Taj Mahal Controversy: ताजमहल के निर्माण पर सवाल उठाता है औरंगजेब का पत्र, साक्ष्य कर रहे कुछ और इशारा भी
Taj Mahal Controversy वर्ष 1652 के पत्र में गुंबद के दाे स्थानों से रिसने का है जिक्र। ताजमहल की निर्माण अवधि को देखते हुए इतनी जल्दी मरम्मत की आवश्यकता पड़ने पर इतिहासकारों ने उठाए हैं सवाल। तेजोमहालय को लेकर एक और वाद इस पर 22 मई को सुनवाई प्रस्तावित है।
आगरा, जागरण संवाददाता। ताजमहल के बंद तहखानों की जांच को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर होने के बाद 16वीं शताब्दी की धरोहर सवालों के घेरे में है। याचिकाकर्ता अयोध्या निवासी डा. रजनीश सिंह ने बंद तहखानों को खुलवाकर समिति से जांच कराने की मांग की है। वहीं, शहंशाह शाहजहां को शहजादे औरंगजेब द्वारा वर्ष 1652 में लिखे गए पत्र के आधार पर इतिहासकार ताजमहल के निर्माण पर ही सवाल उठाते रहे हैं।
कई किताबों में है जिक्र
औरंगजेब ने शाहजहां को यह पत्र आठ दिसंबर, 1652 (तारीख आठ मुहर्रम 1063 हिजरी) को लिखा था। इस पत्र का जिक्र सईद अहमद की पुस्तक "मुरक्का-ए-अकबराबाद', एसएएन नदवी की पुस्तक "रुक्कात-ए-आलमगीर' और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के पूर्व निदेशक डी. दयालन की किताब "ताजमहल एंड इट्स कंजर्वेशन' में मिलता है। औरंगजेब के शाहजहां को भेजे गए पत्र के अनुसार बरसात में समाधि के ऊपर बना गुंबद उत्तर की ओर (यमुना किनारा की तरफ) दो स्थानों पर रिसता था।
इसी प्रकार चार मेहराब फाटक, कई मेहराबदार कोने दूसरी मंजिल के, चार छोटे गुंबद, उत्तर की ओर चार दालान और छोटे कमरे सात मेहराबी कुर्सी के (कुर्सी-ए-इब्तदार) गीले हो गए हैं। संगमरमर से घिरी बड़े गुंबद की छत भी दो या तीन स्थानों पर वर्षा में रिसी थी तथा उसकी मरम्मत की गई थी। मस्जिद तथा जमातखाना के गुंबद भी बरसात में रिसे थे और उनकी मरम्मत की गई थी।
शिल्पी (बन्नायन) इस विचार हैं कि यदि दूसरी मंजिल की छत का ऊपरी भाग (फर्श) उखाड़कर तलछट के विशेष गारे (रेखता) द्वारा उसे भरकर उसके ऊपर आधे गज की तह चूने की फाटक तथा संकरे भागों व छाेटे गुंबजों पर चढ़ाई जाए तो संभवत: यह ठीक हो जाए। परंतु वह अपनी अक्षमता बड़े गुंबद को ठीक करने के बारे में स्वीकार करता है।
औरंगजेब ने अपने पत्र में चंद्र वाटिका (मेहताब बाग) में पानी भरने से उसके खराब होने की बात भी लिखी थी। औरंगजेब के इसी पत्र का हवाला देकर इतिहासकार ताजमहल के निर्माण को सवालों में खड़ा करते रहे हैं। उनका कहना है कि ताजमहल का निर्माण 163़1-1653 तक चला था। इतनी जल्दी उसे इतने स्थानों पर मरम्मत की आवश्यकता कैसे पड़ सकती है?
इतिहासविद् राजकिशोर राजे का कहना है कि औरंगजेब द्वारा शाहजहां को लिखा गया पत्र काफी महत्वपूर्ण है। मुकदमे में इस पत्र को साक्ष्य के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। हकीकत सामने आए, इसके लिए तहखानों की जांच होनी चाहिए। एएसआइ जब तक तहखानों को बंद रखेगी, सवाल उठते ही रहेंगे।
बादशाहनामा का करते हैं जिक्र
पीएन ओक ने शाहजहां के दरबारी लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखित "बादशाहनामा' के पृष्ठ 403 का हवाला देकर भी ताजमहल के निर्माण को कठघरे में खड़ा किया था। इसमें लिखा है कि मुमताज उज जमानी का पार्थिव शरीर 17 जमादिल अव्वल को आगरा भेजा गया, जो वहां पर 15 जमादिल सानी को पहुंचा था। शव को दफनाने के लिए जो स्थल चुना गया, वह नगर के दक्षिण स्थित राजा मानसिंह के महल के नाम से जाना जाता था। यह महल आकार में विशाल, भव्य, गगनचुंबी गुंबजयुक्त व बहुत बड़े बाग से घिरा था। अगले वर्ष राजाज्ञा से अधिकारियों ने शव को दफनाया। कुशल ज्यामितिज्ञों व कारीगरों को लगाकर कब्र बनाने की नींव डाली और इमारत पर 40 लाख रुपये व्यय हुए।
बुरहानपुर में हुई थी मुमताज की मृत्यु
मुमताज की मृत्यु बुरहानपुर में हुई थी। वहां से उसका शव छह माह बाद आगरा लाया गया था। यहां उसे ताजमहल के उद्यान में दफनाया गया था। उद्यान में यह जगह जिलाऊखाना के नाम से जानी जाती है। बाद में उसे वर्तमान स्थल पर दफन किया गया।
एएसआइ मंदिर न होने का दे चुकी है एफीडेविट
वर्ष 2015 में लखनऊ के हरीशंकर जैन व अन्य की ओर से अधिवक्ता राजेश कुलश्रेष्ठ ने सिविल कोर्ट में ताजमहल को लार्ड श्री अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजमान तेजोमहालय मंदिर घोषित करने को याचिका दायर की थी। इसका आधार बटेश्वर में मिले राजा परमार्दिदेव के शिलालेख को बताया गया था। वर्ष 2017 में केंद्र सरकार व एएसआइ ने प्रतिवाद पत्र दाखिल कर ताजमहल में कोई मंदिर या शिवलिंग होने या उसे तेजोमहालय मानने से इन्कार कर दिया था। यह याचिका खारिज हो गई थी, जिसके बाद रिवीजन के लिए एडीजे फिफ्थ के यहां याचिका दायर की गई थी। इस पर 22 मई को सुनवाई प्रस्तावित है।