हिंदी का विरोध, फिर भी सबसे ज्यादा इस राज्य में हिंदी सीखने का रहता है जोर
जागरण विमर्श में बोले भाषा वैज्ञानिक अनुपम श्रीवास्तव कहा हिंदी का विरोध केवल राजनीतिक कारणों से।
आगरा, रवि भारद्वाज। हिंदी भाषा के मसले पर वर्षों से तमिलनाडु समेत कई दक्षिण भारतीय राज्यों में विरोध की चिंगारी दिख रही है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। दक्षिणी राज्यों में हिंदी सीखने वालों की संख्या सबसे ज्यादा तमिलनाडु में ही है। इसका अर्थ यह है कि हिंदी का विरोध सिर्फ राजनीतिक कारणों से हो रहा है।
दैनिक जागरण कार्यालय में जागरण विमर्श के दौरान यह विचार केंद्रीय हिंदी संस्थान के असिस्टेंट प्रोफेसर अनुपम श्रीवास्तव ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में हिंदी भाषा का विरोध जमीन स्तर पर नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक मुद्दा है। यह विरोध तो 1937 से चला आ रहा है। इसके बावजूद हम देखते हैं कि वर्ष 2009 से पहले दक्षिण भारत के राज्यों में हिंदी सीखने के लिए परीक्षा देने वालों की संख्या दो लाख 86 हजार थी। वर्ष 2018 तक यह संख्या पांच लाख 80 हजार पहुंच गई। करीब 10 वर्ष में हिंदी सीखने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की रिपोर्ट के अनुसार, एक दशक में हिंदी की परीक्षा देने वालों की संख्या सौ फीसद बढ़ी है। जबकि आंध्र प्रदेश (तेलंगाना समेत) में दो लाख 40 हजार ने परीक्षा दी है। इसके अलावा वर्ष 2018 में ही कर्नाटक में 60 हजार और केरल में 21 हजार लोगों ने हिंदी सीखने के लिए परीक्षा दी है।
प्रोफेसर श्रीवास्तव ने बताया कि भाषा हमेशा से ही विकास से ज्यादा विवाद का मुद्दा रही है। इसका फायदा राजनीतिक दल हमेशा से उठाते रहे हैं। फिर भी हिंदी ने भारत से निकलकर विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई है। यही कारण है कि हिंदी विश्व में 10 प्रमुख भाषाओं में से एक है।
38 भाषाएं शामिल होना चाहती हैं अनुसूची में
समय के साथ हिंदी भाषा का आधार बदलता चला गया। बाजार के मोह में अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश हुआ है। यह समय के साथ बदलाव हुआ है। देश में करीब 1700 भाषाएं हैं, लेकिन संविधान में 22 भाषाओं को ही शामिल किया गया है। वर्तमान में भी भोजपुरी, राजस्थानी समेत 38 भाषाओं को 8वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए मांग उठ रही है।
त्रिभाषा फार्मूला
वर्ष 1962-63 में त्रिभाषा फार्मूला लागू किया गया था। इसके तहत प्रत्येक राज्य में मातृभाषा, आधुनिक भाषा और परंपरागत भाषा की रूपरेखा तय की गई है। स्कूलों में इसको लागू किया गया था, लेकिन इस फैसले से ङ्क्षहदी और अंग्रेजी भाषा की तुलना में अन्य भाषाओं का विकास पिछड़ गया।
क्या है विरोध
नई शिक्षा नीति का मसौदा 31 मई को केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामने पेश किया गया था। इसमें हिंदी और अंग्रेजी को एक भारतीय क्षेत्रीय भाषा के साथ-साथ 'स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य करने की सिफारिश की थी। मसौदा मानव संसाधन मंत्रालय की वेबसाइट पर भी अपलोड किया गया था। इसके बाद से ही दक्षिणी राज्यों में राजनीतिक दलों की ओर से इस बात का विरोध हो रहा है कि सरकार नई शिक्षा नीति 2019 में हिंदी भाषा को जबरन थोपना चाहती है। तमिलनाडु में डीएमके ने जबरदस्त विरोध किया था। इसके चलते ही केंद्र सरकार को विरोध के बीच में नई शिक्षा नीति के बारे में स्पष्ट करना पड़ा कि दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी वैकल्पिक भाषा के तौर पर ही रखी जाएगी।
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