुए तो हर घर में टीवी पहुंच गया। इसके बाद भी लोग एक साथ टीवी देखते थे। उसका आनंद ही कुछ और होता था, लेकिन जब से डिश टीवी आई है, तब से गांवों में भी अब टीवी मेल-मिलाप के दुश्मन बन गए हैं। पहले सप्ताह में दिन तय होते थे जब लोग टीवी के सामने एक साथ बैठा करते थे। दो दिन फिल्में आती थी, अब तो हर वक्त ही फिल्में आती हैं। ऐसे में लोग घर आने के बाद में एक दूसरे से मिलना भूल गए हैं।

शहरों में तो परिवार नहीं बैठता साथ 

शहरों में तो और भी जुदा स्थिति है। परिजन भी टीवी देखने के लिए साथ में नहीं बैठते हैं। कई घरों में दो से तीन टीवी हैं। महिलाएं अपने धारावाहिक देखने में व्यस्त रहती हैं तो पुरुषों को यहां समाचार पसंद हैं। ऐसे में पति-पत्नी भी साथ नहीं बैठते।


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